उच्चतम न्यायालय के 7 सदस्यों वाले पीठ ने बुधवार को एकमत से फैसला सुनाया कि किसी समझौते पर स्टांप न लगने या उचित स्टांप नहीं लगने का दस्तावेज की वैधता से कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि इस कमी को दूर किया जा सकता है। न्यायालय ने अप्रैल में दिए अपने फैसले को पलट दिया है।
इसका मतलब यह है कि मध्यस्थता समझौते को इस आधार पर नहीं रोका जा सकता कि उस पर स्टांप नहीं लगा है। यह (स्टांप शुल्क का भुगतान न किया जाना) समाधान योग्य खामी है।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा के संविधान पीठ ने कहा कि हालांकि बिना स्टांप लगे मध्यस्थता समझौते अस्वीकार्य हैं, लेकिन बिना स्टांप या कम स्टांप लगे होने की वजह से वे शुरुआत से ही शून्य नहीं हैं।
न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थता पंचाट को फैसला करना होगा कि मध्यस्थता समझौते पर स्टांप लगा है या नहीं, न्यायालय यह फैसला नहीं करेंगे।
न्यायालय ने कहा, ‘मध्यस्थता समझौते करने वाले पक्षकारों का मामला मध्यस्थता पंचाट के अधिकार क्षेत्र में है। जब पक्ष मध्यस्थता समझौते पर हस्ताक्षर करते हैं तो उन्हें उन्हें स्वतंत्र रूप से मध्यस्थता समझौते पर हस्ताक्षर करने वाला माना जाता है। इस प्रक्रिया में पृथक होने का प्रावधान सक्षमता के सिद्धांत का मामला है। इस सिद्धांत का नकारात्मक पहलू यह है कि इसके अनुपालन की सीमा है और और न्यायालय की इसमें सीमित भूमिका है और मध्यस्थता पंचाट को इसमें पूरा अधिकार दिया गया है।’
स्टांपिंग का मतलब यह है कि जब स्टांप शुल्क का भुगतान स्टांप अधिनियम के मुताबिक समझौते के मूल्य के आधार पर किया गया है। यहां सवाल यह था कि समझौता पंचाट के नियम के मुताबिक हुआ है, लेकिन उचित स्टांप नहीं लगाया गया है।
यह फैसला इस हिसाब से महत्त्वपूर्ण है कि इसका असर कॉर्पोरेट व अन्य समझौतों पर भी पड़ेगा, जिसमें अनुबंध करने वाले पक्षों पर असर पड़ा था। इस साल अप्रैल में शीर्ष न्यायालय के 5 न्यायाधीशों के पीठ के फैसले को 7 सदस्यों वाले पीठ ने पलट दिया है।
मैसर्स एनएन ग्लोबल मर्केंटाइल प्राइवेट लिमिटेड बनाम मैसर्स इंडो यूनीक फ्लेम लिमिटेड व अन्य मामले में न्यायालय ने 3 और 2 के बहुमत से कहा था कि बगैर स्टांप वाले समझौतों या अधूरे समझौतों के मामलों को लागू नहीं किया जा सकता है। इस फैसले को अप्रैल में 7 सदस्यों के पीठ को फिर से विचार के लिए सौंप दिया गया था।
अप्रैल के फैसले के बाद केंद्रीय कानून मंत्रालय ने विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया था, जिसे मध्यस्थता और सुलह अधिनियम में सुधार की सिफारिश करनी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि एनएन ग्लोबल मामले पर फैसले ने यह साफ किया है कि स्टांप के बगैर या कम स्टांप पर हुए मध्यस्थता समझौते वैध होंगे। खेतान ऐंड कंपनी में पार्टनर अजय भार्गव ने कहा, ‘अन्य चिंताओं के साथ इसका समाधान किया गया है।’
एसएनजी ऐंड पार्टनर्स, एडवोकेट्स ऐंड सॉलिसिटर्स में पार्टनर अतीव माथुर ने कहा कि इस फैसले से पूरी स्पष्टता आ गई है। उन्होंने कहा, ‘स्टांप के मसले पर न्यायिक हस्तक्षेप के बगैर अबर मध्यस्थता प्रक्रिया पूरी की जा सकेगी। अब स्टांप के मसले को लेकर मध्यस्थता पर रोक नहीं लगेगी।’