केंद्र सरकार ने करीब 60 लाख टन चीनी निर्यात करने के लिए चीनी मिलों को 3,500 करोड़ रुपये सब्सिडी देने को आज मंजूरी दे दी। यह सब्सिडी अक्टूबर से शुरू हो रहे विपणन सत्र 2020-21 के लिए है।
इसके अलावा मंत्रिमंडल ने करीब 5,360 करोड़ रुपये के लंबित निर्यात सब्सिडी बकाये को भी हरी झंडी दे दी, जिसे एक सप्ताह के भीतर एस्क्रॉ खाते के माध्यम से किसानों के बैंक खातों में सीधे हस्तांतरित किया जाएगा। दोनों फैसलों का मतलब चालू साल में मिलों को गन्ना किसानों का समय से भुगतान करने में सक्षम बनाना और गन्ने के बकाये का भुगतान करना है। सरकार के सूत्रों के मुताबिक 10 दिसंबर 2020 तक 2019-20 सत्र से गन्ने का 3,574 करोड़ रुपये के करीब बकाया है।
यह मंजूरी ऐसे समय में आई है, जब हजारों किसान केंद्र सरकार के हालिया कृषि अधिनियमों का विरोध कर रहे हैं, जिनमें तमाम किसान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना उत्पादक क्षेत्र के हैं।
चीनी के 60 लाख टन अनुमानित निर्यात से उद्योग को मौजूदा अंतरराष्ट्रीय दाम के हिसाब से करीब 18,000 करोड़ रुपये राजस्व की मदद मिलेगी और इससे उन्हें चालू विपणन वर्ष के दौरान बकाये के भुगतान में मदद मिलेगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल दोनों ने ही फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह किसानों के हित में लिया गया फैसला है। सीसीईए ने चालू साल के लिए 6 रुपये प्रति किलो सब्सिडी को मंजूरी दी है, जो 2019-20 में करीब 10.50 रुपये प्रति किलो थी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें बेहतर होने को ध्यान में रखते हुए यह फैसला किया गया है। इस फैसले के बारे में संवाददाताओं को जानकारी देते हुए प्रकाश जावडेकर ने कहा कि ‘चीनी उद्योग और गन्ना किसान दोनों ही संकट में हैं’ क्योंकि घरेलू उत्पादन की लागत पिछले 2-3 साल से बहुत ज्यादा है। इस साल भी चीनी का उत्पादन 310 लाख टन रहने की संभावना है, जबकि सालाना मांग 260 लाख टन है।
सब्सिडी का मकसद हैंडलिंग, अपग्रेडिंग और अन्य प्रसंस्करण लागत व अंतरराष्ट्रीय और आंतरिक परिवहन और ढुलाई शुल्क सहित विपणन लागत पर आने वाले व्यय की भरपाई करना है।
इसके पहले के विपणन वर्ष 2019-20 (अक्टूबर-सितंबर) में सराकर ने करीब 10,448 रुपये प्रति टन निर्यात सब्सिडी दी थी, जिसका खजाने पर 6,268 करोड़ रुपये बोझ पड़ा था। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 2019-20 (अक्टूबर-सितंबर) सत्र में 60 लाख टन निर्यात का अनिवार्य कोटा तय किया गया था, जबकि मिलों ने 57 लाख टन चीनी का निर्यात किया।
विश्व के दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक देश ने पिछले 2 साल से चीनी निर्यात सब्सिडी देनी शुरू की है, जिससे चीनी का अतिरिक्त स्टॉक कम किया जा सके और नकदी के संकट से जूझ रही चीनी मिलों को किसानों को गन्ने के दाम का बकाया भुगतान करने में मदद मिले।
इस फैसले का स्वागत करते हुए इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा कि हालांकि मौजूदा सत्र के ढाई महीने बीत चुके हैं, लेकिन कुछ बड़े आयातक देश अभी भी पूछताछ कर रहे हैं, साथ ही थाईलैंड मेंं चीनी का उत्पादन गिरने से भारत के लिए एक मौका है कि वह अपने परंपरागत बाजारों इंडोनेशिया व मलेशिया आदि को निर्यात कर सके।
