सरकार की एक पहल से लाखों गन्ना किसानों की पौ बारह हो सकती है, वहीं चीनी मिल मालिकों की जेब में सुराख हो सकता है।
दरअसल, केंद्रीय खाद्य मंत्रालय गन्ना मिलों के लिए आरक्षित गन्ना क्षेत्रों की पाबंदी हटाने की योजना बना रहा है। वर्तमान में नियम यह है कि गन्ना किसानों को अपनी उपज उसी क्षेत्र में मौजूद चीनी मिलों को ही बेचनी पड़ती थी। हालांकि अब इसमें बदलाव की तैयारी की जा रही है।
खाद्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि गन्ना नियंत्रण (नियम) में संशोधन के जरिए राज्य सरकार के उस अधिकार को कम करने की कोशिश की जा रही है, जिसके तहत वह मिलों के लिए गन्ना उत्पादक क्षेत्र को आरक्षित करती है। अधिकारी के मुताबिक, इस मसले पर काम चल रहा है और अगले साल इस पर फैसला ले लिया जाएगा।
सरकार की इस कवायद से चीनी मिल मालिकों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और वे गन्ना किसानों को बेहतर मूल्य देने को विवश होंगे, जिसका फायदा किसानों को मिलना तय है। वर्तमान में किसान केवल उन्हीं मिलों को गन्ना बेच सकते हैं, जिनके साथ उन्हें जोड़ा जाता है। ऐसे में उन्हें कई बार उपज की सही कीमत तक नहीं मिल पाती है।
शुगर इंडस्ट्री सरकार के इस कदम का पुरजोर विरोध कर रही है, क्योंकि इसकी वजह से गन्ना उत्पादक क्षेत्रों पर उनका अधिकार नहीं रह जाएगा। हालांकि कुछ कंपनियां, जो हाल में तेजी से विकास कर रही हैं, उनका मानना है कि गन्ना आरक्षण क्षेत्र का नियम हटाना उचित कदम होगा।
हालांकि इस नियम में संशोधन का असर देश के दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में नहीं पड़ेगा, क्योंकि राज्य में इस संबंध में अलग नियम-यूपी शुगरकेन (रेग्युलेशन ऑफ पर्चेज एंड सप्लाई) एक्ट, 1953 लागू होता है। राज्य में इसी नियम के तहत गन्ना उत्पादक क्षेत्रों को आरक्षित किया जाता है।
वैसे, खाद्य मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में इस तरह का नियम लागू हो सकता है। उनके मुताबिक, जब सभी राज्यों से गन्ना रिजर्व क्षेत्र लागू करने का अधिकार ले लिया जाएगा, तो उत्तर प्रदेश पर भी ऐसा नहीं करने का दबाव होगा। उनका कहना है कि इससे गन्ना किसानों के पास विकल्प होगा और वे अपनी उपज की सही कीमत प्राप्त करने में सक्षम होंगे।