मई में गेहूं, चावल और कुछ दालों जैसे अरहर के खुदरा दामों में तेजी कायम रही है। इसे देखते हुए सरकार ने इन जिंसों को लेकर कदम उठाए हैं। इसके अलावा कुछ मसालों जैसे जीरे के दामों में मई में 50 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई।
हालांकि दूसरी तरफ खाद्य मुद्रास्फीति 18 महीने के निचले स्तर 2.91 फीसदी पर आ गई और कुल मुद्रास्फीति जून में 25 महीने के निचले स्तर 4.25 फीसदी पर आ गई। गेहूं में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) की दर एक वर्ष के लिए दोहरे अंकों में बनी रही।
हालांकि यह मई में दस महीने के निचले स्तर 12.61 फीसदी पर आ गई थी जो पिछले इससे महीने 15.39 फीसदी थी। यह इस तथ्य के बावजूद था कि पिछले साल मई में 9.45 फीसदी का उच्च आधार प्रभाव था।
चावल के दाम अप्रैल में 11.37 फीसदी बढ़े थे और यह मई में कुछ घटकर 11.33 फीसदी पर आ गए थे। चावल के दाम बीते आठ महीनों से लगातार दो अंकों में कायम रहे। इसका एक कारण यह भी है कि मई 2022 में कम आधार 2.83 फीसदी था। लोगों पर गेहूं और चावल की महंगाई का कम ही असर पड़ा। इसका कारण यह है कि सरकार की मुफ्त अनाज योजना के दायरे में 80 करोड़ लोग हैं। यह योजना इस कैलेंडर साल भी जारी रहेगी।
उच्च न्यूनतम समर्थन मूल्य ने हालिया समय में गेहूं के दाम बढ़ाने में मदद की
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि इस साल गेहूं का उत्पादन ज्यादा होने का अनुमान है लेकिन खरीद कम रही। इससे मार्केट में गेहूं के दामों में उछाल आ गया। यह समस्या बीते साल शुरू हुई थी, जब उत्पादन कम हुआ था और यूक्रेन संघर्ष के कारण निर्यात बढ़ा था। फिर गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
उन्होंने कहा कि बीते साल की दिक्कतों और 2023 में उच्च न्यूनतम समर्थन मूल्य ने हालिया समय में गेहूं के दाम बढ़ाने में मदद की।
अलनीनो के असर के कारण दालों के दाम चढ़ने शुरू हो गए। इससे तूर और उड़द के दाम बढ़े। सबनवीस ने कारोबारियों के अनुमान के हवाले से कहा कि इन दालों के दाम बढ़ने का असर दलहन पर पड़ सकता है।
उन्होंने कहा कि इसलिए दाम चढ़े रहेंगे और उत्पादन बेहतर होने पर ही नीचे आएंगे। उन्होंने आगे कहा कि खरीफ की फसल में न्यूनतम समर्थन मूल्य में हालिया बढ़ोतरी के कारण भी दाम कुछ चढ़ेंगे।