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अंतरिम बजट की पवित्रता और वित्त मंत्री का साहस…

उद्योग जगत के लोगों को संबोधित करते हुए वित्त मंत्री ने आगामी बजट में किसी भी बड़ी घोषणा की संभावना को पूरी तरह नकार दिया।

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ए के भट्टाचार्य   
Last Updated- December 13, 2023 | 10:05 PM IST

आगामी 1 फरवरी को बजट में बड़ी योजनाओं की घोषणा नहीं होने का वित्त मंत्री का वक्तव्य सराहनीय है। इस विषय में अपनी राय प्रस्तुत कर रहे हैं ए के भट्‌टाचार्य 

गत सप्ताह वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक साहसी और समझदारी भरा वक्तव्य दिया जो उन्हें अपने कई पूर्ववर्तियों से अलग करता है। खासतौर पर बीते कुछ दशकों में हुए पूर्ववर्तियों से। उद्योग जगत के लोगों को संबोधित करते हुए वित्त मंत्री ने आगामी बजट में किसी भी बड़ी घोषणा की संभावना को पूरी तरह नकार दिया।

उन्होंने कहा, ‘मैं खेल बिगाड़ने नहीं जा रही हूं लेकिन सच्चाई यह है कि 1 फरवरी, 2024 को पेश होने वाला बजट केवल लेखा अनुदान होगा क्योंकि हम चुनावी दौर में होंगे, और गर्मियों में आम चुनाव होने हैं।’

आगे अपनी बात को और अधिक स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा, ‘इसलिए बजट केवल नई सरकार बनने तक की व्यय जरूरतों को पूरा करने का माध्यम होगा। यानी इस बार कोई बड़ी घोषणा सुनने को नहीं मिलेगी।’ वित्त मंत्री ने जो कुछ कहा उसके महत्त्व को समझने के लिए यह आवश्यक है कि उनके वक्तव्य का संदर्भ समझा जाए।

यह याद रहे कि वह उद्योग जगत के लोगों को उस समय संबोधित कर रही थीं जबकि 2024-25 का अंतरिम बजट पेश किए जाने में बमुश्किल डेढ़ महीने का समय शेष था। उद्योग जगत आम तौर पर वित्त मंत्री से ऐसा कोई संकेत पाने को उत्सुक रहता है कि सरकार बजट में क्या योजनाएं पेश करने वाली है।

गत सप्ताह वित्त मंत्री ने कोई संकेत देने के बजाय कहा कि उद्योग जगत को बजट में किसी बड़ी घोषणा की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। यह सही है कि उद्योग जगत निराश नजर आया लेकिन वित्त मंत्री तारीफ की हकदार हैं। न केवल इसलिए कि उन्होंने स्पष्ट ढंग से अपनी बात रखी बल्कि इसलिए भी कि उन्होंने उस परंपरा का ध्यान रखा जिसका सम्मान उनके पूर्ववर्तियों ने नहीं रखा था।

अंतरिम बजट दरअसल लेखा अनुदान होता है जिसे किसी आम चुनाव के पहले पेश किया जाता है और जहां सरकार नई सरकार के गठन और पूर्ण बजट पेश हाेने तक अपने खर्च चलाती है। कोई भी सरकार पांच साल के लिए चुनी जाती है, इसलिए उसे अपने कार्यकाल में पांच से अधिक पूर्ण बजट नहीं पेश करने चाहिए। वर्ष 2019 में चुनी गई सरकार पांच पूर्ण बजट पेश कर चुकी है।

उसका पांचवां बजट 2023-24 में पेश किया गया, ऐसे में अंतरिम बजट में कोई घोषणा क्यों की जानी चाहिए। ऐसा करने पर तो यह पांच साल के कार्यकाल में छठा बजट हो जाएगा? सीतारमण की दलील सही है और परंपरा भी उनके साथ है। इसके बावजूद बीते दो दशकों में कुछ ही वित्त मंत्रियों ने इस परंपरा का पालन किया। वर्ष 2000 के बाद से पेश किए गए चार अंतरिम बजट में से कम से कम तीन में बड़ी घोषणाएं करने या कर उपायों की घोषणा से बचने की परंपरा की अनदेखी की गई।

वर्ष 2009 के अंतरिम बजट में उस परंपरा का पालन किया गया था जिसका जिक्र सीतारमण ने उद्योग जगत को संबोधित करते हुए गत सप्ताह किया था। परंतु 2004 और 2014 के अंतरिम बजट में इस परंपरा की अनदेखी करते हुए कर संबंधी कुछ परिवर्तन किए गए। वर्ष 2019 के अंतरिम बजट में ज्यादा विचलन देखने को मिला जब प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की घोषणा की गई। यह किसानों के लिए एक आय समर्थन योजना थी जिसके लिए 2019-20 में सालाना 75,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था।

