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लाख जतन के बाद भी महंगा है अनाज

Last Updated- December 08, 2022 | 10:44 AM IST

मौजूदा साल के मध्य में अनाज की वैश्विक कीमतें रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई थी, लेकिन तब से इसमें लगातार गिरावट आ रही है। इसके बावजूद, अभी भी कई विकासशील देशों में अनाज की कीमतें काफी ऊंची हैं।


ऐसे में गरीबों के लिए पेट भरना अब भी एक चुनौती है। ऊंची कीमतों पर अंकुश लगाने की तमाम सरकारी नीतियों के बावजूद अनाज की कीमतें हैं कि नीचे आने का नाम ही नहीं ले रही।

ये निष्कर्ष संयुक्त राष्ट्र की सहयोगी संस्था खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की ओर से दुनिया भर में अनाज की कीमतों की गई समीक्षा से निकला है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि विकासशील देशों में अनाज की कीमतें लगातार ऊंची रहने से शहरी और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले तमाम गरीब परंतु जरूरतमंद लोगों तक इसकी पहुंच प्रभावित हुई है।

इस समीक्षा से स्पष्ट हुआ कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में ज्यादातर अनाज की कीमतें अपने रिकॉर्ड स्तर से 50 फीसदी तक नीचे आ गई हैं।

इसके बावजूद, पिछले साल की तुलना में ये स्तर काफी ज्यादा है। यकीन के लिए खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) का खाद्य मूल्य सूचकांक देखिए, जो अक्टूबर 2008 में अक्टूबर 2006 की तुलना में 28 फीसदी ऊंचा रहा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि जिन देशों में अनाज की कीमतें कम हुई भी हैं, वह निर्यात बाजार के लिहाज से कम हुई हैं।

इसके मुताबिक, राष्ट्रीय स्तर से तुलना करें तो अभी भी अनाज के दाम साल भर पहले के स्तर पर बने हुए हैं। वास्तव में, मौजूदा आर्थिक हालात में इसकी अंतरराष्ट्रीय कीमतों में हुई कमी चिंता का सबब है। क्योंकि इसका असर उत्पादन पर पड़ने की आशंका है।

मंदी के चलते मांग घटने से आशंका जताई जा रही है कि किसान अनाज का उत्पादन कम कर देंगे। एफएओ का आकलन है कि इस वजह से अगले साल अनाज की कीमतों में एक बार फिर नाटकीय उफान आ सकता है।

भारत की बात करें तो यहां उत्पादन काफी बेहतर रहने और निर्यात पाबंदी के बावजूद चावल की कीमतें लगातार चढ़ी हैं। नवंबर में तो चावल प्रति किलो 22 रुपये तक चढ़ गया था जो साल भर पहले की तुलना में 38 फीसदी ज्यादा है। इसी प्रकार रिपोर्ट में पाकिस्तान का उदाहरण दिया गया है।

यहां भारी मात्रा में गेहूं आयात के बावजूद अक्टूबर में कीमतें पिछले साल के स्तर से काफी ऊंची हो गई। रिपोर्ट में पाकिस्तान से अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर गेहूं भेजे जाने की बात कही गई है। गौरतलब है कि इस दौरान अफगानिस्तान में गेहूं के भाव पाकिस्तान की तुलना में 70 से 100 फीसदी ज्यादा रहे।

श्रीलंका में भी अनाज के दाम साल की शुरुआत से ही ऊंचे हैं। बंपर फसल के बावजूद नंवबर में खाद्यान्न के बाजार भाव पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 30 फीसदी ज्यादा रहे।

हाल ही में 101 विकासशील देशों में हुए एक सर्वेक्षण से जाहिर होता है कि 2007 मध्य से 2008 मध्य के बीच कीमतें थामने के लिए सरकार की ओर से उठाए गए कदमों से लोग असंतुष्ट हैं।

महंगाई थामने की सरकारी नीतियों का सबसे ज्यादा खामियाजा आयात शुल्क और कस्टम शुल्क को भुगतना पड़ा है। 68 देशों में इन शुल्कों को या तो निलंबित कर दिया गया या इसमें कटौती कर दी गई। 63 देशों में घरेलू उत्पादन बढ़ाने और पूंजी प्रवाह बढ़ाने के उपाय किए गए हैं।

इसके अलावा, 39 देशों में खाद्य सहायता और सामाजिक सुरक्षा के कदम उठाए गए हैं। जबकि 25 देशों में मूल्य नियंत्रण और सब्सिडी जैसे कदम उठाए गए। कई ऐसे देश हैं जहां कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए एक से ज्यादा कदम उठाए गए।

रिपोर्ट में बताया गया कि मूल्य नियंत्रण के उपाय करने से पिछले दशक में हुई आर्थिक सुधार की प्रक्रिया को धक्का पहुंचा है। वह इस तरह कि सरकारों ने खाद्य सुरक्षा कायम करने के लिए खाद्य बाजार में खूब हस्तक्षेप किए हैं।

First Published - December 22, 2008 | 10:01 PM IST

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