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वायदा कारोबार पर पाबंदी के बावजूद बढ़ी कीमतें

Last Updated- December 05, 2022 | 5:31 PM IST

एक साल पहले गेहूं, चावल और तुअर दाल के वायदा कारोबार पर पाबंदी लगाई गई थी, लेकिन तब से घरेलू बाजार में इनकी कीमतें कम होने की बजाय बढ़ी हैं।


इस तरह इन चीजों की कीमतों पर वायदा कारोबार की पाबंदी का कोई असर नहीं पड़ा है। पाबंदी के बाद सिर्फ और सिर्फ उड़द दाल की कीमत में गिरावट देखी गई। उड़द और तुअर दाल केवायदा कारोबार पर पाबंदी पिछले साल जनवरी में लगाई गई थी जबकि गेहूं व चावल पर इसके एक महीने बाद, ताकि बढ़ती कीमतों पर काबू पाया जा सके।


जब गेहूं के वायदा कारोबार पर पाबंदी लगाई गई थी तब इसकी कीमत 1100 रुपये प्रति क्विंटल पर थी और इसके बाद गेहूं की कीमत 1130 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई। इस दौरान चावल की कीमत 1245 रुपये प्रति क्विंटल से 1700 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर आ गई। तुअर दाल 2340 रुपये प्रति क्विंटल से 2720 रुपये प्रति क्विंटल पर जा पहुंची। उड़द दाल की कीमत हालांकि 3550 रुपये से गिरकर 2600 रुपये प्रति क्विंटल पर रही।


इन चीजों के वायदा कारोबार पर रोक लगाने के साथ-साथ सरकार ने कई और कदम उठाए ताकि इसकी बढ़ती कीमतों पर काबू पाया जा सके और महंगाई पर लगाम लगाया जा सके। सरकार ने दाल, गेहूं और गेहूं के आटे के निर्यात पर पाबंदी लगा दी जबकि चावल के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य तय कर दिया। इसके अलावा सरकार ने 18 लाख टन गेहूं का आयात किया और 14 लाख टन दाल के आयात का अनुबंध किया। साथ ही गेहूं, चावल और दाल के ड्यूटी फ्री आयात की अनुमति दी।


नैशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) के एमडी व सीईओ पी. एच. रविकुमार ने कहा – वायदा कारोबार का मकसद प्राइस डिस्कवरी है। बाजार की कीमतें मांग-आपूर्ति के अंकगणित पर निर्भर करती है और वायदा कारोबार नकदी बाजार को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करती। उन्होंने कहा कि इन पर लगी पाबंदी से हमारा बिजनेस प्रभावित हुआ है क्योंकि एक्सचेंज ज्यादातर एग्री कमोडिटी में कारोबार करता है। इससे लोगों की एक्सचेंज में सहभागिता कम हुई है।


उन्होंने कहा कि दिसंबर 2007 में मार्जिन में कमी करने से और फरवरी 2008 के पहले सप्ताह में पोजिशन लिमिट में बढ़ोतरी करने से एक बार फिर इस बाजार में कारोबारियों की दिलचस्पी बढ़ी है।


इस बीच, वायदा कारोबार पर बनी अभिजीत सेन कमिटी ने अब तक अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है। इस कमिटी का गठन पिछले साल मार्च में हुआ था और माना जा रहा था कि कमिटी अपनी रिपोर्ट दो महीने में सौंप देगी। मई से अब तक कमिटी को कई बार एक्सटेंशन मिल चुका है। इस कमिटी का गठन वायदा कारोबार का एग्री कमोडिटी के थोक व खुदरा मूल्य पर पड़ने वाले असर के अध्ययन के लिए किया गया था।


फरवरी में बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में अभिजित सेन ने कहा था कि बजट से पहले कमिटी अपनी रिपोर्ट सौंप देगी, लेकिन अब तक रिपोर्ट नहीं सौंपी गई है। रविकुमार ने कहा कि कमिटी की रिपोर्ट से साफ हो जाएगा यानी भ्रांतियां दूर हो जाएंगी कि क्या वायदा कारोबार मुद्रास्फीति को बढ़ाता है?

First Published - April 2, 2008 | 12:41 AM IST

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