facebookmetapixel
भारत का फ्लैश PMI अक्टूबर में घटकर 59.9 पर, सर्विस सेक्टर में रही कमजोरीSIP Magic: 10 साल में 17% रिटर्न, SIP में मिडकैप फंड बना सबसे बड़ा हीरोनारायण मूर्ति और नंदन नीलेकणि ने Infosys Buyback से बनाई दूरी, जानिए क्यों नहीं बेच रहे शेयरस्टील की कीमतें 5 साल के निचले स्तर पर, सरकार ने बुलाई ‘ओपन हाउस’ मीटिंगईलॉन मस्क की Starlink भारत में उतरने को तैयार! 9 शहरों में लगेगा इंटरनेट का नया नेटवर्कट्रंप ने कनाडा के साथ व्यापार वार्ता तोड़ी, TV ad के चलते किया फैसला‘ऐड गुरु’ पियूष पांडे का 70 साल की उम्र में निधन, भारत के विज्ञापन जगत को दिलाई नई पहचानसोने-चांदी की कीमतों में आई नरमी, चेक करें MCX पर आज का भावMaruti और Mahindra पर दांव, Tata पर सतर्क – Auto sector पर मोतीलाल ओसवाल की रिपोर्ट चर्चा मेंट्रंप 2028 में फिर बनेंगे अमेरिकी राष्ट्रपति? स्टीव बैनन ने दिया बड़ा बयान

चीन की सख्ती से उर्वरक संकट गहराया, डीएपी की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर

भारत में यूरिया के बाद सबसे ज्यादा इस्तेमाल डीएपी का ही होता है और सालाना 100 से 110 लाख टन खपत में 50-60 लाख टन आयात होता है।

Last Updated- June 27, 2025 | 9:04 AM IST
fertilizer

उर्वरकों के निर्यात पर चीन की सख्ती के कारण पानी में घुलने वाले उर्वरकों की आपूर्ति पर ही फर्क नहीं पड़ा है बल्कि जमकर इस्तेमाल होने वाले डाई अमोनिया फॉस्फेट (DAP) के दाम भी इसकी वजह से चढ़ने लगे हैं। डीएपी के दाम जून में 800 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गए, जो पिछले कुछ महीनों में नहीं देखा गया था।

डीएपी के दाम बढ़ने से चालू वित्त वर्ष के लिए केंद्र का सब्सिडी का गणित गड़बड़ा सकता है और आयात करने वाली कंपनियों के मार्जिन को भी चोट लग सकती है। डीएपी के खुदरा दामों में सब्सिडी का बड़ा हिस्सा होता है। उद्योग सत्रों के मुताबिक 2024-25 में देश में करीब 46 लाख टन डीएपी का आयात किया था, जिसमें चीन की हिस्सेदारी केवल 8.5 लाख टन यानी 18.4 प्रतिशत थी। लेकिन 2023-24 में भारत में आयात हुए 56 लाख टन डीएपी में करीब 22 लाख टन यानी 39.2 प्रतिशत चीन से ही आया था। इस तरह केवल दो साल में चीन से डीएपी आयात करीब 61.3 प्रतिशत गिर गया।

भारत में यूरिया के बाद सबसे ज्यादा इस्तेमाल डीएपी का ही होता है और सालाना 100 से 110 लाख टन खपत में 50-60 लाख टन आयात होता है। इतना ही नहीं, डीएपी में इस्तेमाल होने वाली फॉस्फोसर और अमोनिया जैसे कच्चे माल का भी आयात करना पड़ता है। कारोबारी सूत्रों ने बताया कि आयातित फॉस्फोरस का भाव 10 डॉलर प्रति टन बढ़ने पर तैयार डीएपी का आयात मूल्य करीब 5 डॉलर प्रति टन बढ़ जाता है। इसी तरह अमोनिया की कीमत 30 डॉलर प्रति टन बढ़े तो डीएपी का दाम 12 डॉलर प्रति टन चढ़ जाता है।

व्यापारियों ने बताया कि चीन से डीपीए का आयात घटा तो भारत ने उसकी भरपाई के लिए पश्चिम एशिया खास तौर पर सऊदी अरब की कंपनियों का रुख कर लिया। मगर हाल में खाड़ी के इलाके में ईरान और इजरायल की जंग तथा होर्मुज स्ट्रेट बंद किए जाने की धमकियों ने बताया कि यह रास्ता भी जोखिम भरा है क्योंकि इसकी वजह से आयातित डीएपी के दाम बढ़ गए। जनवरी में डीएपी का मूल्य करीब 633 डॉलर प्रति टन (लागत और मालभाड़ा सहित) था, जो जून में बढ़कर 780 डॉलर प्रति टन हो गया।

उद्योग के सूत्रों के अनुसार भारत आने वाले तैयार डीपीए की लागत करीब 100 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई। सूत्रों के मुताबिक पानी में घुलनशील उर्वरकों (डब्ल्यूएसएफ) के मामले में कमी समय से महसूस की जा रही थी लेकिन यह अब अधिक बढ़ गई है।

First Published - June 27, 2025 | 8:50 AM IST

संबंधित पोस्ट