इसके अलावा सालाना पांच लाख रुपये तक की आय वाले व्यक्तिगत करदाताओं को कर राहत प्रदान की गई थी। वर्ष 2019-20 के अंतरिम बजट में एक और विचलन नजर आया। पिछले अंतरिम बजटों के उलट इस बार वित्त मंत्री के भाषण में पार्ट बी था जो आमतौर पर पूर्ण बजट के कराधान प्रस्तावों के लिए सुरक्षित रहता है।

अगर सीतारमण उद्योगपतियों से कही गई बातों पर अमल करती हैं तो यह मानना सही होगा कि 2024-25 के अंतरिम बजट में नई योजनाओं को लेकर कोई बड़ी घोषणा नहीं होगी या फिर कर संबंधी कोई पहल नहीं होगी। माना जा रहा है कि बजट भाषण में कोई पार्ट बी नहीं होगा। यह उस परंपरा के अनुरूप ही होगा जिसका पालन ज्यादातर वित्त मंत्रियों ने किया है।

परंतु एक प्रश्न फिर भी है। अगर बजट में नई योजनाओं, परियोजनाओं या कर राहत को लेकर कोई बड़ी घोषणा नहीं की गई तो सरकार को बड़ी राजनीतिक दुविधा का सामना करना होगा, क्योंकि उसे अनिच्छापूर्वक ही सही, लेकिन वह व्यवहार त्यागना होगा जहां चुनाव के पहले मतदाताओं को खुश करने के लिए घोषणाएं की जाती हैं।

माना जा सकता है कि सरकार ऐसी घोषणाएं करेगी लेकिन वे अंतरिम बजट का हिस्सा नहीं होंगी। ऐसे में 2024-25 में सरकार की वित्तीय स्थिति पर इसके असर को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता है क्योंकि उन वादों का असर अगले वर्ष नजर आएगा। याद रहे कि चालू वर्ष का बजट पहले ही अतिरिक्त राहत उपायों के कारण अतिरिक्त बोझ वहन कर रहा है। नि:शुल्क खाद्यान्न आपूर्ति योजना को दिसंबर 2023 से आगे तक जारी रखने और उर्वरक तथा घरेलू गैस सब्सिडी आदि बढ़ाने के कारण 2023-24 में 58,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त नकदी की जरूरत पड़ेगी।

अंतरिम बजट की प्रस्तुति के बाद पता चलेगा कि और कितने नकदी आवंटन की आवश्यकता है। बहरहाल, इसका असर काफी कम हो सकता है क्योंकि राजस्व बेहतर है और व्यय में कमी है। परंतु वित्त मंत्री ने अपने वक्तव्य से यह सुनिश्चित कर दिया है कि 1 फरवरी को सरकार संसद के सामने जो आंकड़े रखेगी वे विश्वसनीय होंगे।

अंतरिम बजट में अति आशावादी राजस्व आंकड़े पेश किए जाने का खतरा रहता है। कोशिश यह होती है कि चुनाव के बाद के बजट में इसे ठीक कर लिया जाएगा। इस बार शायद ऐसे हालात न बनें। वर्ष 2018-19 के बजट आंकड़ों में भारी संशोधन के लिए यही वजह जिम्मेदार थी। सीतारमण के पिछले पांच बजट कई साहसी और समझदारी भरे कदमों की बदौलत अलग नजर आते हैं।

इसमें बजट से इतर व्यय को हटाकर पारदर्शिता लाना, सरकार के घाटे के आंकड़ों का सही आकलन करना, कॉर्पोरेशन कर दरों में कमी लाना, करदाताओं को रियायत रहित कराधान प्रणाली के लिए तैयार करना और ठोस तरीके से राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की दिशा में बढ़ने के प्रयास आदि शामिल हैं।

गत सप्ताह सीतारमण के बयान ने दिखाया कि वह अपनी बजट निर्माण प्रक्रिया में एक और सराहनीय गुण शामिल करने वाली हैं। वह यह सुनिश्चित करने जा रही हैं कि अंतरिम बजट में कराधान से जुड़ी नई घोषणाओं या बड़ी योजनाओं की घोषणा करने से बचा जाए। फरवरी में जब वह अंतरिम बजट पेश करेंगी तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि वित्त मंत्री अपना वादा निभाकर अंतरिम बजट की पवित्रता को बरकरार रखती हैं या नहीं।

First Published : December 13, 2023 | 9:47 PM IST