इस्पात मंत्रालय ने आगामी 2011-12 तक इस्पात उत्पादन दोगुना कर 12.40 करोड़ टन करने का लक्ष्य रखा है।
यही नहीं 2020 तक इसे बढ़ाकर 28 करोड़ टन करने का लक्ष्य है। इस्पात मंत्री रामविलास पासवान ने शुक्रवार को राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान बताया कि 2004 में इस्पात उत्पादन के मामले में भारत का आठवां स्थान था पर अब देश पांचवें स्थान पर पहुंच चुका है।
उल्लेखनीय है कि भारत सालाना 5.40 करोड़ टन इस्पात का उत्पादन करता है। पासवान ने कहा कि राष्ट्रीय इस्पात नीति में 2020 तक 12.40 करोड़ टन इस्पात उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन अब इस उत्पादन लक्ष्य को 2011-12 में ही पाने की योजना रखी गई है।
अब तो 2020 तक उत्पादन क्षमता बढ़ाकर 28 करोड़ टन करने की योजना बनाई गई है। पासवान ने कहा कि इस्पात मंत्रालय का मानना था कि उच्च गुणवत्ता वाले लौह अयस्क का देश में सीमित भंडार है। इसलिए या तो इसका निर्यात नहीं करना चाहिए या फिर इसे हतोत्साहित करना चाहिए।
हालांकि लौह अयस्क के निर्यात को पूरी तरह रोकना असंभव है क्योंकि खानों में तकरीबन 5 लाख लोग काम करते हैं और उनके रोजगार को लेकर कोई जोखिम नहीं उठाया जा सकता। उन्होंने कहा कि लौह अयस्क पर पहले ही निर्यात कर लगाया जा चुका है।
वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण इस्पात की खपत में कमी हुई है। इसकी खपत 13 फीसदी के उच्चस्तर से घटकर महज 1.75 प्रतिशत रह गई है। इस्पात उत्पादों की कीमत भी जून के बाद काफी घटी है।
पासवान ने कहा कि मंत्रालय उद्योग जगत से विचार-विमर्श करता रहा है और हाल में सरकार ने फिर इस्पात के सभी उत्पादों पर से, केवल मेल्टिंग सैप को छोड़ कर, निर्यात कर वापस ले लिया है। यह कदम उत्पादकों की सहायता के लिए उठाया गया है।