बीएस बातचीत
केंद्र सरकार ने 41 वाणिज्यिक कोयला खदानों की नीलामी के लिए कोविड-19 की वजह से आई मंदी की बाधाओं को पार कर लिया है। श्रेया जय और ज्योति मुकुल के साथ एक साक्षात्कार में केंद्रीय कोयला, खान एवं संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि पर्यावरण की कीमत पर कोयला उत्पादन नहीं किया जा सकता।
क्या आप कोयला खनन के लिए उद्योग की प्रतिक्रिया से संतुष्ट हैं जबकि तीन खदानों को एक ही बोली मिली है?
मेरा मानना है कि सफलता की दर अच्छी है। 2014 से पहले कोयला सहित प्राकृतिक संसाधनों को चाहने वाले लोगों के मन में भय होता था। इसमें कई कानूनी मामले और नीतिगत अक्षमता का पेच था। इसके बाद 2015-2020 के दौरान 116 कोयला खदानों की नीलामी प्रक्रिया शुरू की गई लेकिन केवल 35 खदानों की ही सफ लतापूर्वक नीलामी हो पाई। इस बार सरकारी स्तर पर यह सोच थी कि कम खदानों की नीलामी की जाए लेकिन राजनीतिक स्तर पर हम ज्यादा नीलामी करना चाहते थे। हमने नीलामी के लिए तैयार 41 कोयला खदानों की पेशकश करने का जोखिम उठाया। महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ की आपत्तियों को ध्यान में रखने के बाद कुल 38 खदान रह गईं जिसके लिए 76 बोलीदाताओं ने रुचि दिखाई और 43 बोली लगाई। 19 खदानों के लिए दो से ज्यादा बोली लगी। तीन खदानों के लिए एक ही बोली लगी। हमारी नीति में एक प्रावधान है कि हम एक ही बोली आने पर इसकी दोबारा नीलामी करें। इसी वजह से हमारी सफलता दर 60 फीसदी है।
खदानों में उत्पादन कब होगा?
मुझे लगता है कि 18.25 महीनों में हम उत्पादन शुरू कर देंगे क्योंकि ये सभी पुरानी खदानें हैं।
झारखंड ने कोविड के समय और मंदी की वजह से कम राजस्व वसूली का हवाला देते हुए नीलामी के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर क्यों कि जबकि संभवत: एक खदान को वहां सबसे अधिक राजस्व हिस्सेदारी हासिल हुई?
मैंने और मंत्रालय के अधिकारियों ने जुलाई में झारखंड के मुख्यमंत्री से मुलाकात कर उन्हें समझाया था। उस समय वह काफी सकारात्मक थे। उन्होंने कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा भूमि के भुगतान का मुद्दा उठाया लेकिन हमने राज्य को 300 करोड़ रुपये का भुगतान करने के साथ इसका हल किया। मैंने सीआईएल से संयुक्त सर्वेक्षण के माध्यम से भूमि भुगतान की अन्य मांगों का आकलन करने और तत्काल भुगतान करने को कहा। इसके बावजूद वे अदालत चले गए। लेकिन उन्हें नीलामी से करीब 3,000 करोड़ रुपये के मिल रहे हैं।
क्या राज्यों को नीलामी पर इस वजह से आपत्ति है कि उन्हें जमीनी स्तर पर विरोध का सामना करना पड़ता है और कोयला को प्रदूषणकारी माना जाता है?
हम जिन खदानों की नीलामी कर रहे हैं वे नई नहीं हैं। वे कोयला खदान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015 का हिस्सा थे। झारखंड मुक्ति मोर्चा संयुक्त प्रगतिशील सरकार का हिस्सा थी तब खदानें आवंटित की गई थीं। ये खदानें या तो चालू नहीं थीं या इनका आवंटन रद्द होने की वजह से सीआईएल इनकी संरक्षक थी। दूसरी बात यह है कि हमने कोयले का आयात नहीं करने का फैसला किया है और इसके लिए राज्य और केंद्र को मिलकर काम करना चाहिए। हमारे पास बड़े भंडार होने के बावजूद 2018-19 के दौरान आयातित कोयले पर करीब 2.40 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए। सीआईएल भूमि और पुनर्वास के लिए भुगतान करती है। यह बंजर भूमि पर मकान बना रही है, रोजगार दे रही है और मुआवजा भी दे रही है।
कोयला स्वच्छ और खनन को पर्यावरण के लिए कम हानिकारक बनाने के लिए क्या योजना है?
सार्वजनिक क्षेत्र की कोयला कंपनियों के पास स्वच्छ कोयला तकनीक के नए कारोबारी क्षेत्रों और नई खान विकास परियोजनाओं में वित्त वर्ष 2030 तक लगभग 2ण्5 लाख करोड़ रुपये की निवेश योजना है। वे विविध परियोजनाओं में 1.42 लाख करोड़ रुपये का निवेश कर रहे हैं जिसमें सौर और ताप बिजली परियोजनाएं सौर वेफ र उत्पादन इकाइयां तथा स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकी भी शामिल है। 10 करोड़ टन कोयला गैसीकरण के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां और निजी कंपनियां दोनों ही 2030 तक 4 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश करेंगी। सीआईएल ने खदान पर्यावरण ऑडिटिंग के लिए आईसीएफ आरई के साथ समझौता पत्र पर भी हस्ताक्षर किए हैं। हमें इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि चीन 3.5 अरब टन कोयला जलाता है और वे किफायती ताप बिजली का उत्पादन कर रहे हैं। उस देश में कुछ भी नहीं रुका है। ऐसे में हमें यह देखना होगा कि भारत में प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत क्या है और उत्सर्जन क्या है? पेड़ों की पूजा की परंपरा की वजह से ही लोग पेड़ कम काटते हैं। प्रधानमंत्री ने स्वयं इसकी अगुवाई की है और वे पर्यावरण के मुद्दों पर दुनिया का नेतृत्व कर रहे हैं।