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महंगा हुआ काजू छिलके से बनने वाला माल

Last Updated- December 07, 2022 | 11:40 AM IST

ऑटोमोटिव और ऊर्जा क्षेत्रों की बढ़ती मांगों से काजू के छिलके के तरल (सीएनएसएल) की कीमत जुलाई महीने में 27,000 रुपये प्रति टन के स्तर पर पहुंच गई है जो पिछले वर्ष की समान अवधि अवधि की तुलना में लगभग दोगुनी है।


काजू की गिरी का एक सह-उत्पाद सीएनएसएल का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के उद्योगों में कच्चे माल की तरह किया जाता है। इसका प्रयोग फ्रिक्शन लाइनिंग, पेन्ट्स और वार्निश, लैमिनेटिंग और इपॉक्सी रेजिन, फाउंड्री रसायनों आदि में किया जाता है।

हालांकि कीमतों में बढ़ोतरी के बावजूद काजू की गिरी के  प्रोसेसर्स काजू के छिलके की कमी के कारण सीएनएसएल की बढ़ती मांगों को पूरी करने में असमर्थ हैं। यद्यपि देश में प्रति वर्ष एक लाख टन से अधिक काजू की गिरी की प्रोसेसिंग करते हैं लेकिन सीएनएसएल का उत्पादन सीमित है क्योंकि सभी सभी प्रोसेसिंग इकाइयां इसका उत्पादन नहीं करती हैं। वर्तमान में देश में 60,000 टन सीएनएसएल का उत्पादन हुआ है जबकि 1,60,000 टन की संभावना है (काजू की गिरी के भार का लगभग 15 फीसदी तरल होता है)।

कर्नाटक प्रति वर्ष 20,000 टन का उत्पादन करता है जो कुल उत्पादन का एक तिहाई है वहीं केरल, तमिलनाडु, गोवा, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा शेष हिस्से का उत्पादन करते हैं। ब्राजील वैश्विक स्तर पर सीएनएसएल का सबसे बड़ा उत्पादक है जो अमेरिका की कुल मांग को पूरी करता है। वियतनाम, जिसने हाल ही में काजू की प्रोसेसिंग शुरु की है, ने भी तरल का उत्पादन आरंभ कर दिया है।

कैश्यू एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया के भूतपूर्व उपाध्यक्ष और काजू निर्यातक तथा सीएनएसएल उत्पादक कंपनी अचल इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक जी गिरिधर प्रभु ने कहा कि उद्योग, जो अच्छी कीमत नहीं मिलने के कारण इस उत्पाद को नजरंदाज कर रहा था, अचानक जागा है और काजू की गिरी के इस सह-उत्पाद का उत्पादन बढ़ाने का पुरजोर प्रयास कर रहा है।

काजू की गिरी के छिलके का तरल काजू के बाहरी छिलके से निकाला जाता है। इस तरल का इस्तेमाल ऑटोमोटिव, चमड़ा, तंबाकू आदि उद्योगों में किया जाता है। हाल ही से इसका इस्तेमाल अब ऊर्जा सेक्टर में भी शुरु हआ है। सीएसएनएल आधारित संजात का प्रयोग फेनॉल की जगह किया जा रहा है। सीएनएसएल का इस्तेमाल पेंट के रेजिन बनाने और फाउंड्री कोर ऑयल्स, वार्निश के इंसुलेशन और अन्य दूसरे उत्पादों में किया जाता है।

कुछ समय पहले से काजू के छिलके के तरल का डिस्टिलेशन कर कार्डानॉल का उत्पादन किया जा रहा है जिसका इस्तेमाल ब्रेक लाइनिंग के फ्रिक्शन डस्ट और रबड़ कंपाउंडिंग फॉमुर्लेशन के लिए किया जाता है। प्रभु ने कहा, ‘ इंधन के तौर पर इस्तेमाल की संभावना इसे अतिरिक्त उपयोगिता प्रदान करता है। बायो फ्यूल के तौर पर यह महंगे पेट्रोलियम उत्पादों का मुकाबला कर सकता है। इन संभावनाओं से भारत में बड़े पैमाने पर उन क्षेत्रों में काजू के उत्पादन में मदद मिलेगी, जहां परंपरागत रूप से काजू की खेती नहीं होती है।

First Published - July 15, 2008 | 11:35 PM IST

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