केंद्र सरकार नौवहन उद्योग को बुनियादी ढांचा क्षेत्र का दर्जा दे सकती है। उद्योग की तरफ से लंबे समय से इसकी मांग हो रही है। इस मामले से जुड़े सूत्रों ने बताया कि बुनियादी ढांचा क्षेत्रों की हार्मनाइज्ड सूची के भाग के रूप में जहाजों को बुनियादी ढांचा का दर्जा देने पर विचार किया जा सकता है और बजट में इसकी घोषणा की जा सकती है।
बुनियादी ढांचा क्षेत्रों की हार्मनाइज्ड मास्टर सूची में शामिल किए जाने से इस सेक्टर के डेवलपरों को बुनियादी ढांचा संबंधी उधारी की आसान शर्तों पर बढ़ी सीमा के साथ ऋण मिल सकेगा। बुनियादी ढांचा क्षेत्र का दर्जा मिलने से बाह्य वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) के रूप में बड़ी मात्रा में धन तक पहुंच, बीमा कंपनियों और पेंशन फंडों से लंबी अवधि के फंड तक पहुंच और इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंसिंग कंपनी लिमिटेड (आईआईएफसीएल) आदि से उधार लेने की पात्रता मिल सकेगी।
इस मामले से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि वित्त मंत्रालय शुरुआत में तो यह दर्जा देने को लेकर अनिच्छुक था, लेकिन कोस्टल शिपिंग में पीपीपी को बढ़ावा देने लिए 2023-24 के बजट में की गई घोषणा के बाद कोस्टल शिपिंग के लिए इस पर विचार करना शुरू किया। इसकी वजह थी कि सस्ते ऋण की उपलब्धता न होने का हवाला देते हुए ऑपरेटरों ने इसमें कम दिलचस्पी दिखाई।
व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण की व्यवस्था के बावजूद केंद्र की पीपीपी परियोजनाओं की योजना को बहुत कम सफलता मिली। भारत में जहाज निर्माण को बढ़ावा देने की पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के त्रिआयामी प्रयासों के साथ सरकार अब इस क्षेत्र को बुनियादी ढांचे का दर्जा देने के लिए जहाजों की एक विस्तृत श्रृंखला पर विचार कर रही है।
समुद्री गतिविधियों की प्राचीन विरासत और इसके लिए वातावरण तैयार करने की पहले की कवायदों के बावजूद वैश्विक जहाज निर्माण में भारत की हिस्सेदारी महज 0.06 प्रतिशत है। भारत के लोग विदेशी ऑपरेटरों को 109 अरब डॉलर समुद्री माल ढुलाई का भुगतान करते हैं। पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री सर्वानंद सोनोवाल के मुताबिक सरकार 2047 तक भारत को शीर्ष 5 नौवहन उद्योग वाले देशों में शामिल करना चाहती है। विशेषज्ञों और उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि यह तिथि अभी 22 साल दूर है, लेकिन लक्ष्य हासिल करने के लिए बड़े बदलाव करने की जरूरत है। सरकार ने अप्रैल 2018 में रेलवे रोलिंग स्टॉक को बुनियादी ढांचा क्षेत्र का दर्जा दिया था, जिससे उसकी फंड तक व्यापक पहुंच हो सके। शिपिंग उद्योग ने मंत्रालय से जहाजों के लिए भी इसी तरह के दर्जे की मांग की थी।
नई सदी की शुरुआत से ही नौवहन उद्योग के लिए सस्ता ऋण मुहैया कराए जाने और फंड तक व्यापक पहुंच की मांग की जा रही है। 2001 में रंगराजन कमीशन ने शिप को बुनियादी ढांचे का दर्जा दिए जाने की सिफारिश की थी।
2016 से शिपयार्डों को बुनियादी ढांचे का दर्जा दिया गया है।बहरहाल उद्योग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न सार्वजनिक करने की शर्त पर कहा कि बुनियादी ढांचे का दर्जा देने के बजाय मैरीटाइम इकनॉमी पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, ‘उदाहरण के लिए शिपयार्ड्स को पहले ही बुनियादी ढांचे का दर्जा है, लेकिन अभी भी सस्ते ऋण तक उनकी पहुंच नहीं है और आज भी बैंक गारंटी बड़ी समस्या बनी हुई है।’ शिपिंग मंत्रालय इससे वाकिफ है और इस क्षेत्र को आसानी से धन मुहैया कराने को न सिर्फ सिद्धांत के रूप में स्वीकार करती है, बल्कि जमीनी स्तर पर भी कवायद कर रहा है। अन्य अधिकारी ने कहा, ‘यही वजह है कि सरकार मैरीटाइम डेवलपमेंट फंड और सागरमाला विकास निगम के लिए एनबीएफसी के अनुमोदन जैसे बहुआयामी प्रोत्साहन पर विचार कर रही है।’