भारत में अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में सिनेमाघरों की कम संख्या है। हालांकि, हाल में कुछ नए सिनेमाघर खुलने से यह समानता के करीब आ रहा है।
मल्टीप्लेक्स चेन पीवीआर ने हाल ही में घोषणा की है कि वह हर साल 200 नए सिनेमाघर खोलेगी। कंपनी के संयुक्त प्रबंध निदेशक संजीव कुमार बिजली ने पहले कहा था कि कंपनी का लक्ष्य छोटे शहरों खासकर देश के दक्षिणी और पूर्वी हिस्से में पहुंचने का है। पीवीआर के तिमाही आंकड़े दर्शाते हैं कि जनवरी 2023 तक दक्षिणी और पूर्वी भारत में क्रमशः 314 और 51 पीवीआर स्क्रीन हैं।
भारत में 2021 में प्रति दस लाख लोगों पर छह स्क्रीन जबकि चीन और जापान में क्रमशः 30 और 26 थीं। देश में 2019 में प्रति दस लाख की आबादी पर सात स्क्रीन थीं। पीवीआर की वार्षिक रिपोर्ट के आंकड़े दर्शाते हैं कि अन्य देशों में प्रति दस लाख लोगों पर अधिक स्क्रीन थीं। इनमें अमेरिका (125), ब्रिटेन (68) और चीन (50) हैं।
महामारी के बाद से भारत में स्क्रीन की संख्या कम होने लगी। कुल मिलाकर, भारत में 2018 के 9,601 स्क्रीन की तुलना में 2021 में घटकर 9,423 स्क्रीन रह गईं।
देश के सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों की तुलना में आंध्रप्रदेश में सर्वाधिक 1,125 स्क्रीन हैं। इसके बाद तमिलनाडु (1,104) और महाराष्ट्र (1,076) का स्थान है।
वित्त वर्ष 2022 के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2020 में पीवीआर में दर्शकों की आवक घटकर एक तिहाई रह गई थी, जबकि उसकी नजर और अधिक स्क्रीन लगाना चाहती थी। देश भर के मल्टीप्लेक्स में 2019 से 2021 के दौरान दर्शकों की आवक 70 फीसदी से अधिक घटकर 41.8 करोड़ रह गई। हालांकि, उसके बाद से परिदृश्य बेहतर हुआ है।
प्रबंधकों के अनुसार, मल्टीप्लेक्स के दर्शकों की आवक में गिरावट की मुख्य वजह वैश्विक महामारी और ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्मों की लोकप्रियता रही है। उनका यह भी कहना है कि बड़े बजट की हिंदी फिल्में ही ओटीटी के बजाय बड़े पर्दों पर दिखाई जा रही हैं। सूर्यवंशी और 83 जैसी फिल्में 2020 में ही रूपहले पर्दे पर रिलीज होने वाली थी, लेकिन इसमें एक साल से अधिक की देरी हो गई।
पीवीआर की रिपोर्ट के अनुसार, फिल्म निर्माताओं को घरेलू सिनेमा से 50-55 फीसदी की कमाई होती है जबकि डिजिटल या नेटफ्लिक्स जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्मों से 10-12 फीसदी आय होती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों का कारोबार साथ चल सकता है।
बॉक्स ऑफिस पर संग्रह अभी कोविड पूर्व स्तर तक नहीं पहुंच पाया है। भारतीय उद्योग के आंकड़ों में वैश्विक उद्योग के मुकाबले भारी गिरावट देखी है। भारतीय उद्योग में 2019 के मुकाबले में 2021 में 73 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई जबकि वैश्विक मोर्चे पर यह आंकड़ा महज 50 फीसदी रहा।