पिछले कुछ वर्षों के दौरान इस्पात उद्योग मं स्थिरता के मानदंडों में लगातार सुधार हुआ है लेकिन पर्यावरण पर प्रभाव की तीव्रता के लिए एक व्यापक योजना को लागू करने की जरूरत है। ईवाई इंडिया की एक रिपोर्ट में ऐसा कहा गया है। लेखा फर्म ने ‘टुआड्र्स ग्रीनर स्टील- स्टीयरिंग द ट्रांजिशन’ शीर्षक से यह रिपोर्ट आज जारी की है।
अन्स्र्ट ऐंड यंग (ईवाई) उन चार बड़ी लेखा फर्मों में शामिल है जो परामर्श एवं सलाहकार सेवाएं प्रदान करती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस्पात विनिर्माताओं के लिए कार्बन उत्सर्जन को कम करने का एजेंडा और पर्यावरण, सामाजिक एवं प्रशासन (ईएसजी) प्रदर्शन का महत्त्व चुनौती के साथ-साथ अवसर भी प्रदान करते हैं।
ईवाई इंडिया के पार्टनर एवं नैशनल लीडर (धातु एवं खनन) सौरभ भटनागर के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इस्पात विनिर्माताओं ने लंबे समय से ऊर्जा दक्षता को प्राथमिकता दिया है और हाल में चक्रीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों को अपनाने के लिए समेकित प्रयास किया है। उनकी सबसे बड़ी चुनौती अब भी इस्पात विनिर्माण प्रक्रिया के दौरान उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी लाना और कहीं अधिक सख्त उत्सर्जन लक्ष्यों को हसलि करना है। एक सफल व्यवस्था के लिए व्यापक रूपरेखा तैयार करना महत्त्वपूर्ण होगा। ऐसे सभी मार्ग इस्पात मूल्य शृंखला में स्थिरता संबंधी मानदंडों में सुधार करते समय कारोबारी जोखिम, अंतिम उत्पादों की गुणवत्ता और पूंजी लागत में संतुलन स्थापित करते हुए स्वच्छ प्रौद्योगिकी के उपयोग का विकल्प प्रस्तुत करते हैं।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि भौतिक दक्षता में सुधार के लिए उच्च गुणवत्ता वाले लौह अयस्क एवं कोयले का उपयोग बढऩा चाहिए।
भटनागर ने कहा, ‘इस्पात विनिर्माताओं की रणनीतियों को लागू करने में सरकार, संयुक्त राष्ट्र, शिक्षाविद्, समुदाय और इस्पात कंपनियां जैसे विभिन्न हितधारक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। कार्बन मूल्य निर्धारण ढांचे के अलावा सरकार को आरऐंडडी एवं वित्त के लिए मदद करने की आवश्यकता होगी ताकि बदलाव को प्रोत्साहित किया जा सके।’
उच्च उत्सर्जन श्रेणी में मौजूद कंपनियां बड़े पैमाने पर बात भ_ियों (ब्लास्ट फर्नेंस) का उपयोग कर रही हैं। चूंकि ऐसी अधिकांश प्रक्रिया तकनीकी रूप से पहले ही परिपक्व को चुकी हैं और इसलिए उल्लेखनीय निवेश के लिए कार्बन उत्सर्जन को कम करना संभव नहीं है।