सफेद मूसली से किसान हुए ‘कमजोर’
बीएस संवाददाता / नई दिल्ली July 10, 2008
आने वाले समय में लोग सफेद मूसली को भूल जाए तो आश्चर्य नहीं। शक्तिवर्धक और स्वास्थ्यवर्धक दवा के लिए इस्तेमाल होने वाले सफेद मूसली की खेती खत्म होने के कगार पर है।
देसी व विदेशी बाजार में जबरदस्त मांग के बावजूद किसान इसकी खेती के नाम से कोसों दूर भागते हैं। सिर्फ इसलिए कि लगातार तीन साल तक उन्हें इसकी खेती से जबरदस्त घाटे का सामना करना पड़ा। लेकिन बचे हुए किसान अब लामबंद हो चुके हैं। और फिर से इसके बाजार से आस जगने लगी है।
अनुमान के मुताबिक विश्व भर में सफेद मूसली की मांग सालाना 50,000 टन है। जबकि इसकी कुल आपूर्ति मात्र 5000 टन है। सात-आठ साल पहले तक सफेद मूसली का उत्पादन 500 टन से अधिक था जो घटकर मात्र 40-50 टन के स्तर पर सिमट गया है। सेंट्रल हर्बल एग्रो मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (सीएचएएमएफ) के अध्यक्ष राजा राम त्रिपाठी ने छत्तीसगढ़ से बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘बीते तीन सालों में 80 फीसदी से अधिक किसानों ने इसकी खेती बंद कर दी।
मांग होने के बावजूद सफेद मूसली के कमीशन एजेंट व आढ़तियों ने किसानों को उचित मूल्य नहीं दिलाया। और उन्हें जबरदस्त घाटे का सामना करना पड़ा।’ सीएचएएमएफ के मुताबिक मूसली की सबसे अधिक खेती मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में होती है। इसके अलावा उड़ीसा के भी कुछ हिस्सों में इसकी खेती होती है। और इन दिनों इसकी खेती मात्र 1500 एकड़ में हो रही है। त्रिपाठी कहते हैं कि वर्ष 2005 में किसानों को मात्र 400-600 रुपये प्रति क्विंटल की दर से मूसली की बिक्री करनी पड़ी जबकि उनकी लागत 1000 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास थी। इस घाटे ने मूसली के किसानों की कमर तोड़ दी।
इन दिनों एक एकड़ में मूसली की खेती करने पर 1.5-2 लाख रुपये की लागत आती है और 1000-1200 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिलने से प्रति एकड़ 1 लाख रुपये का मुनाफा हो सकता है। त्रिपाठी कहते हैं कि किसानों को इसी घाटे से उबारने के लिए सीएचएएमएफ की स्थापना की गयी। अब बिचौलिए मूसली के भाव तय नहीं करते हैं। बल्कि किसान खुद इसकी कीमत तय करने लगे हैं। किसानों के मुताबिक मूसली की मांग में सालाना 16 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हो रही है ऐसे में सही कीमत मिलने पर नकदी फसल के रूप में इसके कारोबार में जबरदस्त उछाल आ सकता है।