हर साल एक सितंबर के आसपास मानसून की वापसी शुरू हो जाती है पर मौजूदा सीजन में अब तक ऐसा नहीं हुआ है।
वापसी की तय समय-सीमा के 11 दिन बीत जाने के बाद अब लग रहा है कि मानसून की वापसी शुरू होने का समय निकट है। अब तक तकरीबन सभी खरीफ फसलों की बुआई खत्म हो चुकी है। हालांकि अब लोगों की निगाहें मानसून की बजाए इस बात पर है कि मौजूदा खरीफ सीजन में उत्पादन कितना होगा और विभिन्न फसलों की कीमतें इस बार क्या होंगी!
अब तक कपास, तिलहन, दलहन और मक्के की तस्वीर साफ हो चुकी है। इस साल एक जून से सितंबर के पहले हफ्ते तक पूरे देश में मानसून का प्रदर्शन बढ़िया रहा है। मानसून का लंबे समय के लिए गए औसत से महज 3 फीसदी कम बारिश ही इस बार हुई है। खेती के लिहाज से मानसून के इस प्रदर्शन को बेहतर माना जा रहा है। हालांकि देश के विभिन्न इलाकों में मानसून का वितरण असमान रहा है।
देश के उत्तरी-पश्चिम इलाके में जहां औसत से 9 फीसदी अधिक बारिश हुई, वहीं केंद्रीय भाग में औसत से 11 फीसदी कम पानी बरसा। वैसे देश के दूसरे इलाकों में औसत से महज 2 से 3 फीसदी कम पानी बरसा। मराठवाड़ा में औसत से सबसे ज्यादा यानी 37 फीसदी कम पानी बरसा है। महाराष्ट्र के विदर्भ और सौराष्ट्र में भी स्थिति सूखे जैसी रही। इन दोनों इलाकों में औसत से 22 फीसदी कम बारिश होने की सूचना है।
लेकिन इन इलाकों में इस वजह से रोपाई पर ज्यादा असर पड़ने की खबर नहीं है। मध्य प्रदेश के पश्चिमी इलाकों में भी औसत से 24 फीसदी कम बारिश हुई है। मौसम विभाग का पूर्वानुमान है कि आने वाले दिनों में पूरे दक्षिण समेत मराठवाड़ा में और बारिश होगी।
पांच सितंबर तक देश के 81 बड़े जलााशयों में पानी का भंडार पिछले साल की तुलना में 11 फीसदी कम रहा है। हालांकि पिछले 10 साल के औसत से यह भंडार तकरीबन 7 फीसदी ज्यादा है। जानकारों के मुताबिक, जलाशयों में पानी का औसत कम रहने की वजह दक्षिण के जलाशयों का बहुत हद तक खाली रहना है। वैसे अब इस सीजन में जलस्तर के ऊपर चढ़ने की गुंजाइश न के बराबर है।
दलहन के उत्पादन में इस साल कमी होने की उम्मीद है। दलहन का रकबा इस बार 17 फीसदी घटा है। पिछले साल 1.2 करोड़ हेक्टेयर में दाल की बुआई हुई थी जबकि इस बार केवल 95 लाख हेक्टेयर में ही दलहन की बुआई हुई है। जाहिर है, दलहन के आयात में इस साल बढ़ोतरी होगी और कीमतें मजबूत बनी रहेगी।
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के मुताबिक, दलहन का आयात इस बार 3 लाख टन बढ़कर 30 लाख टन तक चले जाने की उम्मीद है। तिलहन की स्थिति इस बार थोड़ी सुधरी है। तिलहन के रकबे में इस साल 4 लाख हेक्टेयर यानी 2.3 फीसदी की वृद्धि हुई है।
सोयाबीन का रकबा तकरीबन 9.3 फीसदी बढ़कर 95.4 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है। हालांकि मूंगफली के उत्पादन क्षेत्र में 2 फीसदी की थोड़ी कमी हुई है। मूंगफली के रकबे में कमी की बड़ी वजह सोयाबीन की बुआई होना है।