मंदी और महंगाई से जूझती भारतीय विमानन कंपनियों को राहत देने में हवाई अड्डे भी खासी भूमिका निभा सकते हैं।
शायद इसीलिए केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने आज हवाई अड्डा प्रशासनों से विमानों के लैंडिंग और पार्किंग शुल्क में कटौती करने की अपील की। पटेल ने ‘बिजनेस स्टैंडर्ड ओपन स्काई सम्मिट 2008’ में विमानन उद्योग के सामने आए तमाम संकटों के बारे में विस्तार से चर्चा की।
साल भर में ही लगभग दोगुने महंगे हो गए विमानन ईंधन एटीएफ से परेशान इन कंपनियों को राहत देने के लिए उन्होंने यह रास्ता सुझाया। हालांकि मंत्री ने यह भी कहा कि उनके मंत्रालय ने इस बारे में हवाई अड्डों से किसी तरह की आधिकारिक बातचीत अभी शुरू नहीं की है।
देश में हवाई अड्डों के शुल्क विदेशों के मुकाबले 50 से 60 फीसद ज्यादा हैं। विमानन कंपनियों की लागत में 12 से 15 फीसद हिस्सा इसी का होता है। पटेल ने कहा, ‘राहत देने का यह तरीका है, जिस पर हम ध्यान दे रहे हैं। इसके अलावा एटीएफ पर राज्यों के बिक्री कर और केंद्रीय शुल्कों में भी कटौती से फायदा हो सकता है।’
विमानन कंपनियों को हो रहे नुकसान का जिक्र आने पर पटेल ने कहा कि फिलहाल इस उद्योग को तकरीबन 8,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है और इसमें से आधे से ज्यादा एटीएफ महंगा होने की वजह से हुआ है। देश में विमानन कंपनियों के लागत खर्च का आधे से भी अधिक हिस्सा एटीएफ के खाते में चला जाता है। उन्होंने कहा कि एटीएफ की कीमत में 50 से 60 फीसद की कमी लानी होगी, ताकि यह अंतरराष्ट्रीय कीमतों के बराबर हो जाए। इससे कंपनियों की लागत काफी कम हो जाएगी।
विमानन कंपनियां भी उनकी इस बात से पूरी तरह सहमत हैं। उन्होंने माना कि एटीएफ के दाम अंतरराष्ट्रीय कीमतों के मुताबिक करने से विमानन कंपनियां फिर से पहले की तरह उड़ान भरने लगेंगी। सिंपलीफ्लाई डेक्कन के एक अधिकारी ने कहा, ‘अगर ये दोनों कदम उठा लिए गए यानी एटीएफ सस्ता हो गया और लैंडिंग तथा पार्किंग शुल्क भी कम हो गए, तो हम घाटे से उबर जाएंगे।’
लेकिन इस उद्योग को नुकसान से बचाने के लिए सरकार की ओर से नकद सहायता मुहैया कराने के मामले में पटेल ने किसी तरह की राहत की बात नहीं की। उन्होंने कहा कि घाटे की भरपाई के लिए चेक जारी करना भारत सरकार के लिए संभव नहीं है। हां, उन्होंने यह जरूर कहा कि राज्य सरकारों को एटीएफ बिक्री का मतलब राजस्व की उगाही नहीं मानना चाहिए क्योंकि हवाई उड़ानें नहीं होने पर राज्यों का विकास ठप पड़ जाएगा।