पिछले कई वर्षों से राज्यों के ऊर्जा/बिजली मंत्रियों की वार्षिक बैठक मुख्य तौर पर बिजली वितरण की समस्याओं और बिजली आपूर्ति के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार के उपायों पर केंद्रित होती थी। मगर करीब एक दशक बाद बैठक मुख्य तौर पर कोयले पर केंद्रित रही।
केंद्रीय बिजली मंत्रालय द्वारा इस महीने की शुरुआत में दिल्ली में आयोजित बैठक में चर्चा के मुख्य मुद्दे कोयले से चलने वाले नए बिजली संयंत्र खोलना और बिजली की मांग बढ़ना थे।
2014 में राज्यों के ऊर्जा/बिजली मंत्रियों की वार्षिक बैठक कोयले की आपूर्ति पर केंद्रित थी। साल 2016 से 2018 के बीच बैठकें ग्रामीण एवं शहरी विद्युतीकरण और बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के लिए सुधार की केंद्रीय योजनाओं पर केंद्रित थीं। 2019 में चर्चा उपभोक्ताओं के लिए बिजली की कीमत घटाने और स्मार्ट प्रीपेड मीटर जैसी बेहतर प्रौद्योगिकी अपनाने पर केंद्रित हो गई।
कोविड के बाद डिस्कॉम का वित्तीय संकट से उबरना और डिस्कॉम की व्यवहार्यता मुख्य मुद्दे बन गए। अधिक से अधिक अक्षय ऊर्जा को शामिल करना पिछले दशक का मुख्य विषय रहा है।
मगर बिजली की तगड़ी मांग देखते हुए राज्य कोयला से चलने वाले बिजली संयंत्रों की ओर रुख कर रहे हैं। कुछ राज्यों ने नए मेगा संयंत्रों के लिए निविदाएं आमंत्रित की हैं तो कुछ अपने मौजूदा संयंत्रों की क्षमता बढ़ा रहे हैं। इस साल देश की कुल बिजली मांग 240 गीगावॉट के पार पहुंच गई। अगस्त के बाद हर महीने बिजली की मांग 20 फीसदी बढ़ी है।
हाल में मध्य प्रदेश ने अन्नूपुर और बैतूल में 660 मेगावॉट के दो सुपरक्रिटिकल बिजली संयंत्र स्थापित करने के लिए निविदाएं आमंत्रित की थी। गुजरात ने राज्यों के बिजली मंत्रियों की बैठक में 500 मेगावॉट से 1 गीगावॉट क्षमता के कोयला आधारित बिजली संयंत्र स्थापित करने की योजना का खुलासा किया।
उत्तर प्रदेश ने विभिन्न स्थानों पर करीब 6 गीगावॉट ताप विद्युत क्षमता स्थापित करने की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी है। अधिकारियों ने कहा कि कर्नाटक भी ओडिशा में अपनी खदानों में कोयला आधारित बिजली संयंत्र स्थापित करने की योजना बना रहा है जबकि पहले उसने कोयले से परहेज करने की कसम खाई थी। तमिलनाडु अगले दो वर्षों में 4.1 गीगावॉट ताप बिजली क्षमता जोड़ने की योजना बना रहा है।
तमिलनाडु जेनरेशन ऐंड डिस्ट्रीब्यूशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड (टैंजेडको) के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक राजेश लाखोनी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘यहां कोयला 2040 तक रहेगा। हम तीन संयंत्र पहले ही स्थापित कर रहे हैं। जब तक बैटरी तकनीक विकसित नहीं होगी, तब तक हम पूरी तरह सौर या पवन ऊर्जा की ओर स्थानांतरित नहीं हो पाएंगे। बैटरी के लिए उपलब्धता और लागत की समस्या है, जो 10 रुपये प्रति यूनिट तक अधिक है।’
