देश में फल उद्योग के लिहाज से बेहद अहम हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादक लगातार भारी बारिश के कारण सिर पकड़कर बैठ गए हैं। बारिश ने उत्पादन की प्रक्रिया में रुकावट डाली है और सेब बागानों से बाहर दूसरे शहरों तक भी नहीं जा पा रहा है। जुलाई की शुरुआती बारिश में फल न तो ठीक से टूट पाए और न ही बढ़ पाए। हाल में हुई बारिश ने नुकसान और भी बढ़ा दिया।
भारतीय मौसम विभाग (IMD) के आंकड़ों के अनुसार इस साल 1 जून से 15 अगस्त के बीच हिमाचल प्रदेश में 732.1 मिलीमीटर बारिश हुई है, जो सामान्य से 45 फीसदी अधिक है। 15 अगस्त को राज्य में 22.1 मिलीमीटर बारिश हुई, जो औसत बारिश से 187 फीसदी अधिक है। शुरू में बारिश हुई तो फल समय से पहले गिरने लगे, जिस कारण सेब का आकार छोटा हो गया। इसके कारण पैदावार कम हो गई और नमी की वजह से फफूंद के हमले बढ़ते चले गए।
सेब उत्पादन में आई कमी
आम तौर पर हिमाचल प्रदेश में सालाना 3.05 से 4.05 करोड़ पेटी सेब का उत्पादन होता है। फलों के आकार के हिसाब से पेटी में 24 से 28 किलोग्राम सेब होते हैं। मगर इस साल बारिश और अन्य प्रतिकूल स्थितियों के कारण सेब का उत्पादन घटकर 1 करोड़ से 1.02 करोड़ पेटी रह जाने का अंदेशा है।
सेब के पौधों पर आम तौर पर अप्रैल के आसपास फूल लगते हैं और 100 से 110 दिनों में फल लगभग तैयार हो जाते हैं। सेब के अग्रणी उत्पादक हरीश चौहान ने कहा, ‘जुलाई और अगस्त का महीना सेब का आकार और रंग बढ़ने के लिहाज से महत्त्वपूर्ण होता है। फल बढ़ने और पकने के अहम समय में लगातार बारिश होने के कारण राज्य की फसल पर गंभीर असर पड़ा है।
सेब उत्पादकों के गुट प्रोग्रेसिव ग्रोअर्स एसोसिएशन (PGA) के अध्यक्ष लोकेंद्र सिंह बिष्ट ने कहा कि सबसे ज्यादा तबाही शिमला और कुल्लू जिलों में हुई है, जहां पूरे बगीचे पानी में बह गए। उन्होंने कहा कि बारिश और सड़कें क्षतिग्रस्त होने की वजह से फसल को बाहर भेजने में भी समस्या आ रही है। बिष्ट ने कहा कि आपूर्ति में रुकावट का फायदा पूरी तरह बिचौलियों को हो रहा है और किसानों को कम दाम में फसल बेचनी पड़ रही है, जबकि बाजार में सेब के दाम चढ़े हुए हैं।
चौहान ने कहा कि जिन किसानों के बगीचे बह गए हैं, उनका नुकसान काफी लंबा चलेगा क्योंकि सेब के बाग तैयार होने में काफी समय लग जाता है।
हिमाचल की अर्थव्यवस्था में सेब का है काफी अहम योगदान
हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में पर्यटन के बाद सेब का बहुत अधिक योगदान है और यह राज्य की अर्थव्यवस्था में 5,000 से 6,000 करोड़ रुपये सालाना देता है। इस साल बारिश की वजह से सेब के उत्पादन और उससे जुड़े कारोबार को करीब 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसके अलावा बागों में काम करने वाले मजदूरों, पैकर्स तथा ट्रांसपोर्टरों को भी नुकसान हुआ है। कम ऊंचाई वाले इलाकों में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है और 14 से 20 लाख लोगों की आजीविका खतरे में है।
अखिल भारतीय किसान सभा से जुड़े भारतीय सेब किसान संघ ने इस संकट पर चिंता जताई है। उसने जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के सेब किसानों की बढ़ती उत्पादन लागत और घटते मुनाफे का भी जिक्र किया है। संघ ने कहा कि अमेरिकी सेब पर आयात शुल्क 70 फीसदी से घटकर 50 फीसदी कर दिया गया है। उन्हें डर है कि इससे भारतीय बाजार में आयातित सेब की बाढ़ आ सकती है और देसी उत्पादकों को चोट लग सकती है।