देश में बीटी कपास के नकली बीजों की बिक्री में उल्लेखनीय कमी आई है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2007-08 में जांच के दौरान केवल 5.23 प्रतिशत नमूने नकली पाए गए जबकि 2003-04 में 68.91 प्रतिशत नमूने नकली पाए गए थे। इस हाइब्रिड बीज को बाजार में साल 2002 में लॉन्च किया गया था।
पिछले चार सालों में बीटी कपास की खेती वाले क्षेत्रों में जबर्दस्त उत्पादन के बावजूद नकली बीजों की बिक्री में कमी आई है। कपास विशेषज्ञों ने कहा कि जल्दी ही अवैध बीटी पैकेट बाजार में नजर नहीं आएंगे क्योंकि नियामक प्राधिकरण अप्रमाणित बीटी कपास की किस्मों के लिए खोजी और दंडात्मक कदम उठा रही है।
बीटी कपास के नकली बीजों में कमी आने से भारत विश्व का सबसे बड़ा कपास उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक बनने में मदद मिली है। एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट रिक्रयूटमेंट बोर्ड के अध्यक्ष सी डी मायी ने कहा कि सेंट्रल इंस्टीटयूट फॉर कॉटन रिसर्च के प्रयासों और बीटी कपास की कीमतों में कमी से बीटी कपास के अवैध पैकेट्स को नियंत्रित करने में मदद मिली है।
नकली बीजों से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले राज्यों में मध्य प्रदेश, गुजरात, पंजाब और महाराष्ट्र शामिल हैं। अकेले गुजरात में साल 2007-08 में नकली बीजों की प्रतिशतता घट कर 20 हो गई जबकि यह साल 2003-04 में 80 प्रतिशत था।
हालांकि मध्य प्रदेश में साल 2007-08 में जांच किए गए बीटी किस्म के कुल नमूने में से 45 प्रतिशत से अधिक निम् गुणवत्ता वाले और अप्रमाणित थे। ये चार राज्य देश के कुल कपास उत्पादन के दो तिहाई से अधिक कपास का उत्पादन करते हैं।
बीटी कपास बीज के नमूने लेकर उसे नागपुर के बीटी-रेफरल प्रयोगशाला में भेजा गया। मायी ने कहा कि एक निरक्षर किसान भी अपने खेत में एक सामान्य सा इम्यूनोलॉजिकल जांच कर सकता है। इसका इस्तेमाल बीजों, पत्तियों और फूलों के लिए किया जा सकता है।