नयी दिल्ली, 25 जुलाई :भाषा: सैन्य विशेषग्यों का मानना है कि करगिल में भारतीय क्षेत्र में घुस आये पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार भगाने के 13 साल बीत जाने के बाद भी भारतीय सेना हथियारों की भारी कमी का सामना कर रही है और मंथर गति से चल रही सैन्य आधुनिकरण की प्रक्रिया को तेज नहीं किया गया तो आने वाले समय में स्थिति विकट हो सकती है ।
रक्षा मामलों के विशेषग्य सेवानिवृत्त मेजर जनरल दीपांकर बनर्जी ने भाषा से कहा, करगिल युद्ध के जीत के बाद बनाई करगिल समीक्षा रिपोर्ट ने इन्फैंट्री को आधुनिक बनाये जाने की सिफारिश की थी लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इतने साल बीत जाने के बाद भी यह प्रक्रिया बहुत धीमी गति से चल रही है । इन्फैंट्री के जवानों को एक लड़ाकू मशीन के रूप मेें बदलने की योजना ढीली पड़ गई है ।
बनर्जी ने कहा कि करगिल युद्ध के समय पहाड़ों में लड़ने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था जिसके लिये समिति ने मध्यम दूरी तक मार करने वाली नयी तोपों को खरीदने की सिफारिश की थी जिस पर अभी तक कुछ खास प्रगति नहीं हो पाई है । भारत ने बोफोर्स के बाद कोई तोप नहीं खरीदी है ।
रक्षा मामलों की पत्रिका इंडियन डिफेंस रिव्यू के संपादक भारत वर्मा का मानना है कि राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी की वजह से भारत की सेनाओं के आधुनिकीकरण में बाधा आ रही है ।
उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सत्ता में आने के बाद करगिल समीक्षा रिपोर्ट के लागू नहीं होने के कारणों की पड़ताल के लिये जिस कार्यबल का गठन किया था उसके अब इतने समय बाद अगले महीने तक रिपोर्ट देने की संभावना है ।
जारी भाषा
नननन