ब्राजील से चिकन के सस्ते मांस के आयात की आहट से नैशनल एग को-ऑर्डिनेशन कमिटी (एनईसीसी) काफी आहत महसूस कर रही है।
एनईसीसी का कहना है कि ऐसा कदम देसी पोल्ट्री उद्योग के लिए काफी नुकसानदायक होगा क्योंकि ऐसे में हमें कारोबार में बराबरी का मौका नहीं मिल पाएगा। दरअसल ब्राजील से सब्सिडाइज्ड पोल्ट्री प्रॉडक्ट के आयात की बात हो रही है।
यह मुद्दा इस खबर के बाद गरमा गया है जिसमें कहा गया है कि ब्राजील की चिकन उत्पाद असोसिएशन भारत को तीन लाख टन चिकन मांस का निर्यात करने वाली है। एनईसीसी की चेयरपर्सन अनुराधा देसाई ने कहा – अगर ऐसा हुआ तो भारत के पोल्ट्री उद्योग को कारोबार में बराबरी का मौका नहीं मिल पाएगा और इस वजह से देश के पोल्ट्री किसान खासे मुसीबत में फंस जाएंगे।
उन्होंने कहा कि देसी पोल्ट्री उद्योग पहले से ही महंगाई की मार झेल रहा है क्योंकि कई चीजों के दाम आसमान छूने लगे हैं। देसाई ने कहा कि यह मामला सिर्फ तीन लाख टन सस्ते चिकन के आयात का नहीं है बल्कि इसे बड़े कैनवास में देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा किमल्टीनैशनल कंपनियां किस तरह भारतीय बाजार में सस्ती चीजें लाकर यहां एकाधिकार स्थापित करने में जुट गई हैं।
उन्होंने कहा कि 40 हजार करोड़ का देसी पोल्ट्री उद्योग करीब 32 लाख लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार मुहैया करा रहा है। उनन्होंने कहा कि अगर नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफन्यूट्रिशन की सिफारिशें मान ली जाएं तो यह उद्योग करीब 90 लाख लोगों को रोजगार दे सकता है और जीएनपी में 90 हजार करोड़ रुपये का योगदान कर सकता है।
देसाई ने कहा कि अंडा उत्पादन में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है जबकि बॉयलर चिकन के मामले में इसका स्थान चौथा है। इसके साथ ही यहां अंडा और चिकन के उत्पादन की लागत काफी कम है। उन्होंने कहा कि देसी पोल्ट्री उद्योग वर्तमान में 400 करोड़ सालाना के निर्यात का आंकड़ा 2000-2500 करोड़ रुपये तक पहुंचाने का माद्दा रखता है।
हालांकि उन्होंने कहा कि यह तभी हो सकता है जब विकसित देश सब्सिडी को अलविदा कह देंगे। देसाई ने कहा कि देसी पोल्ट्री उद्योग चुनौतियों व प्रतियोगिता का सामना करने को तैयार है, लेकिन विकसित देश मसलन अमेरिका व ब्राजील की सब्सिडी नीति से नहीं निपट सकता।