इस्पात कंपनियों ने फ्लैट व लॉन्ग स्टील उत्पादों की कीमतों में जुलाई में 1,200 रुपये से लेकर 2,000 रुपये प्रति टन की कटौती की है, लेकिन आने वाले समय में इसमें बढ़ोतरी की गुंजाइश हो सकती है।
आर्सेलरमित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया ने कीमतों में करीब 1,500 रुपये से 2,000 रुपये प्रति टन की कटौती की है जबकि जिंदल स्टील ऐंड पावर के सूत्रों ने कहा कि हॉट रोल्ड कॉइल, रीबार और अन्य उत्पादों की कीमतें 1,500-2,000 रुपये प्रति टन घटाई गई है। उधर, जेएसडब्ल्यू स्टील के सूत्रोंं ने कहा कि कीमतें 1,200 रुपये से 1,800 रुपये प्रति टन घटाई गई है।
हालांकि कंपनियों का मानना है कि यह कटौती अस्थायी है और जब देसी मांग पटरी पर आ जाएगी तो कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है।
आर्सेलरमित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया के मुख्य विपणन अधिकारी रंजन धर ने कहा, इस गिरावट की कोई वजह नहीं है क्योंकि आयात की कीमत अभी भी जून की देसी कीमतों से ज्यादा है। उन्होंने कहा, कोविड की दूसरी लहर के बाद देसी मांग निकालने के लिए ऐसा कर रहे हैं और इसके जरिये हम स्टील का इस्तेमाल करने वालों को तेजी से सुधार लाने में मदद कर रहे हैं। आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीमत की चाल और मांग में सुधार के हिसाब से कीमतें बढ़ सकती हैं।
एक अग्रणी स्टील कंपनी ने कहा, लागत का ढांचा नहीं बदला है। लौह अयस्क अभी भी मजबूत है और पिछले आठ हफ्ते में कोकिंग कोल (ऑस्ट्रेलिया) की हाजिर कीमतें 108 डॉलर प्रति टन से 199 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई है।
स्टीलमिंट के आंकड़ोंं के मुताबिक, ओडिशा के फाइंस की कीमतें 31 मई से 28 जून के बीच 9,450 रुपये प्रति टन से 10,000 रुपये प्रति टन हो गई जबकि लंप्स की कीमतें इस अवधि में 13,750 रुपये प्रति टन से बढ़कर 14,000 रुपये प्रति टन पर पहुंच गई।
उत्पादक ने कहा, यह गिरावट अस्थायी है और रूस के हस्तक्षेप के कारण है। जब भारतीय अर्थव्यवस्था खुल जाएगी तो कीमतें संशोधित होने की पूरी संभावना है। लॉन्ग प्रॉडक्ट के मामले में द्वितीयक कंपनियों का मार्जिन अब नकारात्मक हो गया है।
संशोधन के बाद हॉट रोल्ड कॉइल की कीमतें अब 68,500 रुपये प्रति टन है जबकि आयातित कीमत 77,000 रुपये प्रति टन। रीबार की कीमतें अब 45,000-51,000 रुपये प्रति टन है। क्रिसिल रिसर्च की निदेशक ईशा चौधरी ने कहा, हालिया गिरावट के बावजूद वैश्विक व देसी कीमतों का अंतर उच्चस्तर पर बना हुआ है। उन्होंने कहा, ग्रीन पॉलिसी के कारण हम स्टील की कीमतों में लगातार गिरावट की उम्मीद नहीं कर रहे। चीन व रूस ने उत्पाद कटौती पर ध्यान दिया है, जिससे वैश्विक आपूर्ति सख्त रह सकती है और इससे स्टील की कीमतोंं को सहारा मिलेगा।
रूस की सरकार ने स्टील, तांबा, एल्युमीनियम व अन्य गैर-लौह धातुओं पर पांच महीने के निर्यात शुल्क का प्रस्ताव रखा है, जिसका निर्यात यूरेशियन इकनॉमिक यूनियन के बाहर होता हो ताकि देसी बाजार में कीमतों पर लगाम लग सके।