भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने इस साल फरवरी से अभी तक रीपो दर में 100 आधार अंक की कटौती की है। इसके बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने निजी क्षेत्र के बैंकों की तुलना में उधारी और जमा दरों में ज्यादा कटौती की है। आरबीआई द्वारा जारी आंकड़ों से इसका पता चलता है।
मई तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के नए कर्ज की औसत उधारी दर में 31 आधार अंक की कमी आई जबकि निजी बैंकों के मामले में यह 20 आधार अंक घटी। विदेशी बैंकों में 49 आधार अंक की गिरावट आई। सरकारी बैंकों में नई जमा पर भी ब्याज दर में 47 आधार अंक की कमी की गई है जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों में यह 41 आधार अंक घटी है।
छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति ने फरवरी से मई के बीच नीतिगत रीपो दर में 50 आधार अंक की कटौती की थी। जून में रीपो दर और 50 आधार अंक घट गई। अर्थव्यवस्था की स्थिति पर आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘फरवरी-मई 2025 के दौरान नए और पुराने कर्ज पर औसत उधार दरों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में निजी क्षेत्र के बैंकों की तुलना में ज्यादा कमी आई।’
इसमें कहा गया है, ‘फरवरी 2025 से रीपो दर में 100 आधार अंक की कटौती हुई और बैंकों ने रीपो से जुड़ी बाह्य बेंचमार्क आधारित उधार दरों में 100 आधार अंक और कोष आधारित उधारी दर की सीमांत लागत में 10 आधार अंक की कटौती की है। ‘
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ नीतिगत दरों में कटौती का लाभ ऋण बाजारों तक तेजी से पहुंचाने के लिए बैंकिंग तंत्र में तरलता अधिशेष बनी रही।’ रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि कुछ सरकारी बैंकों में बचत खाते पर जमा राशि पर ब्याज दरें अब तक के सबसे निचले स्तर पर हैं। देश का सबसे बड़ा ऋणदाता भारतीय स्टेट बैंक तथा दूसरा सबसे बड़ा ऋणदाता एचडीएफसी बैंक बचत खाते में जमा पर 2.5 फीसदी ब्याज देते हैं। सरकार ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के दौरान लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया। इस पर रिपोर्ट में कहा गया है कि इन योजनाओं पर प्रचलित दरें फॉर्मूला आधारित दरों से 33 से 118 आधार अंक अधिक हैं। वाणिज्यिक बैंकों में ऋण वृद्धि पर रिपोर्ट में कहा गया है कि मई 2025 में अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में औसत बैंक ऋण वृद्धि नरम रही। इसमें कहा गया है कि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को बैंक ऋण मई 2025 में कम हो गया और उन्होंने निजी नियोजन के जरिये पूंजी बाजार से भारी मात्रा में ऋण जुटाया।
रिपोर्ट में खुदरा ऋण में भारी गिरावट का भी जिक्र किया गया है, जिसका कारण पर्सनल लोन, वाहन ऋण और क्रेडिट कार्ड के बकाया में कमी है।
अर्थव्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए रिपोर्ट में कहा गया कि मजबूत आधार के कारण वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद यह काफी हद तक लचीला बना रहा। इसमें कहा गया कि कम मुद्रास्फीति और कृषि क्षेत्र की संभावनाएं मांग को बढ़ावा देंगी। वित्तीय बाजार ने व्यापार नीति की अनिश्चितताओं को स्वीकार कर लिया है। फिर भी वित्तीय बाजार द्वारा वृहद आर्थिक जोखिम को कम करके आंकना चिंता का विषय बना हुआ है। व्यापार शुल्क की औसत दरें 1930 के दशक के बाद इतनी कभी नहीं रहीं।
रिपोर्ट आरबीआई के स्टाफ सदस्यों द्वारा डिप्टी गवर्नर पूनम गुप्ता के मार्गदर्शन में लिखी गई है। रिपोर्ट में व्यक्त किए गए विचार केंद्रीय बैंक के नहीं बल्कि लेखकों के हैं।