नीति आयोग के सदस्य (कृषि) रमेश चंद का मानना है कि कोविड-19 की दूसरी लहर से देश के कृषि क्षेत्र पर किसी तरह का कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि ग्रामीण इलाकों में संक्रमण मई में फैला है, उस समय कृषि से संबंधित गतिविधियां बहुत कम होती हैं। कृषि क्षेत्र की वृद्धि के बारे में चंद ने कहा कि 2021-22 में क्षेत्र की वृद्धि दर 3 प्रतिशत से अधिक रहेगी। बीते वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 3.6 प्रतिशत रही थी।
चंद ने कहा कि अभी सब्सिडी, मूल्य और प्रौद्योगिकी पर भारत की नीति बहुत ज्यादा चावल, गेहूं और गन्ने के पक्ष में झुकी हुई है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि देश में खरीद और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर नीतियों को दलहनों के पक्ष में बनाया जाना चाहिए। नीति आयोग के सदस्य ने कहा, ‘ग्रामीण इलाकों में कोविड-19 संक्रमण मई में फैलना शुरू हुआ था। मई में कृषि गतिविधियां काफी सीमित रहती हैं। विशेष रूप से कृषि जमीन से जुड़ी गतिविधियां।’ उन्होंने कहा कि मई में किसी फसल की बुआई और कटाई नहीं होती। सिर्फ कुछ सब्जियों तथा ‘ऑफ सीजन’ फसलों की खेती होती है। चंद ने कहा कि मार्च के महीने या अप्रैल के मध्य तक कृषि गतिविधियां चरम पर होती हैं। उसके बाद इनमें कमी आती है। मॉनसून के आगमन के साथ ये गतिविधियां फिर जोर पकड़ती हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे में यदि मई से जून के मध्य तक श्रमिकों की उपलब्धता कम भी रहती है, तो इससे कृषि पर कोई प्रभाव नहीं पडऩे वाला।
इस्पात के बढ़ते दाम पर प्रधानमंत्री करें हस्तक्षेप
सूक्ष्म, लघु एवं मझोले (एमएसएमई) क्षेत्र के इंजीनियरिंग निर्यातकों ने इस्पात की बढ़ती कीमतों के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप की अपील की है। इन निर्यातकों का कहना है कि उद्योग को अलॉय और अन्य सामान उचित मूल्य पर चाहिए जिससे वैश्विक बाजारों में मूल्यवर्धित उत्पादों की निर्यात प़्रतिस्पर्धा को कायम रखा जा सके। लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एससी राल्हन ने कहा कि कई प्रतिद्वंद्वी देश विशेष रूप से चीन आदि विनिर्माण इकाइयों को इस्पात और अन्य सामान उचित मूल्य पर उपलब्ध कराकर समर्थन देते हैं।
उन्होंने कहा कि भारत धीरे-धीरे मूल्य वर्धित उत्पाद खंड में चीन से अपना बाजार गंवा रहा है। निर्यात में हालिया वृद्धि की वजह धातु और अन्य जिंसों की कीमतों में बढ़ोतरी है। उन्होंने कहा कि तैयार इंजीनियरिंग उत्पादों के निर्यात में भारी गिरावट देखने को मिली है। भाषा