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आगामी बजट में सरकार का राजकोषीय सुधार पर नहीं होगा ज्यादा जोर

Last Updated- December 11, 2022 | 10:38 PM IST

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2021-22 का बजट पेश करते समय राजकोषीय घाटे का लक्ष्य नॉमिनल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 6.8 प्रतिशत रखा था, जबकि 2020-21 का संशोधित अनुमान 9.5 प्रतिशत था। 2022-23 के केंद्रीय बजट में बहुत ज्यादा राजकोषीय सुधार किए जाने की संभावना नहीं है।

बजट बनाने वाले शीर्ष लोगों के बीच चर्चा अभी जारी है, लेकिन 2022-23 में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 6.5 से 6.8 प्रतिशत के बीच रखे जाने की संभावना है। इसकी दो वजहें हैं।

पहला, व्यय के ज्यादा बोझ के कारण इस साल राजकोषीय घाटे का लक्ष्य पूरा कर पाना संभव नहीं नजर आ रहा है। साथ ही 1.75 लाख करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य पूरा होने की संभावना भी नहीं दिख रही है। दूसरे, महामारी के पहले मध्यावधि राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी का 3 प्रतिशत रखा गया था, जो अब समाप्त नजर आता है। इसका मतलब यह है कि अब साल दर साल लक्ष्य में तेज कमी के बजाय अब आने वाले वर्षों में धीरे धीरे इसमें कमी लाई जाएगी।

गौरतलब है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को अर्थशास्त्रियों ने बजट पूर्व बैठक में राजकोषीय घाटे में तेज सुधार न करने व बुनियादी ढांचे और सामाजिक योजनाओं पर खर्च बरकरार रखने का सुझाव दिया है।

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘ओम्रीकोन वैरिएंट को लेकर अभी भी अनिश्चितता है, जिसकी वजह से आर्थिक रिकवरी भी संशय में है। अगले साल भी कुछ राजकोषीय जगह की जरूरत होगी क्योंकि कल्याणकारी योजनाओं में हमारी व्यय संबंधी बाध्यताएं हैं। साथ ही सार्वजनिक निवेश और क्षेत्र विशेष में जरूरत पडऩे पर निवेश जारी रखना होगा।’

चालू साल में मंत्रालय कर राजस्व लक्ष्य में रूढि़वादी रहा है और कर संग्रह बजट लक्ष्य की तुलना में बहुत ज्यादा रहा है क्योंकि अर्थव्यवस्था में तेज रिकवरी हो रही है। अगले साल व्यय लक्ष्यों को लेकर रूढि़वादी हो सकता है, जिन क्षेत्रों में व्यय का ज्यादा प्रावधान किया गया है।

अधिकारियों के मुताबिक 2022-23 के बजट में कोविड-19 टीके के बूस्टर शॉट, स्वास्थ्य क्षेत्र, गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं, खाद्य सब्सिडी, और पूंजीगत व्यय पर आवंटन पर मुख्य रूप से विशेष ध्यान होगा। निजी तौर पर उनका मानना है कि 2021-22 के राजकोषीय घाटे को लेकर दबाव है।

वहीं दूसरी तरफ राजस्व संग्रह बेहतर रहा है। अक्टूबर दिसंबर तिमाही में अग्रिम कर बढ़कर पिछले साल की समान अवधि की तुलना में दोगुना होकर 94,107 करोड़ रुपये हो गया है।

पिछले सप्ताह वित्त मंत्रालय ने संसद को सूचित किया था कि केंद्र सरकार का शुद्ध आयकर राजस्व अप्रैल से  7 दिसंबर तक 7.39 लाख करोड़ रुपये रहा है। लॉकडाउन से प्रभावित वित्त वर्ष 21 के दौरान शुद्ध आयकर राजस्व संग्रह 9.45 लाख करोड़ रुपये था। महामारी के पहले के वित्त वर्ष 20 में संग्रह 10.51 लाख करोड़ रुपये था।

बजट बना रहे लोगों को विश्वास है कि प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कर मिलाकर शुद्ध कर संग्रह 15.45 लाख करोड़ रुपये के बजट लक्ष्य के पाह होगा। सकल वस्तु एवं सेवा कर (सकल जीएसटी) संग्रह नवंबर में 1.32 लाख करोड़ रुपये रहा है, जो न सिर्फ इस साल का दूसरा सबसे बड़ा संग्रह है, बल्कि देशव्यापी कर लगने के बाद का बड़ा संग्रह है।

अप्रैल-नवंबर के बीच कुल सकल जीएसटी संग्रह 7.02 लाख करोड़ रुपये है, जो पूरे वित्त वर्ष 21 के दौरान 8.66 लाख करोड़ रुपये था और वित्त वर्ष 20 में 9.44 लाख करोड़ रुपये था।

भारतीय रिजर्व बैंक के अधिशेष और सरकारी इकाइयों के लाभांश के कारण गैर कर राजस्व भी बेहतर रहने की उम्मीद है।

लेकिन ज्यादा व्यय बोझ के कारण यह संग्रह धूमिल नजर आता है। गरीब लोगों के लिए मुफ्त खाद्यान्न, उर्वरक सब्सिडी का बोझ उम्मीद से बहुत ज्यादा होने, आर्थिक रिकवरी में मदद के लिए सेक्टर के आधार पर उठाए गए कदम और केंद्र सरकार द्वारा टीकाकरण का बोझ पूरी तरह अपने ऊपर लने की वजह से खर्च बढ़ा है। चल रहे शीतकालीन सत्र में सरकार ने 2.99 लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त व्यय बोझ की मंजूरी मांगी है।

इसके अलावा विनिवेश का मसला भी है। सरकार के भीतर के तमाम लोगों का मानना है कि भारत पेट्रोलियम का निजीकरण इस साल संभव नहीं है।

एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘हम एयर इंडिया को बेचने में सफल रहे हैं, इसका मतलब यह नहीं कि बीपीसीएल की बिक्री अचानक गति पकड़ लेगी। निजीकरण जटिल प्रक्रिया है। एलआईसी का काम किया जाएगा क्योंकि सरकार को आईपीओ में लंबा अनुभव है।’ उन्होंने कहा कि अतिरिक्त कर राजस्व से विनिवेश में आई किसी कमी की भरपाई कर ली जाएगी, लेकिन इससे अतिरिक्त व्यय के बोझ को पूरा नहीं किया जा सकेगा।

First Published - December 24, 2021 | 9:05 PM IST

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