भारतीय ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवाला बोर्ड (IBBI) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक व्यक्तिगत गारंटरों के लिए दिवाला समाधान प्रक्रिया से अब तक लेनदार दावे के 102.78 करोड़ रुपये में से 2.16 फीसदी धनराशि ही वसूल पाए हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि व्यक्तिगत गारंटर दिवाला समाधान प्रक्रिया देनदार को राहत और लेनदार की वसूली के बीच संतुलन बनाने का अवसर देती है, लेकिन मौजूदा स्थिति देखने पर पता चलता है कि यह देनदार की ओर बहुत उदारता से झुकी हुई है।
केएस लीगल ऐंड एसोसिएट्स में मैनेजिंग पार्टनर सोनम चांदवानी ने कहा, ‘यह सही है कि इसमें कर्जदार के वित्तीय पुनर्वास की सुविधा मुहैया कराई जाती है। लेकिन 2.16 फीसदी की मामूली रिकवरी से संकेत मिलता है कि इस व्यवस्था में खामी है। सख्त जांच या प्रवर्तन व्यवस्था के अभाव में पुनर्भुगतान व्यवस्था को मंजूरी पर जोर देने से ऋणदाता का भरोसा कम होता है और यह नैतिकता के संकट खड़े करता है।’
IBBI (Insolvency and Bankruptcy Board of India) के आंकड़ों से पता चलता है कि स्वीकार किए गए 383 व्यक्तिगत गारंटर दिवाला प्रक्रिया में से124 बंद कर दिए गए हैं। इनमें से 12 वापस ले लिए गए हैं। इसमें से 86 पुनर्भुगतान योजना खारिज होने या पेश न किए जाने के कारण बंद कर दिए गए। वहीं सिर्फ26 की पुनर्भुगतान योजना को मंजूरी मिली है।
जनवरी-मार्च 2024 तिमाही के दौरान 5 पुनर्भुगतान योजनाओं को व्यक्तिगत गारंटर समाधान प्रक्रिया के लिए मंजूरी मिली।
आईबीबीआई ने कॉर्पोरेट ऋण लेने वालों के व्यक्तिगत गारंटर के दिवाला समाधान का प्रावधान नवंबर 2017 में किया था। व्यक्तिगत गारंटरों के दिवाला के नियम चरणबद्ध रूप से व्यक्तिगत दिवाला कानून के हिस्से के रूप में आए।
चांदवानी ने कहा, ‘मूल्यांकन के कठोर मानदंडों, ऋणदाता के कड़े सुरक्षा उपायों और कर्ज लेने वालों की जवाबदेही पर अधिक जोर देने की दिशा में नए सिरे से आंशिक संशोधन की जरूरत है। इस तरह के सुधार किए बगैर व्यक्तिगत गारंटर दिवाला प्रक्रिया का भविष्य अनिश्चित ही बना रहेगा और इसके अपेक्षित परिणाम नहीं आएंगे।’
इस प्रक्रिया की शुरुआती चुनौतियों में से एक यह भी थी कि क्या कंपनी के साथ बैंकर का समझौता और व्यक्तिगत गारंटर एक दूसरे से जुड़े हैं या अलग हैं। इस साल फरवरी में आईबीबीआई ने दोनों प्रक्रियाओं के बेहतर तालमेल और प्रभावी समन्वय के लिए किसी कंपनी के समाधान प्रक्रिया और उसके व्यक्तिगत गारंटर, दोनों के लिए एक ही दिवाला पेशेवर होने के अनुमति दे दी थी।
विशेषज्ञों का मानना है कि सरफेसी अधिनियम या भारतीय अनुबंध अधिनयम के तहत व्यक्तिगत गारंटी लागू करने की प्रक्रिया समय लेने वाली है और इससे देरी होती है। इसमें व्यक्तिगत गारंटरों को अपनी संपत्ति हटाने, नष्ट करने या अतिक्रमण करने का मौका मिल जाता है और इससे यह प्रक्रिया अप्रभावी हो जाती है।
एक्वीलॉ में एसोसिएट पार्टनर पीयूष अग्रवाल ने कहा, ‘आईबीसी के तहत कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया में कर्जदाताओं को अक्सर बहुत ज्यादा राशि छोड़नी पड़ती है और यह कभी कभी 90 फीसदी तक हो जाती है। ऐसे में व्यक्तिगत गारंटरों से रिकवरी के लिए प्रभावी व्यवस्था होने से कर्जदाताओं को लाभ होगा।’
IBBI ने व्यक्तिगत गारंटरों से संबंधित दिवाला मामलों में ऋणदाताओं की समिति की बैठकों को अनिवार्य बनाने के प्रावधान में संशोधन किया है।
इसके पहले व्यक्तिगत गारंटर द्वारा पुनर्भुगतान की योजना दाखिल किए जाने के बाद समाधान पेशेवर इसकी व्यवहार्यता का मूल्यांकन करते थे और अपनी सिफारिशों के साथ निर्णय लेने वाले प्राधिकारी को रिपोर्ट देते थे कि ऋणदाताओं के साथ बैठक कराई जाए या नहीं। अगर पेशेवर को लगता था कि इस तरह की बैठक अनावश्यक है, तो वह उसकी वजह बताता था।
पिछले साल नवंबर में उच्चतम न्यायालय ने ऋण शोधन अक्षमता और दिवाला संहिता (आईबीसी) के प्रमुख प्रावधानों की वैधता बरकरार रखी थी, जिसमें व्यक्तिगत गारंटरों के खिलाफ दिवाला की पहल की वैधता शामिल है।
IBC (Insolvency and Bankruptcy Code) के प्रावधानों को चुनौती देने वाले याचियों में रिलायंस समूह के चेयरमैन अनिल अंबानी भी शामिल थे, जिसमें कहा गया था कि आईबीसी कानून में व्यक्तिगत गारंटरों को कोई राहत नहीं दी गई है और उन्हें समाधान पेशेवरों की दया पर छोड़ दिया गया है।