170 देशों में 4.5 करोड़ से अधिक कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले इंटरनैशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष फिलिप वरिन कॉप29 के दौरान भारत की यात्रा पर हैं। नई दिल्ली में बातचीत के दौरान उन्होंने वीनू संधू को बताया कि आज किसी भी निवेश को शुरू से ही सस्टेनेबिलिटी को ध्यान में रखना चाहिए और उन्होंने बताया कि ग्रीन ट्रेड फाइनैंस क्यों महत्वपूर्ण है। प्रमुख अंश…
आप मौजूदा वैश्विक व्यापार वातावरण का किस तरह आकलन करते हैं, खास तौर पर बढ़ते संरक्षणवाद और भू-राजनीतिक तनावों के लिहाज से?
इसका समाधान करने के लिए हमें अल्पावधि और दीर्घावधि दोनों ही दृष्टिकोणों पर विचार करने की जरूरत है। अल्पावधि में व्यापार और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में कोई खास व्यवधान नहीं देखा गया है। पूर्वानुमानों के अनुसार इस वर्ष वैश्विक व्यापार में 2.7 प्रतिशत तक और अगले वर्ष तीन प्रतिशत का इजाफा होने की उम्मीद है। हालांकि इस व्यापक तस्वीर के भीतर हमें अलग-अलग रुझान दिखते हैं। एशिया चार प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है, जबकि यूरोपीय संघ करीब एक प्रतिशत के साथ पिछड़ रहा है।
व्यापक अर्थव्यवस्था की यह स्थिरता कुछ अंतर्निहित बदलावों को छिपाती है। उदाहरण के लिए तनाव बढ़ रहा है, जैसा कि व्यापार बाधाओं में तीव्र वृद्धि से स्पष्ट होता है। पिछले साल वैश्विक स्तर पर 3,000 बाधाएं थीं, जो पांच साल पहले की 600 बाधाओं के मुकाबले महत्वपूर्ण उछाल है। ये बाधाएं, जिनमें निर्यात प्रतिबंध और यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र जैसे विनियामक उपाय शामिल हैं, विखंडन पैदा कर सकती हैं।
हालिया घटनाक्रम को देखे, तो गौतम अदाणी पर अमेरिकी संघीय अदालत में रिश्वत के आरोप में अभियोग लगाया गया है। क्या इससे कारोबारी गंतव्य के रूप में भारत की छवि प्रभावित होगी?
मैं इस तरह के विशिष्ट मामलों पर टिप्पणी नहीं कर सकता। अलबत्ता आईसीसी में हम कानून के शासन और नैतिक कारोाबरी कार्यप्रणाली के महत्व पर जोर देते हैं। हमारा संगठन मध्यस्थता में अपने काम और वैश्विक स्तर पर कानूनी मानकों को बनाए रखने के लिए जाना जाता है, जो भारत समेत किसी भी देश के लिए महत्वपूर्ण है।
आपको ऐसे प्रमुख रुझान कौन-से दिख रह हैं, जो अगले पांच साल के दौरान अंतरराष्ट्रीय व्यापार को आकार देंगे?
हम जो भू-राजनीतिक तनाव देख रहे हैं, वे निश्चित रूप से व्यापार को प्रभावित करेंगे, हालांकि उनके सटीक असर की भविष्यवाणी करना कठिन है। आईसीसी में हम डिजिटलीकरण, सस्टेनअबिलिटी और प्रमुख संचालकों के रूप में सर्कुलर इकॉनमी पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
वैश्विक व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र में आप भारत की भूमिका को किस तरह देखते हैं, खास तौर पर जी20 की उसकी अध्यक्षता के बाद?
भारत बेशक प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है, जिसका ब्रिक्स, तथाकथित ग्लोबल साउथ में महत्वपूर्ण प्रभाव है। सेवाओं, खास तौर पर आईटी और डिजिटल जैसे क्षेत्रों में देश की सफलता प्रमुख शक्ति है। भारत का बढ़ता हुआ लघु और मध्य उद्यम (एसएमई) नेटवर्क भी व्यापक संभावनाएं उपलब्ध करता है, खास तौर पर जब बिजनेस-टु-बिजनेस (बी2बी) लेन-देन में डिजिटलीकरण बढ़ता है, जो अब भी काफी हद तक कागज पर आधारित हैं।
आप वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं के संदर्भ में ‘मेक इन इंडिया’ पहल को किस तरह देखते हैं?
देश के विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के मामले में ‘मेक इन इंडिया’ पहल महत्वपूर्ण है, खास तौर इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में। हालांकि भारत ने सेवाओं के निर्यात में बड़ी सफलता देखी है, लेकिन वस्तु उत्पादन में अपनी स्थिति मजबूत करने की अब भी संभावना है, खास तौर पर इलेक्ट्रॉनिक्स और पुर्जों के विनिर्माण क्षेत्रों में। इससे भारत की अर्थव्यवस्था में विविधता लाने और इसे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में और ज्यादा एकीकृत करने में मदद मिलेगी, खास तौर पर अमेरिका और चीन जैसे उन देशों के साथ जो घरेलू उत्पादन पर जोर दे रहे हैं।
भारत सक्रिय रूप से मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) में लगा हुआ है। क्या आपको लगता है कि ब्रिटेन-भारत एफटीए जल्द ही साकार होगा?
हालांकि मैं ब्रिटेन-भारत एफटीए जैसी विशिष्ट बातचीत के परिणाम की भविष्यवाणी नहीं कर सकता, लेकिन आईसीसी मुक्त और निष्पक्ष व्यापार समझौतों का दमदार समर्थक है। एफटीए देशों को वैश्विक अर्थव्यवस्था में और अधिक गहराई से जुड़ने में मदद करते हैं, खास तौर ऐसे समय में जब डब्ल्यूटीओ जैसे बहुपक्षीय व्यापार तंत्रों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा हो।
भारत जैसे उभरते बाजार किस तरह आर्थिक विकास को सस्टेनेबल कार्यप्रणाली के साथ संतुलित कर सकते हैं?
अब निवेश, व्यापार और जलवायु के बीच चयन करने की बात नहीं रह गई है, अब सब एक समान है। आज किसी भी निवेश में शुरुआत से ही सस्टेनेबिलिटी को ध्यान में रखना चाहिए। भले ही आप कोई नया संयंत्र बना रहे हों या व्यापार समझौते कर रहे हों, शुरुआत में ही पर्यावरण संबंधी कार्यप्रणाली को एकीकृत करना सबसे ज्यादा किफायती लागत का तरीका है। अगर आप देर करेंगे, तो लागत बढ़ेगी ही।