facebookmetapixel
बीमा पॉलिसी के एवज में लोन शर्तों को एफडी, गोल्ड लोन या टॉपअप लोन के मुकाबले जांच लेंसी-एसयूवी टेक्टॉन की तैयारी में निसान, वाहनों के बीच बनाएगी नई पहचानदिल्ली-एनसीआर में एसपीआर, द्वारका, सोहना और जेवर हवाई अड्डा बदल रहे रियल एस्टेट का नक्शाविनिर्माण क्षेत्र में असली बदलाव लाएगी फिजिकल एआई : श्रीनिवास चक्रवर्तीस्वदेशी ऐप Arattai ने ChatGPT और Gemini को पीछे छोड़ा, भारत में सबसे ज्यादा डाउनलोडेड ऐप्लिकेशन बनाआयात कर चोरी के मामले में अदाणी डिफेंस के खिलाफ जांचदिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के बाद भी कर कटौती का लाभ मात्रा बढ़ाकर दे सकेंगी FMCG कंपनियां!वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट: दक्षिण एशिया में GenAI से पेशेवर नौकरियों में 20% तक कमी, एआई-कौशल वालों को फायदाIPO: LG को दुलार, वीवर्क का बेड़ा पार; टाटा कैपिटल को दूसरे दिन मिली 75% बोलियांजीएसटी कटौती का असर : नवरात्र में यात्री वाहन बिक्री में 5.8 फीसदी उछाल

सुपारी किसानों पर पड़ी मंदी की मार

Last Updated- December 09, 2022 | 10:15 PM IST

सुपारी के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों, कर्नाटक और केरल के किसान थोक बाजार में इस जिंस की कम होती कीमतों को लेकर व्यथित हैं।


दिसंबर 2008 के अंत और जनवरी 2009 की शुरुआत में लाल सुपारी की कीमतें 85 रुपये प्रति किलोग्रामे के स्तर पर आ गई है जबकि सफेद सुपारी की कीमतें घट कर 65 रुपये प्रति किलोग्राम रह गई है। ये कीमतें पिछले साल की समान अवधि की तुलना में क्रमश: 26 प्रतिशत और 18 से 20 फीसदी कम हैं।

चॉल सुपारी (पुराना भंडार) की कीमतों में अक्टूबर 2008 की तुलना में 15 रुपये प्रति किलोग्राम की गिरावट आई है और यह 80 से 85 रुपये प्रति किलोग्राम पर स्थिर है। इस वजह से कर्नाटक और केरल के तटीय और मलनाड़ जिले के छोटे किसान काफी कष्ट में हैं।

सुपारी दक्षिण कन्नड़, उडुपी और उत्तर कन्नड़ और मलनाड़, शिमोगा, चिकमगलूर, तुमकूर, दावणगेरे और हसन जैसे जिलों का प्रमुख वाणिज्यिक फसल है। इस फसल की कटाई नवंबर से फरवरी तक की जाती है।

सुपारी की कीमतों में गिरावट को देखते हुए कर्नाटक के किसानों ने राज्य सरकार से सहायता की गुहार लगाई है और समर्थन मूल्य की घोषणा करने की गुजारिश की है ताकि उन्हें और अधिक घाटा न सहना पड़े। अंतिम बार साल 2004-05 में जब सुपारी की कीमतों में भारी गिरावट आई थी तब इसके समर्थन मूल्यों की घोषणा की गई थी।

कर्नाटक और केरल की बहुराज्यीय सहकारी सोसायटी केंद्रीय सुपारी विपणन और प्रसंस्करण सहकारी लिमिटेड (कैम्पको) के अधिकारियों के अनुसार किसानों को उत्पादन में कमी से कीमतें अधिक होने के अनुमानों के चलते धक्का लग सकता है।

कैम्पको देश में सुपारी की सबसे बड़ी खरीदार और विक्रेता है। हालांकि, इस वर्ष कितना उत्पादन होगा यह अभी तय नहीं किया गया है लेकिन उम्मीद की जा रही है कि फसल लगभग पिछले वर्ष जैसी ही होगी।

पिछले साल देश में 5,56,000 टन सुपारी के उत्पादन का अनुमान किया गया था जिसमें कर्नाटक का योगदान 2,25,000 टन (कुल उत्पादन का लगभग 40 प्रतिशत) था। कर्नाटक में लगभग 90,000 हेक्टेयर में सुपारी की खेती की गई।

इस साल सुपारी की कीमतों में गिरावट आने से किसान अपनी उत्पादन लागत भी नहीं निकाल पाए। लाल सुपारी की खेती पर प्रति किलोग्राम 82 रुपये जबकि सफेद सुपारी पर 110 रुपये प्रति किलोग्राम की लागत आती है। औसत मजदूरी बढ़ कर 125 से 140 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति दिन हो गई है।

First Published - January 16, 2009 | 9:47 PM IST

संबंधित पोस्ट