डॉलर के मुकाबले रुपया आज 0.2 फीसदी की गिरावट के साथ 87.60 के नए निचले स्तर पर बंद हुआ। रुपये में यह गिरावट अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 25 फीसदी शुल्क के साथ रूस से तेल और हथियार खरीदने के लिए जुर्माना लगाने की घोषणा के कारण आई है। यह शुल्क 1 अगस्त से प्रभावी होगा। इसके अतिरिक्त विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की ओर से लगातार की जा रही निकासी से भी रुपये पर असर पड़ा है। जुलाई में डॉलर के मुकाबले रुपया में 2.09 फीसदी की नरमी आई है जो सितंबर 2022 के बाद से इसकी सबसे बड़ी मासिक गिरावट है। दिन में कारोबार के दौरान रुपया डॉलर की तुलना में 87.75 के निचले स्तर पर पहुंच गया था।
बाजार के भागीदारों ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने डॉलर की बिकवाली के जरिये विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया जिससे नुकसान सीमित हो गया। बुधवार को रुपया 0.7 फीसदी की गिरावट के साथ 87.42 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था। यह ढाई महीने से अधिक समय में सबसे तेज एकदिवसीय गिरावट थी। डॉलर के मुकाबले रुपये का पिछला निचला स्तर 6 फरवरी को 87.58 प्रति डॉलर था। डॉलर के मुकाबले रुपये का अब तक का सबसे निचला स्तर (इंट्राडे) 10 फरवरी, 2025 को 87.95 था।
सार्वजनिक क्षेत्र के एक बैंक के एक डीलर ने कहा, ‘आयातकों और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा डॉलर की खरीद की वजह से रुपये में नरमी आई है।’ उन्होंने कहा, ‘भारतीय रिजर्व बैंक ने 87.75 प्रति डॉलर पर हस्तक्षेप किया। रुपये में आगे भी नरमी बनी रह सकती है और निकट अवधि में 87.90 प्रति डॉलर पर प्रतिरोध देखा जा सकता है।’
बिज़नेस स्टैंडर्ड के सर्वेक्षण के अनुसार रुपये में भारी उठापटक रहने की उम्मीद है। सर्वेक्षण में शामिल ज्यादातर प्रतिभागियों ने कहा कि सितंबर तक रुपया 88 प्रति डॉलर के करीब पहुंच सकता है।
व्यापार तनाव उभरते बाजार की मुद्राओं पर दबाव डालना जारी रखेगा, जिससे रुपया नए निचले स्तर की ओर बढ़ रहा है और निकट भविष्य में इसमें गिरावट बनी रह सकती है। हालांकि दिसंबर के अंत तक डॉलर के मुकाबले रुपये में सुधार होने की उम्मीद है।
आईसीआईसीआई बैंक में इकनॉमिक्स रिसर्च के प्रमुख समीर नारंग ने कहा, ‘भारत पर जो शुल्क लगाया गया है उसका असर पड़ा है। रुपया अन्य देशों की तुलना में भारत पर लगाए गए अपेक्षाकृत अधिक शुल्क पर प्रतिक्रिया दे रहा है। इस महीने रुपये में करीब 2.3 फीसदी की गिरावट आई है। दूसरी ओर डॉलर इंडेक्स मजबूत हुआ है। इन रुझानों को देखते हुए हमारा मानना है कि अधिकांश मुद्राओं पर दबाव बना रहेगा। फिलहाल मध्यम अवधि का दृष्टिकोण इस बात पर निर्भर करेगा कि शुल्क का मुद्दा कैसे आगे बढ़ता है।’
इस बीच अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने 9-2 के वोट से ब्याज दरों को 4.25 से 4.5 फीदी पर स्थिर रखा, जिसमें ट्रंप द्वारा नियुक्त दो गवर्नरों ने दर में कटौती के पक्ष में असहमति जताई। इस फैसले से गुरुवार को बाजार में उठापटक देखी गई और डॉलर मजबूत हुआ तथा अमेरिकी ट्रेजरी की यील्ड बढ़ गई। चालू वित्त वर्ष में डॉलर के मुकाबले रुपये 2.4 फीसदी नीचे आया है।
कुछ प्रतिभागियों का मानना था कि शुल्क से संबंधित घटनाक्रम के कारण निकट भविष्य में रुपये पर और दबाव बढ़ सकता है लेकिन बाद में इसमें सुधार होने की उम्मीद है। बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘मुझे सितंबर तक और गिरावट की उम्मीद है। लेकिन इसके बाद सुधार होगा। दिसंबर अंत रुपया 87 और 88 प्रति डॉलर के बीच कारोबार कर सकता है।’