उर्वरकों के निर्यात पर चीन की सख्ती के कारण पानी में घुलने वाले उर्वरकों की आपूर्ति पर ही फर्क नहीं पड़ा है बल्कि जमकर इस्तेमाल होने वाले डाई अमोनिया फॉस्फेट (DAP) के दाम भी इसकी वजह से चढ़ने लगे हैं। डीएपी के दाम जून में 800 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गए, जो पिछले कुछ महीनों में नहीं देखा गया था।
डीएपी के दाम बढ़ने से चालू वित्त वर्ष के लिए केंद्र का सब्सिडी का गणित गड़बड़ा सकता है और आयात करने वाली कंपनियों के मार्जिन को भी चोट लग सकती है। डीएपी के खुदरा दामों में सब्सिडी का बड़ा हिस्सा होता है। उद्योग सत्रों के मुताबिक 2024-25 में देश में करीब 46 लाख टन डीएपी का आयात किया था, जिसमें चीन की हिस्सेदारी केवल 8.5 लाख टन यानी 18.4 प्रतिशत थी। लेकिन 2023-24 में भारत में आयात हुए 56 लाख टन डीएपी में करीब 22 लाख टन यानी 39.2 प्रतिशत चीन से ही आया था। इस तरह केवल दो साल में चीन से डीएपी आयात करीब 61.3 प्रतिशत गिर गया।
भारत में यूरिया के बाद सबसे ज्यादा इस्तेमाल डीएपी का ही होता है और सालाना 100 से 110 लाख टन खपत में 50-60 लाख टन आयात होता है। इतना ही नहीं, डीएपी में इस्तेमाल होने वाली फॉस्फोसर और अमोनिया जैसे कच्चे माल का भी आयात करना पड़ता है। कारोबारी सूत्रों ने बताया कि आयातित फॉस्फोरस का भाव 10 डॉलर प्रति टन बढ़ने पर तैयार डीएपी का आयात मूल्य करीब 5 डॉलर प्रति टन बढ़ जाता है। इसी तरह अमोनिया की कीमत 30 डॉलर प्रति टन बढ़े तो डीएपी का दाम 12 डॉलर प्रति टन चढ़ जाता है।
व्यापारियों ने बताया कि चीन से डीपीए का आयात घटा तो भारत ने उसकी भरपाई के लिए पश्चिम एशिया खास तौर पर सऊदी अरब की कंपनियों का रुख कर लिया। मगर हाल में खाड़ी के इलाके में ईरान और इजरायल की जंग तथा होर्मुज स्ट्रेट बंद किए जाने की धमकियों ने बताया कि यह रास्ता भी जोखिम भरा है क्योंकि इसकी वजह से आयातित डीएपी के दाम बढ़ गए। जनवरी में डीएपी का मूल्य करीब 633 डॉलर प्रति टन (लागत और मालभाड़ा सहित) था, जो जून में बढ़कर 780 डॉलर प्रति टन हो गया।
उद्योग के सूत्रों के अनुसार भारत आने वाले तैयार डीपीए की लागत करीब 100 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई। सूत्रों के मुताबिक पानी में घुलनशील उर्वरकों (डब्ल्यूएसएफ) के मामले में कमी समय से महसूस की जा रही थी लेकिन यह अब अधिक बढ़ गई है।