बीएस बातचीत
जेएसडब्ल्यू स्टील ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के दौरान मात्रात्मक बिक्री में 10 फीसदी की वृद्धि पर अब तक का सर्वाधिक समेकित तिमाही एबिटा दर्ज किया है। हालांकि कच्चे माल की कीमतों में तेजी एवं अन्य इनपुट लागत के कारण एबिटा मार्जिन पिछली तिमाही के मुकाबले दबाव में रहा। कंपनी के संयुक्त प्रबंध निदेशक एवं ग्रुप सीएफओ शेषगिरि राव ने ईशिता आयान दत्त से बातचीत में कहा कि कंपनी लागत में वृद्धि का बोझ हल्का करने के लिए एक अधिभार लगाने पर विचार कर रही है। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:
अमेरिका में कुछ नरमी और चीन सुस्ती दिख रही है। ऐसे में इस्पात का मांग परिदृश्य कैसा रहेगा?
हमें चीन को छोड़कर क्षेत्रवार सीमेंट की मांग और उत्पादन पर विचार करना होगा। विश्व इस्पात संघ (डब्ल्यूएसए) ने हाल में एक लघु अवधि का परिदृश्य जारी किया है। उसमें कहा गया है कि चीन की रफ्तार सुस्त पड़ रही है और चालू कैलेंडर वर्ष के लिए मांग में 1 फीसदी की गिरावट आएगी यानी मांग पिछले साल के मुकाबले 1 करोड़ टन कम रहेगी। लेकिन दुनिया के शेष हिस्सों के लिए लिए मांग में उल्लेखनीय तेजी दिख रही है। यही इस्पात की कहानी है। चीन में इस्पात की मांग सितंबर में सालाना आधार पर 23 फीसदी घट गई। भारत में पहली छमाही के दौरान 4.9 करोड़ टन इस्पात की खपत हुई जबकि एक साल पहले यह आंकड़ा 3.65 करोड़ टन रहा था। यदि हम मान लेते हैं कि तीसरी और चौथी तिमाही के दौरान प्रदर्शन पिछले साल के अनुरूप रहा तो चालू कैलेंडर वर्ष के लिए मांग काफी अच्छी रहेगी जो भारत में करीब 11 करोड़ टन तक पहुंच जाएगी। जहां तक इस्पात की मांग का सवाल है तो वह शानदार है।
कच्चे माल के दाम बढ़ रहे हैं और आप एक अधिभार के जरिये बढ़ी हुई लागत का बोझ हल्का करने पर विचार कर रहे हैं लेकिन अधिभार क्यों?
वैश्विक स्तर पर ऊर्जा की कमी के कारण काफी अस्थिरता दिख रही है। तापीय कोयला और कोकिंग कोल की कीमतों में उल्लेखनीय तेजी आई है जो अस्थायी है। लागत में कटौती के लिए आंतरिक तौर पर हम कई काम कर रहे हैं। अधिभार की अवधारणा वैश्विक स्तर पर पहले से ही चलन में है। एक बड़ी इस्पात कंपनी ने यूरोप में 50 यूरो प्रति टन ऊर्जा अधिभार लगाया है। इसी प्रकार अमेरिका में भी कीमत को स्क्रैप से संबद्ध किया गया है।
कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव के मद्देनजर हम भी अधिभार लगाने पर विचार कर रहे हैं।
पिछले पांच महीनों के दौरान कोकिंग कोल की कीमतों में तीन गुना से अधिक वृद्धि हुई है, इस्पात की कीमतें बढऩे वाली है जबकि लौह अयस्क की कीमतों में गिरावट आई है। कुल मिलाकर तीसरी तिमाही के दौरान जेएसडब्ल्यू स्टील की लागत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
पिछली तिमाही के दौरान लागत का प्रभाव काफी गंभीर रहा। वैश्विक स्तर पर लौह अयस्क की कीमतों में 45 फीसदी की गिरावट आई। हालांकि भारत में यह गिरावट मामूली रही। इसलिए भारतीय इस्पात कंपनियों को लौह अयस्क की कीमतों में गिरावट का उतना फायदा नहीं मिल पाया जितना वैश्विक स्तर पर अन्य कंपनियों को मिला। ठीक उसी समय कोकिंग कोल की कीमतें तीन गुना बढ़ गईं, तापीय कोयले के दाम बढ़ गए, बिजली की लागत दोगुनी हो गई और शिपिंग दरों में भी इजाफा हुआ। पिछली तिमाही के दौरान समेकित और एकल दोनों आधार पर प्रति टन एबिटा पर दबाव दिखा। जहां तक आगे चलकर उसके प्रभाव का सवाल है तो हमें तीसरी तिमाही के दौरान 90 से 100 डॉलर प्रति टन कोकिंग कोल की लागत को वहन करना होगा। हालांकि पिछली तिमाही के दौरान लौह अयस्क की कीमतों में थोड़ी नरमी आई है और अक्टूबर में भी कुद नरमी दिखी लेकिन लागत का दबाव बरकरार है।
अधिभार के बारे में आप कब तक अंतिम निर्णय लेंगे?
यह एक नई अवधारणा है और भारत में लोग इससे पूरी तरह अवगत नहीं हैं। इसलिए हमें इस पर चर्चा करने, ग्राहकों को समझाने और उसके बाद लागू करने की आवश्यकता है।
आप तीसरी तिमाही में भूषण पावर ऐंड स्टील का सुदृढीकरण करना चाहते हैं। दूसरी तिमाही में एबिटा और शुद्ध लाभ कैसा रहा?
भूषण पावर ऐंड स्टील ने हमारे नेतृत्व में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। जुलाई से सितंबर तिमाही के दौरान इसने 7,60,000 टन बिक्री दर्ज की और 1,448 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ दर्ज किया। उसका सकल ऋण बोझ 10,000 करोड़ रुपये था और उसके पास 2,000 करोड़ रुपये की नकदी थी। इसलिए शुद्ध ऋण बोझ 8,000 करोड़ रुपये का रहा।