बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने देश के कई हिस्सों में फसल तो बिगाड़ी ही है फलों के राजा आम का भी हाल बेहाल कर दिया है। उत्तर भारत में पैदा होने वाले दशहरी, लंगड़ा, चौसा आम की फसल पर पानी फिरता दिख रहा है तो महाराष्ट्र के अल्फांसो की सेहत लू के कारण बिगड़ गई है।
दक्षिण भारत का सफेदा भी मौसम की मार से परेशान है। इस कारण देश में इस साल आम उत्पादन में 30 फीसदी तक कमी आने की आशंका है। उत्पादन कम रहा तो इस सीजन में आम के भाव ऊंचे रह सकते हैं।
मुंबई और आसपास के इलाकों में मार्च भर आम की काफी अच्छी आवक रही मगर अप्रैल शुरू होते ही यह कम होने लगी। महाराष्ट्र के देवगढ़, रत्नागिरि इलाके से आने वाले अल्फांसो आम की आवक में पिछले एक-दो हफ्तों में 25-30 फीसदी कमी आई है। हालांकि दक्षिण भारत से आने वाले हापुस, तोतापरी, बादामी और लालबाग किस्म के आमों की आवक पिछले महीने के मुकाबले बढ़ी है मगर फसल खराब होने के कारण इसमें भी कमी आना तय है। उत्तर भारत में अभी आम तैयार नहीं हुआ है। इस कारण अप्रैल-मई में महंगे आम के लिए तैयार रहिए। मुंबई एपीएमसी में फल बाजार के निदेशक
संजय पंसारे ने बताया कि मार्च में इतना अधिक उत्पादन पिछले कुछ वर्षों में नहीं देखा गया था। आम तौर पर आम का सीजन अप्रैल में शुरू होता है, लेकिन इस बार कमाल हो गया। अक्टूबर-नवंबर में लगने वाले बौर के बल पर एपीएमसी में पिछले पांच साल में आम की सबसे ज्यादा आवक दर्ज की गई। मगर अप्रैल शुरू होते ही इसमें कमी आ गई।
पिछले महीने महाराष्ट्र के अलग अलग हिस्से से हर दिन करीब 45-50 हजार पेटी आम आ रहा था मगर इस समय 35,000 पेटियां ही आ रही हैं। दक्षिण भारत से पिछले महीने रोजाना 10-15 हजार पेटी की औसत आवक थी, जो अब बढ़कर 30,000 के करीब पहुंच गई है। कुल आपूर्ति घटने के कारण मार्च के मुकाबले इस महीने आम करीब 30 फीसदी महंगा रहने वाला है।
महाराष्ट्र में आम की खेती पर बेमौसम लू की भी मार पड़ी थी, जिसके कारण इस बार उत्पादन 50-60 फीसदी कम रहने की आशंका जताई जा रही है। अप्रैल के मध्य से मई के अंत तक अल्फांसो आम के पकने का सीजन होता है। मगर फरवरी-मार्च में बेमौसम लू चलने के कारण 75 फीसदी तक अल्फांसो बिगड़ जाने की आशंका है। रत्नागिरि जिले के आम किसानों का कहना है कि लू ने बहुत नुकसान पहुंचाया है।
देवगढ़ के आम किसान विद्याधर जोशी कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन का पूरा असर आम की खेती पर दिख रहा है। फरवरी के अंत और मार्च की शुरुआत में लू ने फसल खराब कर दी और कीट-पतंगों से बचाव के फेर में कीटनाशक के छिड़काव ने लागत बढ़ा दी। देवगढ़ और रत्नागिरि में अल्फांसो आम की खेती बड़े स्तर पर की जाती है।
फरवरी और मार्च में बारिश होने से तो आम को बहुत नुकसान नहीं पहुंचा मगर मौसम में कई बार बदलाव होने से पेड़ों में आम के बौर ही नहीं आए, जिसकी वजह से उत्पादन कम हुआ है। महाराष्ट्र राज्य आम उत्पादक संघ के मुताबिक अल्फांसो आम दो चरणों में पकता है। पहले चरण का लगभग 30 फीसदी आम फरवरी-मार्च में ही बाजार में आ जाता है और दूसरे चरण में होने वाला 70 फीसदी आम अप्रैल-मई में आता है। लेकिन इस बार अप्रैल-मई में आने वाला आम बागों से गायब है।
पंसारे ने कहा कि सर्दियों में अनुकूल मौसम होने की वजह से बाजार में अल्फांसो की आवक पिछले साल मार्च की तुलना में तीन गुना बढ़ी है, लेकिन गर्मी के मौसम में होने वाले आम की फसल को 75 फीसदी तक नुकसान पहुंचने की आशंका है।
उत्तर भारत में लगने वाली आम की विभिन्न किस्मों को ज्यादा नुकसान हुआ है। किसानों के मुताबिक इस बार फल बहुत अच्छा लगा था मगर पिछले दिनों हुई बेमौसम बारिश ने उत्तर भारत में आम की फसल को लगभग चौपट कर दिया। मार्च के महीने में कई बार बारिश और आंधी आई तथा ओले भी पड़ गए। इससे आम के बौर और टिकोरे झड़ गए।
मलिहाबाद के बागबां संजीव सिंह कहते हैं कि आम के टिकोरे गिरने से उपज का करीब 30 फीसदी हिस्सा बरबाद हो गया है। उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के आम उत्पादक किसान बुद्धू सोनकर भी मायूस हैं। पिछले साल उनके यहां आम की अच्छी पैदावार नहीं हुई थी मगर सोनकर कहते हैं कि इस साल पेड़ो में अच्छी तादाद में आम आए थे और लग रहा था कि पिछले साल का घाटा इस बार पूरा हो जाएगा। किंतु बारिश, आंधी और ओले ने उम्मीद पर पानी फेर दिया।
भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलूरु के निदेशक डॉ संजय सिंह के मुताबिक मौसम में नमी ज्यादा होने से आम की फसल पर फफूंद और कीट लगने की घटनाएं भी काफी हो रही हैं। आम के बौर में कीट लगने से बौर जल रहे हैं, जिसके नतीचजन आम की फसल में 15-20 फीसदी तक उत्पादन कम हो सकता है।
फफूंद के कारण आम की फसल पर दाग आ जाएगा, जिससे किसानों और व्यापारियों को दाम भी अच्छे नहीं मिलेंगे। सिंह के मुताबिक आम की तरह दूसरे मौसमी फलों की फसल भी खराब हुई है। देश में पपीते, लीची, अंगूर, संतरे और केले की फसल को भी भारी नुकसान हुआ है।