विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा (World bank Chairman) ने बुधवार को कहा कि अगले साल के शुरू में वैश्विक सुस्ती के जोखिम के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था को उसकी घरेलू खपत से स्वाभाविक मदद मिलने की उम्मीद है।
बंगा ने भारत के अपने पहले दौरे के दौरान यहां वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) के साथ मुलाकात के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘विश्व अर्थव्यवस्था का परिदृश्य अनुमान से बेहतर है लेकिन अगले साल की शुरुआत में मंदी के संदर्भ में सुस्ती का जोखिम है। लेकिन भारत का जीडीपी का बड़ा हिस्सा घरेलू मांग पर आधारित है। ऐसे में अगर विश्व अर्थव्यवस्था में सुस्ती आती भी है तो भारत को स्वाभाविक रूप से मदद मिलेगी।’
वैश्विक ऋण देने वाली संस्था के प्रमुख और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत की प्राथमिकता वाले क्षेत्रों जैसे म्यूनिसिपल को ऋण मुहैया करवाने, लॉजिस्टिक्स, पानी के पुनर्चक्रीकरण, नवीकरणीय ऊर्जा के ग्रिड आदि में वैश्विक बैंक की मदद के लिए चर्चा की।
विश्व बैंक के पोर्टफोलियो के सबसे बड़े बाजारों में से भारत एक
यह भी विचार-विमर्श किया गया कि कैसे विश्व बैंक और भारत जी-20 के एजेंडे में बेहतर समन्वय के लिए कार्य कर सकते हैं। विश्व बैंक के पोर्टफोलियो के सबसे बड़े बाजारों में से भारत एक है।
वित्त मंत्रालय ने अपने ट्वीट में कहा, ‘केंद्रीय वित्त मंत्री ने भविष्य की आर्थिक गतिविधियों के लिए ज्ञान और तकनीक के खाई को पाटना प्रमुख कुंजी बताया। भारत ग्लोबल साउथ से अपने विकास के अनुभवों को बढ़ाना चाहता है। विश्व बैंक भारत के विकास के अनुभवों को साझा करने के प्रयासों को बढ़ावा दे।’
बंगा ने अपनी यात्रा के दौरान दिल्ली के कौशल विकास केंद्र का दौरा किया। उच्च आय वाली नौकरियों में संभावित वृद्धि के बारे में पूछे जाने पर बंगा ने कहा, ‘‘हमें यह समझना होगा कि ये नौकरियां कहां हैं। ये नौकरियां प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हैं और बहुत कम संख्या में हैं। फिर विनिर्माण क्षेत्र में ऐसी नौकरियां हैं। भारत के सामने फिलहाल मौका है कि वह ‘चीन प्लस वन’ रणनीति का फायदा उठाए।’’
चीन प्लस वन’ रणनीति के तहत बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने विनिर्माण केंद्र के तौर पर चीन के साथ किसी अन्य देश को भी जोड़ना चाहती हैं। इसके लिए भारत भी एक संभावित दावेदार के तौर पर उभरकर सामने आया है।
बंगा ने कहा, ‘‘भारत को यह ध्यान रखना होगा कि इस रणनीति से पैदा होने वाला अवसर उसे 10 साल तक नहीं मिलता रहेगा। यह तीन से लेकर पांच साल तक उपलब्ध रहने वाला अवसर है जिसमें आपूर्ति शृंखला को अन्य देश में ले जाने या चीन के साथ अन्य देश को जोड़ने की जरूरत है।’