भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) की अध्यक्ष माधवी पुरी बुच ने कहा है कि बाजार नियामक अपनी अगली बोर्ड बैठक में डीलिस्टिंग (सूचीबद्धता समाप्त करने) नियमों को आसान बनाएगा। इस कदम से प्रवर्तकों को अपनी कंपनी को निजी बनाने में मदद मिलेगी।
डीलिस्टिंग के लिए इस्तेमाल होने वाली मौजूदा व्यवस्था (रिवर्स बुक बिल्डिंग-आरबीबी) प्रक्रिया को अल्पांश शेयरधारकों के पक्ष में देखा गया और भारतीय कंपनियों का अपनी कंपनी को शेयर बाजार से हटाने के प्रयास में नाकाम रहना बताया गया। डीलिस्टिंग मामलों के कुछ ताजा उदाहरणों में अक्टूबर में श्रेयस शिपिंग और तीन साल पहले अनिल अग्रवाल-नियंत्रित वेदांत का मामला शामिल है।
उद्योग संगठन फिक्की द्वारा आयोजित पूंजी बाजार सम्मेलन में बुच ने कहा, ‘यह धारणा बनी हुई थी कि हम कभी भी डीलिस्टिंग नियमों की समीक्षा नहीं करेंगे और रिवर्स बुक-बिल्डिंग प्रक्रिया के साथ बने रहेंगे। लेकिन इस संबंध में परामर्श पत्र पहले ही जारी किया जा चुका है और सेबी को अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। अगली बोर्ड बैठक में हम इस प्रस्ताव को अपने बोर्ड के समक्ष पेश करेंगे।’
सूत्रों ने कहा कि सेबी की अगली बोर्ड बैठक इस महीने के अंत या अगले महीने के शुरू में हो सकती है।
अगस्त में पेश चर्चा पत्र में बाजार नियामक ने आरबीबी ढांचे के लिए विकल्प का प्रस्ताव रखा था, जिसमें निर्धारित कीमत व्यवस्था और काउंटर-ऑफर मैकेनिज्म के लिए दायरा घटाना शामिल था। सेबी ने निवेश होल्डिंग कंपनियों के लिए डीलिस्टिंग मसौदे का भी प्रस्ताव रखा, क्योंकि मौजूदा व्यवस्था में उन पर अलग से विचार नहीं किया जाता है।
मौजूदा आरबीबी व्यवस्था के तहत प्रवर्तकों को डीलिस्टिंग प्रक्रिया सफल बनाने के लिए कुल शेयरधारिता का कम से कम 90 प्रतिशत खरीदना चाहिए। लेकिन इस विकल्प का ऑपरेटरों द्वारा दुरुपयोग किया गया।