पाम तेल की मांग घटने लगी है। पाम तेल का आयात मई महीने में दो साल से अधिक के निचले स्तर पर आ गया है। इसकी वजह उपभोक्ताओं के समक्ष अन्य सस्ते तेलों का विकल्प उपलब्ध होना है।
देश में सोया तेल और सूरजमुखी तेल जैसे खाद्य तेलों के दाम काफी गिर चुके हैं। पहले सूरजमुखी, सोयाबीन तेल के दाम व पाम तेल के दाम के बीच अंतर ज्यादा रहता था। अब यह अंतर घटकर काफी कम रह गया है। इसलिए पाम तेल की मांग कमजोर पडी है और अन्य तेलों की मांग बढ़ रही है।
मई में पाम तेल का आयात 27 माह के निचले स्तर पर
अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने बताया कि भारत का पाम तेल आयात मई महीने में 27 महीने के निचले स्तर पर आ गया है क्योंकि खरीदारों ने पाम तेल के महंगे कार्गाे को रद्द कर सस्ते सोया तेल और सूरजमुखी के तेल से इसे बदल दिया।
डीलरों के औसत अनुमान के अनुसार भारत द्वारा पाम तेल का आयात पिछले महीने गिरकर 4,41,000 टन हो गया, जो अप्रैल के 5,10,094 टन से 14 फीसदी कम है। फरवरी 2021 के बाद से मई का आयात सबसे कम है। अप्रैल में खरीदारों ने कई वर्षों में पहली बार मई शिपमेंट के लिए बड़ी मात्रा में पाम तेल की खरीद को रद्द करने का विकल्प चुना है।
ठक्कर ने कहा कि पहले आरबीडी पामोलीन और सूरजमुखी तेल के दाम के बीच 20 से 25 फीसदी अंतर रहता था। अब यह घटकर 5 से 7 फीसदी रह गया। इसी तरह पामोलीन व सोयाबीन तेल के बीच अंतर 15 से 20 फीसदी की तुलना में घटकर 5 से 7 फीसदी रह गया। पाम तेल का खाने में उतना अच्छा नहीं माना जाता है। जितना सूरजमुखी, सोयाबीन व सरसों तेल को माना जाता है। इसलिए पाम तेल की खपत अब घट रही है।
खाद्य तेल कारोबारी तरूण जैन ने कहा कि पाम तेल पिछले कुछ महीनों से बाजार से अपनी हिस्सेदारी खो रहा है और जब तक यह दामों के मामले में प्रतिस्पर्धी नहीं हो जाता है, तब तक इसे फिर से हासिल करने की संभावना नहीं है।
मई में सूरजमुखी व सोया तेल का आयात बढने की संभावना
मई में जहां पाम तेल का आयात गिर सकता है, वहीं सोया व सूरजमुखी तेल का आयात बढने का अनुमान है। ठक्कर ने कहा कि डीलरों के अनुमान के अनुसार मई में भारत का सूरजमुखी तेल आयात एक महीने पहले के मुकाबले 28 फीसदी बढ़कर 3,19,00 टन हो सकता है, जबकि सोया तेल का आयात 10 फीसदी बढ़कर 2,90,000 टन हो सकता है।
दुनिया के सबसे बड़े वनस्पति तेल आयातक द्वारा खरीद में गिरावट का असर पाम तेल की कीमतों पर पड़ सकता है, जो पहले से ही 30 महीनों में अपने सबसे निचले स्तर पर कारोबार कर रही हैं।