अगर पेट्रोल व डीजल के दाम आपकी जेब पर भारी पड़ रहे हैं तो इसकी वजह पिछले साल परिवहन ईंधन पर उत्पाद शुल्क में तेज बढ़ोतरी है। देश की 4 प्रमुख तेल शोधन व विपणन कंपनियों ने वित्त वर्ष 21 में इसके पहले साल की तुलना में 73 प्रतिशत ज्यादा उत्पाद शुल्क का भुगतान किया है।
इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन और मंगलूर रिफाइनरी ऐंड पेट्रोलियम ने कुल मिलाकर वित्त वर्ष 21 में सरकार को 2.87 लाख करोड़ रुपये उत्पाद शुल्क का भुगतान किया है, जो वित्त वर्ष 20 के 1.66 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है।
परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 21 में पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क कंपनी के एक्स रिफानरी मूल्य का एक चौथाई रहा। यह साल पहले की तुलना में 13.3 प्रतिशत और वित्त वर्ष 14 में महज 4.9 प्रतिशत था।
पिछले 7 साल में कंपनियों के उत्पाद शुल्क में 5 बार बढ़ोतरी की गई है। इसके विपरीत लॉकडाउन के कारण डीजल की खपत में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में वित्त वर्ष 21 में 12 प्रतिशत गिरावट आई, जबकि पेट्रोल की बिक्री 6.8 प्रतिशत कम रही है। कुल मिलाकर पेट्रोलियम उत्पादों की खपत वित्त वर्ष 21 में 9.1 प्रतिशत कम रही है।
इस हिसाब से देखेंं तो अगर डीजल और पेट्रोल का कर नहीं बढ़ाया गया होता तो सरकार के पेट्रोलियम उत्पादों से उत्पाद शुल्क संग्रह में वित्त वर्ष 21 में कमी आती। बहरहाल उच्च करों की वजह से ईंधन की कम खपत की भरपाई पिछले वित्त वर्ष में हो गई।
केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘डीजल और पेट्रोल के खुदरा मूल्य में सभी अप्रत्यक्ष करों, उपकर और डीलर के कमीशन की हिस्सेदारी करीब 65 प्रतिशत है।’इसके साथ ही केंद्र सरकार ने 4 तेल विपणन कंपनियों से उत्पाद शुल्क के रूप में पिछले 11 साल में 11.8 लाख करोड़ रुपये वसूले हैं, जो वित्त वर्ष 04 से वित्त वर्ष 14 के बीच पिछली सरकार द्वारा 10 साल में वसूले गए उत्पाद शुल्क की तुलना में ढाई गुने से ज्यादा है।
पिछले 7 साल में इन 4 कंपनियों से सरकार का उत्पाद शुल्क संग्रह 26.5 प्रतिशत संयुक्त सालाना वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ा है और यह वित्त वर्ष 14 के 55,266 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 21 में 2.87 लाख करोड़ रुपये हो गया है। वहीं इसी अवधि के दौरान कंपनियों की शुद्ध बिक्री 3 प्रतिशत सालाना दर से घटी है और यह वित्त वर्ष 14 के 10.66 लाख करोड़ रुपये से घटकर 8.6 लाख करोड़ रुपये रह गई है। इस अवधि के दौरान कंपनियोंं के कच्चे माल की लागत भी सालाना 4.2 प्रतिशत की दर से घटी है।
अर्थशास्तीर अप्रत्यक्ष कर ज्यादा होने को प्रतिगामी प्रकृति का मान रहे हैं। इंडिया रेटिंग्स में मुख्य अर्थशास्त्री और सार्वजनिक वित्त के प्रमुख देवेंद्र पंत ने कहा, ‘डीजल जैसे ईंधन पर ज्यादा कर का अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर होता है, इससे ज्यादातर वस्तुओं व सेवाओं के दाम ज्यादा हो जाते हैं। परिणामस्वरूप अमीरों की तुलना मेंं गरीबों की आमदनी का ज्यादा हिस्सा कर देने में चला जाता है।’
इसकी वजह से महंगार्ई भी बढ़ती है। मदन सबनवीस ने कहा, ‘थोकमूल्य सूचकांक में तेज बढ़ोतरी में ईंधन के ज्यादा दाम की मुख्य भूमिका है, जो अब दो अंकों तक पहुंच गई है। इसकी वजह से विनिर्माताओं के उत्पादन लागत में बढ़ोतरी होगी।’