facebookmetapixel
Q2 Results: Tata Motors, LG, Voltas से लेकर Elkem Labs तक; Q2 में किसका क्या रहा हाल?पानी की भारी खपत वाले डाटा सेंटर तटीय पारिस्थितिकी तंत्र पर डाल सकते हैं दबावबैंकों के लिए नई चुनौती: म्युचुअल फंड्स और डिजिटल पेमेंट्स से घटती जमा, कासा पर बढ़ता दबावEditorial: निर्यातकों को राहत, निर्यात संवर्धन मिशन से मिलेगा सहारासरकार ने 14 वस्तुओं पर गुणवत्ता नियंत्रण आदेश वापस लिए, उद्योग को मिलेगा सस्ता कच्चा माल!DHL भारत में करेगी 1 अरब यूरो का निवेश, लॉजिस्टिक्स और वेयरहाउसिंग में होगा बड़ा विस्तारमोंडलीज इंडिया ने उतारा लोटस बिस्कॉफ, 10 रुपये में प्रीमियम कुकी अब भारत मेंसुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश: राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के 1 किलोमीटर के दायरे में खनन पर रोकदिल्ली और बेंगलूरु के बाद अब मुंबई में ड्रोन से होगी पैकेज डिलिवरी, स्काई एयर ने किया बड़ा करारदम घोंटती हवा में सांस लेती दिल्ली, प्रदूषण के आंकड़े WHO सीमा से 30 गुना ज्यादा; लोगों ने उठाए सवाल

शुल्क कटौती क्यों…, बूझो तो जानें!

Last Updated- December 07, 2022 | 10:06 AM IST

दिल्ली के एयरकंडीशड गलियारों में चहल-कदमी करने वाले सरकार के नीति-निर्माता अमूमन ‘बूझो तो जाने’ वाले अंदाज में फैसले करते हैं।


मिसाल के तौर पर कपास पर आयात शुल्क में शत प्रतिशत की कटौती करने के फैसले को ही लीजिए। सरकार का इरादा इसके जरिए बर्बादी की कगार पर पहुंच चुकी देश की छोटी और मध्यम दर्जे की टेक्सटाइल इकाइयों को राहत देने का है।

अब कोई सरकार से यह पूछे कि कपास के आयात को सस्ता करने की क्या जरूरत आन पड़ी, जबकि भारत खुद कपास का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है और इन दिनों कपास उत्पादन में सबसे अव्वल देश चीन तक को भारत से ही सबसे ज्यादा कपास का आयात करना पड़ रहा है। यही नहीं, तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश अमेरिका तो इस साल निर्यात करने की स्थिति में पहले से ही नहीं है। जाहिर है, इस नए फैसले का फायदा भी सिर्फ कुछ बड़े कपास आयातकों को ही मिलेगा।

टेक्सटाइल उद्योग का भी यही मानना है कि कपास के आयात शुल्क में कटौती से कोई खास राहत नहीं मिलने वाली है। टेक्सटाइल उद्यमियों का कहना है कि सरकार को बजाय इसके, इसके निर्यात पर  5-10 फीसदी का शुल्क लगाना चाहिए, तब जाकर टेक्सटाइल उद्योग सांस लेने की स्थिति में आ सकता है। कपास के आयात पर फिलहाल 14 फीसदी शुल्क देना पड़ता है। दि टेक्सटाइल एसोसिएशन के पदाधिकारियों के मुताबिक, कीमत में तेजी की वजह से कपास की ताजा खरीदारी करने वाले खास कर दक्षिण भारत की सैकड़ों छोटे स्पिनिंग मिल बंदी की कगार पर हैं।

जिन उद्यमियों ने फसल की शुरुआत में कपास की खरीदारी की, वही इन दिनों अपना उद्योग चलाने की हैसियत में हैं। दो साल पहले कपास की कीमत प्रति कैंडी (1 कैंडी = 365 किलोग्राम) 18 हजार रुपये थी, जो वर्तमान में 28,500-29,000 रुपये प्रति कैंडी के स्तर पर पहुंच गयी है। एसोसिएशन के पदाधिकारी अशोक जुनेजा कहते हैं, ‘कपास की कीमत में 54-57 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गयी तो धागे की कीमत में 4-5 रुपये प्रति किलोग्राम। सिर्फ सूडान, मिस्त्र, ब्राजील व दक्षिण अफ्रीका से आयात होने वाले कपास पर ही संभावित सरकारी फैसले का लाभ मिल सकता है, जिसकी मात्रा काफी कम होती है।’ 

वे कहते हैं कि नयी फसल के दौरान भी कपास की कीमत में गिरावट नहीं आएगी। वायदा बाजार में दिसंबर महीने के लिए कपास की बोली 27,000 प्रति कैंडी की दर से लग चुकी है। यह खरीदारी मुख्य रूप से चीन के लिए की जा रही है। क्योंकि चीन में बाढ़ आने से वर्ष 2008-09 के दौरान कपास के उत्पादन में गिरावट के आसार हैं। बाढ़ कपास से जुड़े इलाके में आयी थी। अमेरिका में बीते साल के मुकाबले इस साल कम जमीन पर कपास की खेती की जा रही है।

भारत में भी कपास के मुख्य उत्पादक राज्य गुजरात व महाराष्ट्र में पिछले साल के मुकाबले कम जमीन पर कपास की बिजाई की गयी है। मानसून के पहले आने से पंजाब के कपास में कीड़े मिलने की शिकायत आ चुकी है। कुल मिलाकर भारत में इस साल कपास उत्पादन में कमी की आशंका व्यक्त की जा रही है। वर्ष 2007-08 के दौरान चीन में 450 लाख बेल (1 बेल = 170 किलोग्राम), भारत में 310 लाख बेल तो अमेरिका में 250 लाख बेल कपास का उत्पादन रहा। टेक्सटाइल निर्यात का भारत के कुल निर्यात में 35 फीसदी की हिस्सेदारी है। भारत से सालाना 60,000 करोड़ रुपये का टेक्सटाइल निर्यात किया जाता है।

लगाना चाहिए निर्यात पर शुल्क, लेकिन किया गया आयात शुल्क का खात्मा

First Published - July 10, 2008 | 12:54 AM IST

संबंधित पोस्ट