बीएस बातचीत
बाजारों के लिए यह सप्ताह कई घटनाक्रम वाला रहा, जिनमें दूरसंचार और बैंकिंग क्षेत्रों में कमजोर आर्थिक आंकड़े और घटनाक्रम शामिल रहे। बोफा सिक्योरिटीज में इक्विटी रणनीतिकार (भारत) अमिष शाह ने पुनीत वाधवा को बताया कि उनकी कंपनी का मानना है कि बाजार अल्पावधि में समेकित होंगे, क्योंकि ताजा तेजी के बाद बड़े क्षेत्रों के शेयरों में अब मूल्यांकन में और बदलाव की सीमित गुंजाइश दिख रही है। पेश हैं उनसे बातचीत के मुख्य अंश:
क्या बाजारों में अर्थव्यवस्था में और संभावित दबाव का असर दिखा है?
वृहद/राजकोषीय घाटे पर प्रभाव के बावजूद, वैश्विक तौर पर मजबूत नकदी को देखते हुए, बाजारों में बड़ी गिरावट की आशंका नहीं है, क्योंकि भारतीय बाजारों के लिए मूल्यांकन अभी भी काफी हद तक अन्य उभरते बाजारों (ईएम) के साथ साथ वैश्विक बाजारों के अनुरूप है। हालांकि हमारा मानना है कि बाजार की गति पर विराम लग सकता है और अल्पवधि में ये सीमित दायरे में बने रह सकते हैं। वित्तीय क्षेत्र में बाजार की तेजी की रफ्तार बढ़ाने की संभावना है, बशर्ते कि ऋण पुनर्गठन और एनपीए का प्रभाव बहुत ज्यादा न हो। इसके अलावा, वैश्विक झटके या नकारात्मक घटनाक्रम बाजारों के लिए प्रमुख जोखिम हैं।
भविष्य में भारतीय बाजारों में विदेशी प्रवाह पर आपका क्या नजरिया है?
संस्थागत प्रवाह धीमा पड़ सकता है, क्योंकि हमारा मानना है कि बाजार अल्पावधि में सीमित दायरे में रहेंगे। इसकी वजह यह है कि ताजा तेजी के बाद बड़े क्षेत्रों के शेयरों में अब मूल्यांकन में और बदलाव की कम गुंजाइश रह गई है। इसके अलावा, कई वित्तीय क्षेत्र के शेयरों में निवेश प्रवाह को गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए)/ऋण पुनर्गठन की मात्रा को लेकर स्थिति स्पष्ट होने का इंतजार है, जिसमे अभाी कुछ महीने लग सकते हैं। इसके अलावा, हमारा मानना है कि उद्योगों और धातु क्षेत्रों के लिए एफआईआई प्रवाह सकारात्मक होगा, खासकर इसलिए क्योंकि एफआईआई एक ओर जहां नकारात्मक बने हुए हैं, वहींं दूसरी ओर मेक इन इंडिया/सरकार के पूंजीगत खर्च पर जोर दिया जाना सकारात्मक दिख रहा है। घरेलू संस्थागत निवेशक (डीआईआई) औद्योगिक क्षेत्र पर पहले ही सकारात्मक हैं, लेकिन अब धातु क्षेत्र में भी आवंटन में इजाफा कर सकते हैं।
बाजार और क्षेत्रों की पसंद को लेकर आपका क्या दृष्टिकोण है?
