कोविड-19 महामारी ने होटल उद्योग का भ_ा बिठा दिया है। कारोबार करीब तीन महीने से ठप है और बैंक कर्ज वसूलने का दबाव डाल रहे हैं। इसीलिए होटल कंपनियों ने खस्ता कारोबार के बीच कर्ज अदायगी के लिए बैंकों से बातचीत शुरू कर दी है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने कर्ज की किस्तें छह महीने के लिए रोकने की जो राहत (मॉरेटोरियम) दी थी, उसकी मियाद खत्म होने को है। इसीलिए बैंक और होटल मूलधन तथा ब्याज के भुगतान के लिए तीन रास्तों पर बात कर रहे हैं। पहले रास्ते में मानक यानी स्टैंडर्ड ऋण खाते वाले होटल बैंकों से कर्ज की अवधि में 12 महीने का इजाफा मांग रहे हैं ताकि कर्ज चुकाना आसान हो जाए। आम तौर पर होटल कंपनियां 6-7 साल के लिए कर्ज लेती हैं। हालांकि अवधि बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक की इजाजत चाहिए।
दूसरा रास्ता यह है कि कर्ज चुकाने के मामले में अच्छे रिकॉर्ड वाले होटलों को छह महीने के मॉरेटोरियम का बकाया मूलधन और ब्याज 12 महीने की मासिक किस्तों में चुकाने की सहूलियत दी जाए। तीसरे रास्ते में उन होटलों की बात है, जिनके ऋण खाते स्टैंडर्ड नहीं हैं यानी जो भुगतान में चूक कर चुके हैं। उनसे कहा जा सकता है कि मॉरेटोरियम के दौरान जो भी मूलधन और ब्याज बकाया हुआ है, उसे मॉरेटोरियम खत्म होते ही एक बार में चुकाया जाए।
बातचीत तब शुरू हुई, जब होटल उद्योग की शीर्ष संस्था द होटल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एचएआई) ने रिजर्व बैंक को चि_ी लिखकर आगाह किया कि नामचीन होटल कंपनियों को दिए गए 45,000 करोड़ रुपये के कर्ज कुछ ही महीनों में फंस जाएंगे यानी एनपीए बन जाएंगे।
देश में कुल 28 लाख होटल हैं, जिनमें 15 फीसदी ब्रांडेड होटल हैं। उसने यह भी कहा कि होटल उद्योग 30 से 36 महीने तक पटरी पर लौटता नहीं दिख रहा और उस दौरान महामारी से पहले की तुलना में 50-60 फीसदी कमरे ही भर पाएंगे।
ये दिक्कतें गिनाकर एचएआई ने केंद्रीय बैंक से इस पूरे वित्त वर्ष में मॉरेटोरियम लागू करने की मांग की है और कर्ज की अवधि एक साल बढ़ाने की दरख्वास्त भी की है। साथ ही अगले 18 से 24 महीनों में ब्याज दर में रियायत देने की गुहार भी लगाई है। हालांकि उसने यह भी कहा है कि इसके बावजूद 9-10 फीसदी कर्ज तो एनपीए में तब्दील हो ही जाएगा।