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कहीं ज्यादा तो कहीं कम बारिश से फसलें प्रभावित

Last Updated- December 07, 2022 | 12:02 PM IST

असमान रूप से हुई मानसूनी बारिश से खरीफ की बुआई से संबंधित चिंताएं सताने लगी हैं। दक्षिणी प्रदेश में सामान्य से 34 प्रतिशत कम बारिश हुई है।


महाराष्ट्र और गुजरात तथा राजस्थान के कुछ हिस्सों की स्थिति भी चिंताजनक है। इससे कई फसलों जैसे तिलहन, मूंगफली, दाल खास तौर से अरहर, कपास और बगान फसलों की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। वास्तव में, अगर परिस्थितियों में जल्द सुधार नहीं होता है तो धान और गन्ने की फसल भी विपरीत रुप से प्रभावित हो सकती है।

हालांकि, अन्य जगहों पर खरीफ की बुआई में तेजी आई है यद्यपि मानसून के समय से पहले आ जाने से आम जैसे फलों की गुणवत्ता प्रभावित हुई है। यद्यपि देश में सिंचाई के प्रमुख जलाशयों में पानी का भंडार पिछले वर्ष के स्तर से कम है, लेकिन अभी भी  लंबी अवधि के औसत भंडार से अधिक है। इसलिए सिंचाई संबंधी समस्या अभी तक उत्पन्न नहीं हुई है। देश के कुछ हिस्सों में खाद की कमी को छोड़ कर, अधिकांश हिस्सों में खेती के महत्वपूर्ण साधनों की उपलब्धता पर्याप्त कही जा रही है।

कमोडिटी मूल्यों की परिस्थितियां अनुकूल होने और रबी के  पिछले विपणन सीजन में कीमतों की अच्छी उगाही के कारण खेती के साधनों की मांग इस साल अपेक्षाकृत अधिक देखी जा रही है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार 15 जुलाई तक देश में कुल मिलाकर 319.1 एमएम बारिश हुई है जो सामान्य से लगभग 6 प्रतिशत अधिक है। हालांकि देश के सभी हिस्सों में बारिश समान रुप से नहीं हुई है। एक ओर जहां देश के दक्षिणी प्रदेश में जहां 34 प्रतिशत कम वर्षा हुई है वहीं उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में सामान्य से 77 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है।

मध्य भारत में भी सामान्य से 3 प्रतिशत कम बारिश हुई है। देश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में सामान्य से केवल एक प्रतिशत अधिक बारिश हुई है। इस हिस्से में मानसून फिलहाल काफी सक्रिय है। देश में मौसम विभाग के कुल 36 में से 14 उप-प्रभागों में अभी तक बारिश की कमी है। इन उप-प्रभागों में 21 से 64 प्रतिशत कम बारिश हुई है। इनमें केरल (-44 प्रतिशत), कर्नाटक का अंदरुनी दक्षिणी क्षेत्र (-29 प्रतिशत), कर्नाटक का अंदरुनी उत्तरी क्षेत्र (-48 प्रतिशत), तटीय कर्नाटक (-28 प्रतिशत), रयालासीमा (-49 प्रतिशत), तेलंगाना (-31 प्रतिशत), तटीय आंध्र प्रदेश (-32 प्रतिशत), विदर्भ (-34 प्रतिशत), गुजरात क्षेत्र (-21 प्रतिशत), नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा (-21 प्रतिशत), असम और मेघालय (-28 प्रतिशत) तथा लक्षद्वीप (-21 प्रतिशत) शामिल हैं।

भारतीय मौसम विभाग द्वारा जारी की गई अगले सप्ताह के मानसून की संभावनाओं से बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों को राहत मिलने के आसार कम हैं। विभाग ने संभावना जताई है कि देश के मध्य, पश्चिमी और प्रायद्विपीय हिस्सों खास तौर से आंध्र प्रदेश, अंदरुनी कर्नाटक, महाराष्ट्र के भीतरी क्षेत्रों, गुजरात और पश्चिमी राजस्थान में बारिश कम होगी। हालांकि, देश के उन हिस्सों में जहां मॉनसून सामान्य है वहां खेती का काम बढ़िया चल रहा है।

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के लागू होने से लोगों के अन्य राज्यों में नौकरी करने जाने में कमी आई है। इस कारण  पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से मजदूरों की कमी की खबरें आ रही हैं। यही वजह है कि किसान अब अधिक लागत लगा कर यांत्रिक खेती करने को बाध्य हैं। कृषि मंत्रालय को राज्यो से मिली फसलों की बुआई (11 जुलाई तक) से संबंधित रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि धान, मक्का, बाजरा और दलहन जैसे उड़द और मूंग की खेती का रकबा पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में अधिक है। लेकिन कपास की बुआई में कमी आई है खास तौर से महाराष्ट्र में जहां बारिश कम हुई है।

धान और तिलहन की फसलों की ओर किसानों के रुझान से गन्ने की खेती के क्षेत्र में लगभग 18 प्रतिशत की कमी आई है। तिलहन की बात की जाए तो सोयाबीन की बुआई जबर्दस्त हुई है। इसके रकबे में 23 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। लेकिन आंध्र पदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में बारिश की कमी से मूंगफली की बुआई 5.6 प्रतिशत कम हुई है।

दलहन के मामले में दाल की प्रमुख खरीफ फसल तूर की बुआई पिछले वर्ष से कम हुई है यद्यपि अन्य दलहन जैसे मूंग और उड़द की बुआई पिछले वर्ष जैसी ही हुई है। 10 जुलाई तक दलहन की बुआई का कुल क्षेत्र 30.8 लाख हेक्टेयर होने का अनुमान है जबकि पिछले वर्ष की इसी तारीख तक 28.7 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी।

First Published - July 19, 2008 | 12:09 AM IST

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