पिछले साल फरवरी में चेन्नई की दवा कंपनी ग्लोबल फार्मा हेल्थकेयर की जांच शुरू हो गई क्योंकि अमेरिकी सरकारी एजेंसी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने उसके आई ड्रॉप पर सवाल खड़ा कर दिया।
सीडीसी ने कहा था कि अमेरिका में बिक रहे उसके आई ड्रॉप में बैक्टीरिया का संक्रमण हो सकता है। मगर सरकारी सूत्रों ने बताया कि नियामक ने गुणवत्ता सुनिश्चित करने और सुधार करने के लिए कुछ उपाय किए, जिससे एक साल बाद अब कंपनी को केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) से मानक गुणवत्ता का प्रमाणपत्र मिल गया है।
यह किसी एक कंपनी की बात नहीं है। सरकार ने देश भर की दवा कंपनियों में जोखिम की जांच की और उसमें नियामक की सख्ती झेलने वाली कई दवा कंपनियां सही उपाय अपनाने के बाद धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही हैं।
उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश में करीब 7 कंपनियों को काम रोकने के आदेश दिए गए थे। मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने बताया कि उनमें से 6 पर लगी रोक वापस ली जा चुकी है और सातवीं कंपनी पर से रोक भी हटाई जा रही है।
इसी तरह तमिलनाडु में विनिर्माण के खराब तौर-तरीकों पर लगाम कसने का सीडीएससीओ का अभियान शुरू होने के बाद अधिकारियों ने 6 कंपनियों के उत्पादन पर रोक लगाई थी। इसका मकसद कंपनियों से अच्छे उत्पादन मानकों का पालन कराना था। इससे पहले ऐसे निरीक्षण 2016-17 में हुए थे। इन कंपनियों द्वारा ने सुधार करने तथा कमियां दूर करने के सभी उपाय अपनाए, जिसके बाद ये आदेश वापस ले लिए गए।
तमिलनाडु में संयुक्त निदेशक (औषधि नियंत्रण) एमएन श्रीधर ने कहा, ‘हमने नोटिस जारी किया और उन्होंने अपने तरीके सही कर लिए। कमियां दूर करने और उन्हें रोकने के उपाय अपना लिए गए तो उत्पादन रोकने के आदेश भी वापस ले लिए गए।’ इन छह कंपनियों में अब केवल एक कंपनी है, जिसके उत्पादन पर रोक आंशिक तौर पर हटाई गई है।
यह कार्रवाई दवा विनिर्माताओं से तय खुराक वाली कॉम्बिनेशन दवा (एफडीसी), टीकों, सिरप, जटिल फॉर्म्यूलेशन और बल्क ड्रग्स के औचक नमूनों की जांच के बाद की गई। इसका मकसद यह पक्क करना था कि उत्पादन के दौरान सभी मानकों का पालन हो रहा है या नहीं।
सीडीएससीओ 2022 के अंत से ही राज्य औषधि नियंत्रकों (एसडीसी) के साथ मिलकर दवा बनाने वाले संयंत्रों में जोखिम की जांच करता आ रहा है। स्वास्थ्य राज्य मंत्री भारती पवार ने राज्य सभा में बताया कि दिसंबर 2023 तक 261 कारखानों का मुआयना किया गया है।
उन्होंने कहा कि इन कंपनियों की पहचान इस आधार पर की गई कि उनकी कितनी दवाएं मानक गुणवत्ता पर नाकाम रहीं, कितनी शिकायतें आईं और उनके द्वारा बनाई गई दवाएं कितनी जरूरी और अहम हैं। जांच के नतीजों को देखकर राज्य लाइसेंसिंग अधिकारियों ने 200 से ज्यादा कार्रवाई की हैं। इनमें कारण बताओ नोटिस जारी करना, उत्पादन रोकने का आदेश, लाइसेंस रोकना या रद्द करना शामिल हैं।
पिछले साल हिमाचल प्रदेश में 17 कंपनियों को तय पैमानों पर नहीं चलने के कारण उत्पादन रोकने के लिए कहा गया था। हिमाचल प्रदेश में बद्दी दवा बनाने का बड़ा ठिकाना है। अप्रैल 2023 में गुजरात में भी 6 दवा कंपनियों के करीब 15 उत्पादों के लाइसेंस खत्म कर दिए गए। इन राज्यों के औषधि नियंत्रकों से इस मसले पर बात नहीं हो पाई।
मगर उद्योग सूत्रों के मुताबिक करीब एक-तिहाई कंपनियों ने बताई गई खामियां दूर कर ली हैं। दवा कंपनियों से अपेक्षा की जाती है कि वे औषधि एवं सौंदर्य प्रसाधन नियम, 1945 के तहत दी गई अच्छे तौर तरीकों की अनुसूची एम का पालन करें।