दिल्ली परिवहन विभाग द्वारा उबेर(Uber), ओला (Ola) और रैपिडो (Rapido) जैसी कंपनियों को बाइक टैक्सी सेवाओं को बंद करने के लिए कहने के एक दिन बाद भी सभी तीन ऐप पर दोपहिया वाहन हमेशा के तरह उपलब्ध थे। इनके चालकों को इस प्रतिबंध के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है।
मंगलवार दोपहर को सरिता विहार से आईटीओ जा रहे 26 वर्षीय राहुल ने पूछा कि कैसा प्रतिबंध? क्या है केवल बाइक के लिए है या कैब्स के लिए भी? जब उन्हें दिल्ली सरकार के निर्देश के बारे में बताया गया और कहा गया कि पकड़े जाने पर जुर्माना देना होगा तो वह अचंभित हो गए।
भागलपुर के मूल निवासी कुमार फरीदाबाद के शाही एक्सपोर्ट्स में काम करते हैं और उबर के पार्टनर ड्राइवर भी हैं क्योंकि 12,000 रुपये की तनख्वाह में सात लोगों का परिवार चलाना मुश्किल है। वह कहते हैं ‘5000 रुपये! यह मेरी दो सप्ताह की बचत है। वह क्या चाहते हैं कि हम बेरोजगार हो जाएं?’
भारत के शहरों में बाइक की उपलब्धता महामारी के बाद से बढ़ी है। इस दौरान जिन लोगों ने अपनी नौकरी खो दी उन्होंने ऐप एग्रीगेटर्स के साथ गठजोड़ करने का अवसर देखा। मंगलवार को नोएडा से सरिता विहार आने के दौरान 40 वर्षीय अजय कुमार ने संवाददाता से कहा, ‘मैं पिछले दो वर्षों से अधिक समय से उबर के लिए बाइक चला रहा हूं। मैं एक विज्ञापन एजेंसी के साथ काम करता था और होर्डिंग, पोस्टर आदि लगाता था। इसके लिए मुझे हर महीने वेतम मिलता था, लेकिन महामारी के दौरान मुझे नौकरी से निकाल दिया गया था।’ वह कहते हैं, ‘सबसे हास्यास्पद है कि हमें किसी ने इस बारे में कुछ नहीं बताया। अगर चालान कटता है तो हमारी मदद के लिए कोई नहीं आने वाला है।’
ऑटो और टैक्सी के इतर बाइक चालकों का कोई संघ नहीं होता है। सभी अलग-अलग ही काम करते हैं। गुड़गांव के रहने वाले अश्विनी राणा, जो अपना अधिकांश समय दिल्ली में बिताते हैं, क्योंकि राजधानी में बाइक की सवारी की मांग राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में कहीं और से अधिक है कहते हैं, ‘हम पूरी तरह से खुद पर हैं। ट्रैफिक पुलिस से लेकर सरकार तक और यहां तक कि जिस एग्रीगेटर के लिए हम काम कर रहे हैं, कोई हमारा नहीं है। एग्रीगेटर में भी कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो हमें जानकारी दे सके। मैं केवल उम्मीद कर सकता हूं कि कॉल सेंटर में कोई मदद कर सकता है।’
सैकड़ों लोगों के लिए आजीविका का स्रोत होने के अलावा (बाइक चालकों का आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है) बाइक टैक्सी कई लोगों को यात्रा के सस्ते और तेज़ तरीके प्रदान करती हैं, खासकर उन हिस्सों में जहां मेट्रो सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं।
नोएडा सेक्टर 25 में रहने वाले अवनीश रवींद्रन हर रोज ग्रीन पार्क स्थित अपने दफ्तर जाने के लिए बाइक टैक्सी लेते हैं। 30 वर्षीय सेल्स एक्जीक्यूटिव कहते हैं, ‘कई दिन कैब की सवारी में मुझे 700-800 रुपये से अधिक का खर्च आएगा, लेकिन अगर मैं बाइक लेता हूं, तो लागत आधी हो जाती है। इसके अलावा, यह अक्सर परिवहन का एक तेज़ तरीका है। सरकारी की आदेश का कोई खास मतलब नहीं है।
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हर रोज मयूर विहार से नोएडा स्थित दफ्तर आने-जाने वाली पत्रकार श्वेता केशरी कहती हैं, ‘बाइक टैक्सियों ने मध्यम-आय वाले लोगों के लिए जीवन आसान बना दिया है जो हमेशा मेट्रो नहीं ले सकते हैं या कैब पर खर्च नहीं कर सकते हैं।’ वह भी बाइक टैक्सी का विकल्प चुनती है।
इस महीने की शुरुआत में, शीर्ष न्यायालय ने बाइक टैक्सी एग्रीगेटर रैपिडो को महाराष्ट्र सरकार द्वारा लाइसेंस देने से इनकार के खिलाफ राहत देने से इनकार कर दिया था। रैपिडो, ओला और उबर ने महाराष्ट्र में भी बाइक टैक्सी का संचालन बंद कर दिया है।