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ऊंचे इलाकों की ओर खिसके सेब के बागान

Last Updated- December 05, 2022 | 4:57 PM IST

बढ़ते तापमान की वजह से पैदा हुए संकट का असर अब कुल्लू के विश्व प्रसिद्ध सेब पर भी दिखने लगा है।


पहले मंडी, बजौरा और कुल्लू में सेब का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता था, लेकिन गर्मियां बढ़ने से लोग अब सेब उत्पादन के लिए मनाली और दूसरे ऊंची जगहों का रुख कर रहे हैं। रॉयल डिलिसियश और गोल्डन जैसी सेब की किस्मों के उत्पादन के लिए मशहूर रही कुल्लू घाटी में अब अनार और आलूबुखारे जैसे फलों की पैदावार भी होने लगी है। बागवानी अधिकारियों का भी मानना है कि  ग्लोबल वॉर्मिंग का सेब पर फ र्क जरूर पड़ा है, लेकिन इसके उत्पादन में कोई बड़ी कमी नहीं आई है।


कुल्लू जिले में 2007-08 में लगभग 135 लाख मीट्रिक टन सेब के उत्पादन की संभावना है जबकि 2006-07 में 117 लाख मीट्रिक टन सेब का उत्पादन हुआ था। कुल्लू घाटी से सेब उत्पादन क्षेत्र के विस्थापित होने के बावजूद सेब के उत्पादन में कोई कमी नहीं आई है, तो इसकी एक वजह है कि सेब की खेती के लिए नई जगहें तलाश ली गई हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से सेब की पैदावार की कोई कमी नहीं आई है, लेकिन इसने सेब की गुणवत्ता पर जरूर प्रभाव डाला है। बढ़ते तापमान ने सेब का आकार और रंग बदल दिया है।


कुल्लू के एक सेब उत्पादक अनिल कायस्थ ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से उसका 20 बीघा बाग सूख गया। जिसने उनको फसल उत्पादन के दूसरे विकल्पों के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है। अनिल केवल अकेले किसान नहीं हैं, बल्कि कुल्लू घाटी में कई ऐसे किसान हैं जो इस तरह की समस्याओं को झेल रहे हैं।


पिछले चार पांच साल से यह सेब पट्टी मनाली जैसी ऊंची जगहों की ओर बढ़ती जा रही है। एक समय सेबों के लिए प्रसिद्ध कुल्लू घाटी में अब दूसरी संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। एक और किसान नकुल खुल्लर कहते हैं कि पिछले पांच सालों से यह प्रक्रिया चल रही है। पहले जहां 4000 फीट की ऊंचाई तक पैदावार हो रही थी, वहीं अब यह 5000 फीट की ऊंचाई वाले इलाकों में की जा रही है।


डॉ. वाई. एस. परमार वन एवं बागवानी विश्वविद्यालय के प्रो. डॉ. एस. पी. भारद्वाज कहते हैं – पिछले एक दशक से कुल्लू घाटी में तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। पहले गर्मियों में जहां औसत तापमान 25 डिग्री सेल्सियस तक रहता था, वहीं अब यह बढक़र 35 डिग्री तक पहुंच गया है। भारद्वाज कहते हैं कि सेब के लिए कम से कम 1200 घंटों की ठंडक चाहिए होती है।


 ऐस में बढ़ते तापमान का पैदावार पर असर पड़ना लाजिमी है। कुल्लू के बागवानी उपनिदेशक बी. एल. शर्मा कहते हैं – ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से कुछ इलाकों पर असर पड़ रहा है ऐसे में लोगों को अनार, आलूबुखारे और अन्य सब्जियों को उगाने पर ध्यान देना चाहिए।

First Published - March 24, 2008 | 12:18 AM IST

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