पिछले कुछ साल से विश्व की तीन बड़ी खानों द्वारा लौह अयस्क की कीमतों में की गई भारी बढ़ोतरी चीन को पसंद नहीं आई है। अब एक बार फिर चीन ब्राजील की वेल और एंग्लो-ऑस्ट्रेलियाई कंपनी बीएचपी लिटिन और रियो टिंटो को जबाव देने जा रहा है।
अप्रैल 2009 में शुरू होने वाले सीजन के लिए पिछले हफ्ते लौह अयस्क की कीमतों के लिए बातचीत से खनन कारोबरियों को निश्चित ही दुख हुआ होगा। बंद कमरे में हुई बैठक में क्या हुआ इसका केवल अंदाजा लगाया जा सकता है।
लेकिन इस समय, खनिज के मामले में विश्व के सबसे बड़े आयातक ने चाइना आयरन ऐंड स्टील एसोसिएशन (सीआईएसए) का इस्तेमाल करना उचित समझा है ताकि सब यह जान सकें कि अगले सीजन के लिए इसका लक्ष्य क्या है।
सीआईएसए के महासचिव शान शांघुआ कह रहे हैं कि साल 2009-10 के लिए लौह अयस्क की कीमतें हाल में विश्व के इस्पात मिल उद्योगों की कमजोरी को ध्यान में रखते हुए तय की जानी चाहिए।
उनका तर्क है कि वैश्विक आर्थिक संकट और मांग घटने की वजह से इस्पात की कीमतें घट कर साल 1994 के स्तर पर आ गई हैं। लौह अयस्क की कीमतें भी इसी के अनुसार निर्धारित की जानी चाहिए।
ऐसा कहना कि अयस्क की कीमतें इस्पात की कीमतों के अनुसार होनी चाहिए तार्किक नहीं है क्योंकि 1.6 इकाई अयस्क का इस्तेमाल इस्पात की एक इकाई बनाने में किया जाता है।
इस खनिज की हिस्सेदारी इस्पात उत्पादन की लागत में सबसे अधिक होती है। संयोग से बेंचमार्क ग्रेड वाले लौह अयस्क की कीमत साल 1994 के 24.40 डॉलर प्रति टन से बढ़ कर अब 90 डॉलर प्रति टन हो गई है।
फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनेरल इंडस्ट्रीज के महासचिव आरके शर्मा कहते हैं कि वर्तमान सीजन के करारों की कीमत चाहे जो भी हो लेकिन चीनी आयातक फिलहाल हमसे 50 से 60 डॉलर प्रति टन के हाजिर मूल्य पर हमसे फाइन्स की खरीदारी कर रहे हैं।
लौह अयस्क के अनुबंध की कीमतें तब तय की गई थीं जब इस्पात की कीमतों में उछाल आ रहा था। इस समय कोई लौह अयस्क की कीमतों की भविष्यवाणी करने की जोखिम नहीं उठाएगा कि यह घट कर एक चौथाई हो जाएगी या दोगुनी।
यही वजह है कि हर जगह की इस्पात मिलें अपने उत्पादन में कटौती कर रही हैं ताकि उनके पास भंडार न जमा हो जाए। भारत के सबसे बड़े लौह अयस्क उत्पादक एनएमडीसी के अध्यक्ष राणा सोम कहते हैं, ‘खनिज की कीमतें बढ़ने की कोई संभावना नहीं है।’
वास्तव में, वैश्विक और घरेलू कीमतों के फर्क को खत्म करने के लिए अक्टूबर में अनुबंध की कीमतें बढ़ाए जाने के बाद एनएमडीसी अब यह निर्णय करेगी कि खनिज की कीमतों में कितनी कटौती की जानी चाहिए।
स्थानीय इस्पात उद्योग ने लौह अयस्क के निर्यात को रोकने का अपना अभियान खत्म भी नहीं किया कि सरकार ने वैश्विक कीमतों में आ रही गिरावट को देखते हुए फाइन्स पर लगने वाला निर्यात शुल्क समाप्त कर दिया और ओर लंप्स का शुल्क घटा कर 5 प्रतिशत कर दिया।
पिछले कुछ सालों से चीन भारत से लौह अयस्क की खरीदारी करने की दिशा में अपने कदम बढ़ा रहा है ताकि वेल, बीएचपी और रियो पर इसकी निर्भरता खत्म हो सके।
इस्पात निर्माताओं के अनुरोध पर विचार करते हुए सरकार ने सभी खनिजों को आयात शुल्क के दायरे में ला खड़ा किया तो चीन ने इसे अपवाद के रूप में नही लिया।
शर्मा को भरोसा है कि अयस्क फाइन्स पर निर्यात शुल्क समाप्त होने के बाद सची कुछ महीनों बाद फिर भारत से लौह अयस्क की खरीदारी शुरू करेगा।
लौह अयस्क क्षेत्र के लिए चीन का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि साल 2007-08 में किए गए कुल 1,042.7 लाख टन निर्यात में हमारे इस पड़ोसी की हिस्सेदारी 88 प्रतिशत थी।
इसके अलावा, चीन भारत से फाइन्स की खरीदारी बड़े पैमाने पर करता है पेलेटाइजेशन क्षमता के अभाव में जिसका स्थानीय तौर पर इस्तेमाल बहुत कम हो पाता है।
पिछले साल चीन ने 4,890 लाख टन कच्चे इस्पात का उत्पादन किया था और घरेलू मांग की पूर्ति के लिए इसें लगभग 3,800 लाख टन अयस्क का आयात करना पड़ा था।
इस साल की शुरुआत में भविष्यवाणी की गई थी कि चीन का आयात बढ़ कर 4,100 लाख टन हो जाएगा। लेकिन ऐसा होने की संभावना कम नजर आती है क्योंकि चीन की कई मिलों ने स्टील की मांग में कमी को देखते हुए उत्पादन में कटौती की है।
साल 2007 के लौह अयस्क के अंतरराष्ट्रीय कारोबार में चीन की हिस्सेदारी सबसे अधिक, 82,220 लाख टन थी जो साल 2006 के मुकाबले 8.1 प्रतिशत अधिक थी।