हमारी ग्लोबल क्वांटिटेटिव स्टे्रटेजी टीम के अनुसार, वैश्विक फंड अन्य एपीएसी (एशिया-प्रशांत) देशों के मुकाबले भारत पर लगातार सकारात्मक बने हुए हैं। इसका असर इस तथ्य से भी दिखा है कि मई 2020 से भारत के लिए एफआईआई प्रवाह सकारात्मक बना हुआ है, जबकि मलेशिया, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, और थाईलैंड जैसे कई अन्य उभरते बाजारों द्वारा इस अवधि में यहां बिकवाली की गई है। इसे देखते हुए, अन्य उभरते बाजारों के मुकाबले एमएससीआई इंडिया का मूल्यांकन प्रीमियम अब 36 प्रतिशत के दीर्घावधि औसत के मुकाबले 50 प्रतिशत से ज्यादा का है। हमें विश्वास है कि बाजार अल्पावधि में समेकित होगा, लेकिन निजी क्षेत्र में एनपीए को लेकर स्थिति स्पष्ट होने के बाद वित्तीय कंपनियों में तेजी को बढ़ावा देने की क्षमता होगी। हम कुछ खास वित्तीय, स्टैपल्स, यूटिलिटीज, उद्योग और धातु क्षेत्रों को पसंद कर रहे हैं। हम उपभोक्ता, वाहन, मीडिया और रियल एस्टेट क्षेत्रों में कुछ डिस्क्रेशनरी आधारित शेयरों पर सतर्क बने हुए हैं। हम आईटी, दूरसंचार और फार्मा शेयरों के लिए ज्यादा तेजी की सीमित गुंजाइश देख रहे हैं।
सरकारी नीतियों से कौन से क्षेत्रों को ज्यादा फायदा हो सकता है?
हम उत्पादन औद्योगिक कारकों में सुधार के लिए इस समय सरकार से लक्षित प्रयासों की उम्मीद कर रहे हैं। बड़े पैमाने पर एफडीआई आकर्षित करने के लिए, भारत को श्रम बाजारों और विद्युत वितरण क्षेत्र से जुड़े सुधार संबंधित मामलों, नियामकीय मंजूरियों, जल्द भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया आसान बनाने, एफडीआई सीमा बढ़ाने, और उत्पादन-आधारित रियायती योजनाओं या कुछ और क्षेत्रों में पूंजीगत खर्च सब्सिडी योजनाओं के संबंध में कानूनी बदलाव लाना होगा। उद्योग हितधारकों के साथ हमारी बातचीत से पता चलता है कि उनमें से ज्यादातर इस दिशा में काम कर रहे हैं। यदि इन उपायों पर अमल तेजी से होता है, तो इससे भारत को आपूर्ति शृंखलाओं से लाभान्वित होने के हमारे नजरिये को पुन: पुष्ट करने में मदद मिलेगी, और यह दीर्घावधि में सामान्य तौर पर एक सकारात्मक भारतीय उदाहरण बन सकेगा।
कई और वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं अब व्यवसाय पुन: खोल रही हैं और पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में गंभीर दबाव को देखते हुए क्या निवेशक निर्यात-केंद्रित कंपनियों पर ज्यादा ध्यान देंगे?
धीमी रिटेल ऋण वृद्घि, आय में आ रही कमी, रोजगार कटौती, और सभी क्षेत्रों में कंपनियों द्वारा लागत नियंत्रण की कोशिशों से भारत में कुछ वर्षों के लिए डिस्क्रेशनरी खपत से संबंधित उत्पाों के लिए मांग निश्चित तौर पर प्रभावित बनी रहेगी। यह कुछ हद तक डिस्क्रेशनरी शेयरों पर हमारे सतर्क नजरिये को स्पष्ट करता है।
भारतीय उद्योग जगत के पहली तिमाही के नतीजों पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
ज्यादातर कंपनियां कोविड-19 से पूर्व जैसी स्थिति में तेजी आने की कोशिश कर रही हैं और उन्होंने श्रमिक पलायन, लॉजिस्टिक संबंधी समस्याओं, और कार्यशील पूंजी दबाव आदि को समाप्त करने के ठोस प्रयास किए हैं। इसके अलावा, हम कंपनियों द्वारा लागत कटौती के प्रति किए जा रहे गंभीर प्रयासों से आश्चर्यचकित हैं। प्रमुख 240 कंपनियों के हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि उन्होंने पहली तिमाही के दौरान सालाना आधार पर ऊपरी खर्चों में 25 प्रतिशत तक की कमी की।