महंगाई की तलवार अब पैंकेजिंग इंडस्ट्री के गले पर आकर लटक गई है। हालात यह हो गए है कि पैंकेजिंग बॉक्स बनाने वाले कारोबारियों के लिए मुनाफा तो दूर की बात लागत निकालना ही टेढ़ी खीर हो गया है।
लगातार कच्चे माल की कीमतों में होती बढ़ोतरी और बढ़ती लागत ने डिब्बा कारोबारियों को दूसरे विकल्पों को ढूंढने पर मजबूर कर दिया है। इन सभी मुद्दों को लेकर पैकेजिंग इंडस्ट्री की सर्वोच्च संस्था फेडरेशन आफ कोरयूगेटेड बॉक्स मैन्यूफैक्चरर्स असोसिएशन ने 10 अगस्त तक हड़ताल कर दी है।
इस हड़ताल में यूपी, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब के डिब्बा कारोबारी शामिल है। एफसीबीएमए के अधिकारियों के अनुसारडिब्बा बनाने के लिए जरुरी क्राफ्ट पेपर की कीमतों में पिछले चार महीनों के भीतर ही 45 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हो चुकी है। यहीं नहीं पेपर मिलों ने भी पिछले दो महीनों के भीतर अपनी कीमतों में 2000 रुपये की बढ़ोतरी कर दी है। कारोबारियों का मानना है कि कीमतों में बढ़ोतरी का कारण मांग की अपेक्षा आपूर्ति का कम होना है। बढ़े परिवहन व्यय ने भी रही सही कसर को पूरा कर दिया है।
पिछले एक वर्ष के भीतर डिब्बों के निर्माण में प्रयोग होने वाली स्टार्च की लागत में भी 50 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है। डिब्बों के निर्माण में प्रयुक्त लोहे के तार और चिपकाने वाले पदार्थ की कीमतों में भी लगभग 35 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है। इतनी दिक्कतों के बावजूद इस इंडस्ट्री से जुडें बड़े कारोबारियों की संख्या देश में लगभग 35000 हजार के आसपास है। ये सभी कारोबारी मिलकर लगभग 35 लाख टन कागज की खपत प्रतिदिन करते है। पूरे देश में यह इंडस्ट्री में लगभग 70 लाख लोगों को रोजगार भी देती है। कानपुर में ही लगभग डिब्बा बनाने वाली 300 से ज्यादा ईकाइयां है।
असोसिएशन के अध्यक्ष संजीव ढींगरा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि डिब्बा कारोबारियों की हालत खस्ता होने का मुख्य कारण कागज के आयात में लगने वाला 30 फीसदी डयूटी टैक्स है। बाजार में कामज की आपूर्ति में कमी है। आयात में डयूटी टैक्स ज्यादा होने के कारण विदेशों से भी ज्यादा आयात नहीं हो पाता है। ऐसे में मांग ज्यादा होने के कारण घरेलू पेपर मिलें मनमानी करती है। और जब चाहे इसकी कीमतों में बढ़ोतरी करना शुरु कर देती है।
यही नहीं पेपर मिलें डिब्बा कारोबारियों को घटिया किस्म के कागज की आपूर्ति भी कर रही है और मजबूरी में हमें लेना भी पड़ रहा है। क्योकि बाजार में कागज की आपूर्ति के लाले पड़े हुए है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि डिब्बा कारोबारी मार्च के आस-पास अपने ग्राहकों से एक निश्चित कीमत पर ऑर्डर की बुकिंग लेते है लेकिन कुछ दिनों बाद ही पेपर मिलों द्वारा कागज की कीमतों में बढ़ोतरी कर देने से हमारी लागत में भी बढ़ोतरी हो जाती है।