भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने आज कहा कि दक्षिण पश्चिम मॉनसून के चार महीने के सत्र में पहले दो महीने मॉनसून की चाल भले ही असमान रही है लेकिन बाकी बचे महीनों में मॉनसून सामान्य रहने की उम्मीद है।
मौसम विभाग का यह अनुमान खरीफ की बुआई और इसकी पैदावार के लिए भी शुभ है लेकिन कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि अंतिम अनुमान पर पहुंचने से पहले मध्य अगस्त तक की स्थिति का आकलन करना चाहिए क्योंकि मध्य अगस्त के बाद रकबे में किसी तरह की कमी की भरपाई कर पाना मुश्किल होगा।
इस बीच मौसम विभाग ने सीजन के मध्य के अपने अनुमान में कहा कि अगस्त और सितंबर में दीर्घावधि अनुमान (एलपीए) के 95 से 105 फीसदी तक बारिश हो सकती है जिसमें सामान्य से ऊपर बारिश होने के आसार हैं।
देश भर में अगस्त से सितंबर के बीच की बारिश का एलपीए 428.3 मिलीमीटर है।
मौसम विभाग ने कहा कि अगस्त महीने में ही पूरे देश में बारिश एलपीए का 94 से 106 फीसदी रहेगा। देश भर में अगस्त महीने की बारिश का एलपीए (1961 से 2010 के बीच हुई बारिश का औसत) 258.1 मिलीमीटर है।
दक्षिण पश्चिम मॉनसून सीजन का जुलाई और अगस्त का महीना सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि देश में सबसे अधिक बारिश इन्हीं दो महीनों में होती है।
केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘मुझे लगता है कि अंतिम निर्णय पर पहुंचने से पहले हमें अगस्त के मध्य तक का इंतजार कर लेना चाहिए क्योंकि सामान्य मॉनसून एक बात है लेकिन क्या इससे पिछले वर्ष के मुकाबले बुआई के रकबे के अंतर को पाटा जा सकेगा। खास तौर पर तिलहन और दलहन के मामले में ऐसा हो पाएगा कि नहीं देखना पड़ेगा क्योंकि उसके लिए यह बुआई का आदर्श समय है।’
सबनवीस ने कहा कि चावल के लिए बुआई का समय जुलाई के अंत तक है लेकिन अब तक हुई बुआई का रकबा पिछले साल से कम है।
उन्होंने कहा कि हालांकि, कम क्षेत्र में बुआई के कारण चावल की पैदावार कम होती भी है तो उसको लेकर अधिक समस्या नहीं है क्योंकि केंद्रीय पूल में स्टॉक बहुत अधिक है।
उन्होंने कहा, ‘लेकिन तिलहनों और दलहनों के मामले में हमारे पास वैसी रियायत नहीं है और इसके रकबे में किसी प्रकार की कमी आने पर पहले से ही बढ़े दामों पर बहुत अधिक असर पड़ेगा।’
इस बीच मौसम विभाग ने कहा कि अगस्त में क्षेत्रवार मॉनसून मध्य भारत और उत्तर पश्चिम भारत के कुछ इलाकों में सामान्य से कम से सामान्य रहने की उम्मीद है।
लेकिन प्रायद्वीपीय भारत और उत्तर पूर्व भारत के अधिकांश हिस्सों में यह सामान्य से सामान्य से अधिक रहने की बहुत अधिक संभावना है।
मौसम विभाग ने रविवार को कहा था कि जुलाई के पहले हफ्ते में दक्षिण पश्चिम मॉनसून ने तगड़ी वापसी की थी जिसके बाद देश के कई हिस्सों में बाढ़, बादल फटने और भूस्खलन की घटनाएं सामने आई थी लेकिन महीने का अंत बारिश में 7 फीसदी की कमी के साथ हुआ।
महापात्रा ने कहा, ‘हमने जुलाई के लिए समान्य बारिश का अनुमान जताया था जो कि एलपीए का करीब 96 फीसदी था। देश भर में जुलाई में खूब बारिश हुई लेकिन उत्तर भारत में 8 जुलाई तक कोई बारिश नहीं हुई। हो सकता है कि इसी कारण से बारिश की मात्रा में कमी आई है।’
दक्षिण पश्चिम मॉनसून ने अपने निर्धारित समय से दो दिन बाद 3 जून को केरल में प्रवेश किया था। लेकिन इसने बड़ी तेजी से 19 जून तक देश के पूर्वी, पश्चिमी, दक्षिणी और उत्तर भारत के कुछ इलाकों को कवर कर लिया था।