उन्होंने कहा कि तमिलनाडु ताप विद्युत संयंत्र स्थापित करने वाली कंपनियों के साथ दीर्घावधि बिजली खरीद अनुबंध (पीपीए) भी कर रहा है। हाल में उसने तालाबिरा बिजली संयंत्र से 1.5 गीगावॉट बिजली खरीदने के लिए एनएलसी इंडिया के साथ पीपीए पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके अलावा उसने तलचर में एनटीपीसी की इकाई से 450 मेगावॉट बिजली खरीदने के लिए भी अनुबंध किया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि कोयले की वापसी से सबसे अधिक फायदा एनटीपीसी और बीएचईएल को होगा। कोयले से बिजली बनाने वाले संयंत्र स्थापित करने के लिए उत्तर प्रदेश सहित अधिकतर राज्य एनटीपीसी और उसकी इकाइयों पर निर्भर हैं। जुलाई में एनटीपीसी ने निवेशकों को बताया था कि उसने वित्त वर्ष 2013 में 4 गीगावॉट क्षमता जोड़ी और 17 गीगावॉट क्षमता निर्माणाधीन तथा 18 गीगावॉट योजना स्तर में है।
टाटा पावर के एमडी एवं सीईओ प्रवीर सिन्हा ने कहा, ‘कंपनी अक्षय ऊर्जा पर ध्यान बढ़ाती रहेगी। फिलहाल कोयला आधारित संयंत्र स्थापित करने की हमारी कोई योजना नहीं है।’ टाटा पावर ने 2030 तक अपने बिजली पोर्टफोलियो में 70 फीसदी अक्षय ऊर्जा को शामिल करने का लक्ष्य रखा है।
जेएसडब्ल्यू एनर्जी ने भी घोषणा की थी कि वह कोयले से चलने वाले संयंत्र में निवेश नहीं करेगी। वह अपने रुख पर अब भी कायम है। अदाणी पावर एकमात्र ऐसी कंपनी है, जो कोयले पर लगातार दांव लगा रही है। वह मध्य प्रदेश के सिंगरौली में 1.6 गीगावॉट क्षमता का ताप बिजली संयंत्र स्थापित कर रही है।
अदाणी पावर और जेएसडब्ल्यू एनर्जी ने इस बारे में भेजा गए सवालों के ईमेल का खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं दिया।
ताप विद्युत संयंत्रों में नरमी के कारण बिजली क्षेत्र को उपकरणों की आपूर्ति करने वाली कंपनी बीएचईएल के कारोबार को काफी नुकसान हो रहा था। मगर अब कोयले की वापसी से उसका कारोबार चमक सकता है।
लार्सन ऐंड टुब्रो (एलऐंडटी) के मुख्य वित्तीय अधिकारी एवं पूर्णकालिक निदेशक आर शंकर रमण ने कहा, ‘हम काफी
सोच-समझकर कदम उठाना चाहते हैं। हम इस क्षेत्र के काफी आक्रामक बोलीदाताओं से प्रतिस्पर्धा नहीं करना चाहते हैं। हम अपने समय और संसाधन का उपयोग कारगर तरीके से कर सकते हैं।’
बिजली उपकरण बनाने वाली एक अन्य कंपनी थर्मेक्स को भी जानकारी के लिए भेजे गए ईमेल का खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं आया। जीई के अधिकारियों ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार किया।
–भारत में अब तक की सर्वाधिक बिजली मांग: सितंबर में 240 गीगावॉट
–अगले साल मांग 250 गीगावॉट तक पहुंचने के आसार
–कुल बिजली उत्पादन में ताप विद्युत संयंत्रों का योगदान: 73 से 75 फीसदी
–कुल बिजली उत्पादन में अक्षय ऊर्जा का योगदान: 20 से 25 फीसदी
–उत्तर प्रदेश में निर्माणाधीन क्षमता: 6 गीगावॉट
–तमिलनाडु में निर्माणाधीन क्षमता: 4 गीगावॉट
–मध्य प्रदेश में निर्माणाधीन क्षमता: 1.3 गीगावॉट
–गुजरात में निर्माणाधीन क्षमता: 0.5 से 1 गीगावॉट (संभव)