बहुचर्चित शून्य बजट प्राकृतिक खेती (जेडबीएनएफ) अपनाने के बाद 90 प्रतिशत से ज्यादा किसानों की फसल की उत्पादकता बढ़ी है, लेकिन इस खेती में शामिल ज्यादातर किसानों (87 प्रतिशत) को बेहतर दाम नहीं मिला है। नए अध्ययन में पाया गया है कि इस खेती में श्रमिकों की जरूरत बढ़ी है और इसकी वजह से समय ज्यादा लगता है।
यह अध्ययन सेंटर फार साइंस ऐंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपने शोधकर्ताओं से उन 142 किसानों पर कराया है, जिन्होंने इस खेती में हिस्सा लिया। इसमें 40 किसानों से लंबी बात की गई, जो आंध्र प्रदेश के 10 जिलों के 35 गांवों के हैं।
जून 2019 में कराए गए इस अध्ययन को नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने आज जारी किया। अध्ययन में साफ किया गया है कि 142 किसानों में से 70 प्रतिशत 3 साल से ज्यादा समय से जेबीएनएफ कृषि कर रहे हैं और 85 प्रतिशत अपनी पूरी जमीन पर इस तरह की खेती कर रहे हैं।
सीआरजेडबीएनएफ या पर्यावरण के अनुकूल शून्य बजट प्राकृतिक खेती को जेडबीएनएफ नाम से जाना जाता है।
