इंडियन एयरलाइंस ने आज अपने विमानों में जब ईंधन भरवाया तो उसे एक किलोलीटर विमानन ईंधन (एटीएफ) के लिए 68,000 रुपये देने पडे।
लेकिन उसी वक्त सिंगापुर में कई विमान 41,500 रुपये प्रति किलोलीटर की कीमत से एटीएफ खरीद रहे थे यानी भारतीय ईंधन के मुकाबले 39 फीसदी कम कीमत दे रहे थे।
साफ है कि एटीएफ की कीमतों में आई बढ़ोतरी की वजह से भारतीय एयरलाइनों के बहीखाते बुरी तरह से बिगड़ गए हैं। नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल के मुताबिक उद्योग के लिए चालू वित्त वर्ष का अंत 8000 करोड़ रुपये के घाटे के साथ होगा जो 2007-08 में 4,000 करोड़ रुपये के नुकसान से दोगुना है।
विमानन कंसल्टेंसी कंपनी सेंटर फॉर एशिया पैसीफिक एविएशन का अनुमान है कि विमानन उद्योग को 10,000 करोड़ रुपये की चपत लग सकती है। यदि तेल विपणन कंपनियां मौजूदा वैश्विक कीमतों के आधार पर एटीएफ की कीमतें रखती हैं तो एयरलाइनों को अपना सालाना घाटा कम करने में काफी मदद मिलेगी। प्रति किलोलीटर पर 26,500 रुपये की बचत का मतलब है 25 लाख किलोलीटर की सालाना खपत पर 6,625 करोड़ रुपये की कुल बचत होगी।
स्पाइसजेट के सीएफओ पार्थ सारथी बसु ने कहा, ‘एटीएफ की कीमत में 20,000 रुपये प्रति किलोलीटर तक की कटौती से एयरलाइन को अपने सालाना ईंधन खर्च में 400 करोड़ रुपये की कमी लाने में मदद मिल सकती है। ईंधन कीमतों के अंतर्राष्ट्रीय कीमत के समान होने से 41 फीसदी बाजार भागीदारी वाली इस कंपनी को काफी मदद मिलेगी।’
हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि एटीएफ कीमतों में कटौती का मतलब यह नहीं होगा कि सभी एयरलाइनें घाटे से उबर जाएंगी। एक विश्लेषक ने कहा, ‘यह इस बात पर निर्भर करता है कि एयरलाइन को घाटा किस तरह से पहुंच रहा है या आप विमानों को किस तरह से संचालित करते हैं। तेल कीमतों में इजाफा होने से पहले जो एयरलाइनें अधिक मुनाफा कमा रही थीं, वे अपने घाटे को दूर कर सकती हैं।’
सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या तेल विपणन कंपनियां एटीएफ कीमतों में कमी लाने के लिए तैयार होंगी? तकरीबन 95 फीसदी बाजार पर सरकारी कंपनियों का दबदबा है। ये विपणन कंपनियां डीजल, पेट्रोल, केरोसिन और तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) सस्ती कीमत पर बेचने को मजबूर हैं।
इस उद्योग के जानकारों का कहना है कि सरकारी कंपनियां एटीएफ कीमतों में कटौती करने के लिए इच्छुक नहीं हैं, क्योंकि निकट भविष्य में उन्हें पेट्रोल और डीजल की कीमतों में सुधार की गुंजाइश नहीं दिख रही है। कीमत बढ़ोतरी की हालिया घोषणा से मुद्रास्फीति में बदलाव आया है। सरकार अगले आम चुनाव की तैयारी कर रही है, इसलिए भी इन कीमतों में अधिक बढ़ोतरी की संभावना नहीं दिख रही है।