केंद्र सरकार की ओर से दलहन की स्टॉक सीमा तय किए जाने के खिलाफ देश की कई मंडियां बंद रहीं। इस बीच सरकार ने आज साफ किया कि सीमा तय की गई, क्योंकि पिछले साल की तुलना में कीमत अभी भी ज्यादा है, भले ही पिछले कुछ सप्ताह के दौरान कीमतों में कमी आई है। सरकार ने कहा है कि यही तर्क खाद्य तेल के मामले में भी है, जिस पर कुछ दिन पहले आयात शुल्क घटाया गया है और रिफाइंड तेल के आयात पर प्रतिबंध खत्म कर दिया गया है।
खाद्य तेल और दलहन पर सरकार के फैसले को लेकर कारोबारियों में व्यापक नाराजगी है क्योंकि यह फैसला खरीफ बुआई सत्र के ठीक पहले लिया गया है और पहले घोषित कई कदमों के बाद कीमतें शीर्ष स्तर से नीचे आ रही हैं। सूत्रों ने कहा कि हड़ताल के कारण दलहन का कारोबार करने वाली कुछ बड़ी मंडियों में कारोबारी गतिविधियां प्रभावित हुई हैं, जिनमें महाराष्ट्र में सोलापुर, अमरावती, लाटूर मंडी, मध्य प्रदेश में इंदौर और देवास मंडी और उत्तर प्रदेश की कानपुर मंडी शामिल है। इन मंडियों में सरकार द्वारा स्टॉक सीमा तय किए जाने के फैसले का कारोबारियों ने विरोध किया।
कमोडिटी ट्रेडिंग और रिसर्च फर्म आई-ग्रेन इंडिया के राहुल चौहान ने कहा, ‘सरकार का यह फैसला कारोबारियों के लिए तूफान बनकर आया है क्योंकि अब वे किसानों से ज्यादा दाम पर खरीदी दलहन को बेचने को बाध्य होंगे और कम दाम पर बेचने से उन्हें आर्थिक नुकसान होगा।’
उन्होंने कहा कि हालांकि यह प्रतिबंध सिर्फ 31 अक्टूबर, 2021 तक के लिए लागू है, लेकिन उसके बाद भी कारोबारियों को किसानों से ज्यादा कीमत पर खरीद करनी होगी क्योंकि सार्वजनिक खरीद प्रणाली का डर भी है।
बहरहाल खाद्य सचिव सुधांशु पांडेय ने कहा कि दलहन पर स्टॉक सीमा लाकू करने का फैसला और खाद्य तेल पर आयात शुल्क कम करने का फैसला इसलिए लिया गया है क्योंकि कीमतें पिछले साल की तुलना में अभी भी ज्यादा हैं, भले ही हाल के दिनों में कीमतों में कुछ कमी आई है।
उन्होंने कहा, ‘मसूर दाल को छोड़ दें तो अन्य सभी दलहन की कीमत थोक व खुदरा बाजार में पिछले 4-5 सप्ताह में कम हुई है।’ उदाहरण के लिए दिल्ली में दाल की खुदरा कीमत एक महीने में 7 रुपये किलो कम हुई है।
बहरहाल इंडिया पल्सेज ऐंड ग्रेन एसोसिएशन (आईपीजीए) ने एक बयान में कहा है कि दलहन की खुदरा कीमत के नियमन की जरूरत है क्योंकि प्रमुख शहरों में थोक और खुदरा दाम में अंतर बहुत ज्यादा है। इसमें कहा गया है कि आईपीजीए की ओर से जून, 2021 में कराए गए सर्वे के मुताबिक थोक और खुदरा कीमतों में अंतर बहुत ज्यादा है। आईपीजीए के वाइस चेयरमैन विमल कोठारी ने कहा, ‘आईपीजीए का मानना है कि सरकार गलत क्षेत्र को निशाना बना रही है। वह कारोबारियों पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जबकि थोक और खुदरा कीमतों की गहराई से जांच करने की जरूरत है।’
बहरहाल खाद्य तेल के कारोबारी और इससे जुड़े उद्योग ने भी सरकार के फैसले का विरोध किया है, जिसमें रिफाइंड तेल के आयात पर प्रतिबंध उठा दिया गया है और तेल के आयात पर शुल्क कम कर दिया गया है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) और सेंट्रल ऑर्गेनाइजेशन आफ ऑयल इंडस्ट्री ऐंड ट्रेड (सीओओआईटी) ने अलग अलग बयान में कहा है कि रिफाइंड पाम तेल के गैर प्रतिबंधित आयात का घरेलू रिफाइनरों पर गंभीर असर होगा, साथ ही इससे तिलहन किसानों पर भी असर होगा क्योंकि ऐसे समय में कीमतें घट जाएंगी, जब वे इसकी बुआई शुरू कर रहे हैं।