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लालू का ‘अंदाज-ए-बयां’

Last Updated- December 10, 2022 | 1:05 AM IST

जाहिर है, लालू प्रसाद शायर तो नहीं हैं, मगर जब से रेल मंत्रालय उन्होंने संभाला है, अच्छी-खासी शायरी उन्हें भी आ गई है।
वैसे, रेल मंत्रालय संभालने के तुरंत बाद से ही उनका मिजाज शायराना नहीं था वरना 2004 में रेल मंत्री बनने के बाद उन्होंने 2004-05 के अपने पहले रेल बजट में भी उन्होंने कुछ शेरो-शायरी की होती। उनके मिजाज में यह दिलचस्प बदलाव तो एक साल बाद आया, जब उन्होंने 2005-06 का रेल बजट लोकसभा में पेश किया।
इस मौके पर पहली बार उन्होंने दुनियाभर को मोह लेने वाली अपनी कठिन लालूनॉमिक्स के बीच-बीच चुटीले और दिलकश अंदाज में अपनी शायरी के हुनर से भी लोगों को रूबरू किया। जरा मुलाहिजा फरमाइए, उनके उसी वक्त के एक शेर का:
सिर्फ हंगामा खड़ा करना, मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि तस्वीर बदलनी चाहिए। 
वाकई लालू के इस जोशो-खरोश में कमी तो तब आती, जबकि हकीकत में वह लोकसभा में शेरों-शायरी सुनाकर सिर्फ हंगामा ही खड़ा कर रहे होते। 

रेलवे की तस्वीर भी बदलने लगी थी, लिहाजा उसके ठीक एक साल बाद के 2006-07 के बजट भाषण में उन्होंने पिछली बार से कहीं ज्यादा, यानी एक के बाद ताबड़तोड़ नौ शेर जड़ दिए, जिनमें दो पेश हैं :
मेरे जुनूं का नतीजा जरूर निकलेगा,
इसी स्याह समंदर से नूर निकलेगा।
हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है,
जिस तरफ भी चल दिए, रास्ता हो जाएगा।
बहरहाल, गोल पर गोल दागने के बाद हर रेल मंत्री की तरह आखिरकार उनकी भी पारी का अंत आ ही गया। लेकिन जाते-जाते भी ऐसे ही पांच गोल दागकर बतौर रेल मंत्री अपनी पारी समाप्ति का ऐलान उन्होंने कुछ ऐसे अंदाज में किया:
कारीगरी का ऐसा तरीका बता दिया,
घाटे का जो ही दौर था, बीता बना दिया,
भारत की रेल विश्व में इस तरह की बुलंद,
हाथी को चुस्त कर दिया, चीता बना दिया।

First Published - February 14, 2009 | 12:13 AM IST

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